नवम्बर का महीना आते ही बाल दिवस याद आने लगता है और बच्चों का ख़याल आते ही उनके भोले मासूम हृदय और कोरे कागज़ से साफ़ सुथरे मन मस्तिष्क का स्मरण हो आता है जिस पर आज हम जो इबारत लिख देंगे वह जीवन पर्यंत उनके हृदय पटल पर अमिट रूप से अंकित हो जायेगी ! इसीलिये बच्चों को जितनी अच्छी शिक्षा और संस्कार बचपन में मिल जाते हैं वह संपदा उनके लिये एक अनमोल धरोहर की तरह हमेशा उनके पास संचित रहती है ! इसी आशय को मूल में रख कर किशोरों के लिये एक कहानी लिखी थी बहुत पहले इसे आज आप सबके साथ शेयर करना चाहती हूँ ! इसे पढ़िए और अपनी प्रतिक्रिया से मुझे अवश्य अवगत कराइए ! आपकी टिप्पणियों की मुझे प्रतीक्षा रहेगी !
बरगद
के नीचे के चबूतरे पर श्याम चिंताग्रस्त बैठा था ! घर
जाने की उसकी इच्छा ही नहीं हो रही थी ! किसी काम में मन नहीं लग रहा था ! माँ ने
ग्रामसेविका ललिता दीदी के यहाँ से बुनाई के लिये ऊन ले आने को कहा था लेकिन श्याम
वह भी लेकर नहीं आया था ! घर जायेगा तो माँ भी डाटेगी ! आज तो वह बच्चों के साथ
क्रिकेट खेलने भी नहीं गया ! कल शाम से जब से उसने बापू और हरिया की बातें सुनी
थीं तब से किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल काँप रहा था ! वह बड़ी उलझन में था और
समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिये ! उसके मन में अनवरत संघर्ष चल रहा था
और वह किसी भी नतीजे पर नही पहुँच पा रहा था ! स्कूल में टीचर जी ने सिखाया था ---
जो
भरा नहीं है भावों से
बहती
जिसमें रसधार नहीं,
वह
हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें
स्वदेश का प्यार नहीं !
आर्थिक
तंगी की वजह से तीन साल हो गये थे श्याम का स्कूल छूटे हुए पर मैथिलीशरण गुप्त जी
की ये पंक्तियाँ उसके मन पर आज भी अंकित थीं !
बापू यह क्या
करने जा रहे हैं हरिया के साथ मिल कर ! श्याम ने ठीक से देखा था हरिया ने बापू को
गमछे में लिपटा हुआ कुछ सामान दिया था और कहा था ,
“सम्हाल के रखना दीना ! किसीकी नज़र ना पड़े ! १५
तारीख को स्कूल में जलसा है ! स्मिथ साहेब खास मेहमान बन के आने वाले हैं ! तुम
मौक़ा देख कर उनकी कुर्सी के नीचे इसे रख देना ! तुम तो वैसे भी स्कूल में साफ़ सफाई
का काम ही करते हो ! तुम पर कोई शक नहीं करेगा ! एक ही बार में सारे क्रिस्तानियों
का सफाया हो जायेगा ! जब से ये गाँव में आये हैं यहाँ का रंग ढंग ही बदल गया है !
और तुम्हें भी कहीं और काम नहीं मिला जो इन क्रिस्तानियों के स्कूल में ही नौकरी
कर ली ?”
हरिया
की बातों से घोर घृणा टपक रही थी ! दीना ने सर हिला कर सहमति जताई और गमछे में
लिपटे सामान को सम्हाल कर टीन के संदूक में रख दिया !
चौदह
वर्षीय श्याम इतना तो समझ गया था कि गमछे में लिपटी हुई वस्तु शायद बम ही है !
आजकल अखबारों में, टी वी में, रेडियो में हर वक्त यही सब तो आता रहता है ! कहीं बस
में बम फट गया तो कहीं रेल में बम फट गया, कहीं भीड़ भरे बाज़ार में बम फट गया तो
कहीं किसी मंदिर या मस्जिद में फट गया ! नतीजतन
कई लोग मर गये कई लोग घायल हो गये और कई छोटे-छोटे मासूम बच्चे अनाथ हो गये
! श्याम पहले सोचता था भला कौन करता होगा ऐसे काम ? उसे क्या भगवान से डर नहीं
लगता ? अनजान लोगों से भला उसकी क्या दुश्मनी होती होगी ? इतने लोगों को मार कर उसका
क्या भला होता होगा ? लेकिन श्याम के मन में उठते ये सवाल मन में ही घुट कर रह
जाते ! जब वह स्कूल जाता था तो टीचर जी उसके सारे सवालों के जवाब बड़े प्यार से
देती थीं ! श्याम को वे बहुत प्यार करती थीं ! श्याम भी उनकी बहुत इज्ज़त करता था !
पढ़ने में भी श्याम बहुत होशियार था ! वह तो आगे और भी पढ़ना चाहता था लेकिन घर की
आर्थिक तंगी ने उसकी शिक्षा के क्रम पर पूर्णविराम लगा दिया ! श्याम की किस्मत तो
फिर भी अच्छी थी कि वह कम से कम पाँचवी क्लास तक तो स्कूल में पढ़ लिया उससे छोटे
उसके तीनों भाई बहनों ने तो कभी स्कूल का मुँह तक नहीं देखा था !
श्याम
के मन की उथल-पुथल बढ़ती ही जा रही थी ! अजीब सी उलझन में फँस गया था वह ! स्मिथ
साहेब गाँव के सबसे बड़े पुलिस ऑफीसर हैं ! गाँव में कोई भी कार्यक्रम हो या किसी
स्कूल में कोई जलसा हो उन्हें ही मुख्य अतिथि बनाया जाता है ! अंग्रेज़ी स्कूल तो
दो साल पहले ही खुला है गाँव में ! इससे पहले तो सभी बच्चे पुराने वाले हिन्दी
स्कूल में ही पढ़ते थे ! स्मिथ साहेब की बेटी मेरी भी श्याम की क्लास में पढ़ती थी !
बिलकुल सोने जगने वाली गुड़िया की तरह सुन्दर थी मेरी ! गोरी इतनी कि हाथ लगे मैली
हो जाये ! उसकी नीली-नीली आँखें बिलकुल परी जैसी लगती थीं ! स्कूल के जलसे में
बिलकुल सही और पूरा राष्ट्रीय गान गाने पर स्मिथ साहेब ने श्याम को अपने पास से प्रोत्साहन पुरस्कार भी दिया था
जिसे अभी तक बहुत सम्हाल कर श्याम ने अपने बक्से में रखा हुआ है !
बापू
ने क्या हरिया के साथ मिल कर इन्हीं स्मिथ साहेब को मारने का प्लान बनाया है ?
श्याम बहुत उद्विग्न था ! क्या करे कुछ समझ नहीं पा रहा था ! अगर स्मिथ साहेब के
पास जाकर सब कुछ सच-सच बता देता है तो बापू पकड़े जायेंगे और उन्हें जेल हो जायेगी
! फिर पुलिस वाले अपराधियों को कितनी बेरहमी से मारते हैं ! श्याम बापू की पिटाई
की कल्पना से सिहर उठा ! माँ भी रो-रो कर बेहाल हो जायेगी ! घर का खर्च कैसे चलेगा
! बापू की थोड़ी सी तनख्वाह से क्या होता है ! माँ भी दिन रात काम करती है ! बाहर
तीन चार घरों में साफ़ सफाई का काम करती है, फिर घर पर आकर घर का सारा काम करती है
! इस सबके बाद जो थोड़ा बहुत समय बचता है उसमें ग्राम सेविका जी के यहाँ से ऊन लाकर
छोटे बच्चों के कपड़े बुन कर उन्हें देती है ! कुछ आमदनी उससे भी हो जाती है !
अगर
बापू को पुलिस पकड़ कर ले गयी तो माँ तो रो-रो कर ही मर जायेगी ! फिर तो हम सब अनाथ
हो जायेंगे ! श्याम की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे ! कल्पना में वह स्वयं को
गाँव की गलियों में असहाय निरुपाय भटकता देख रहा था ! लेकिन अगले ही पल उसकी
कल्पना के घोड़े सरपट दौड़ते हुए स्कूल पहुँच गये जहाँ बम के धमाके के बाद भीषण चीख
पुकार मची हुई थी ! आसमान में काला धुआँ छाया हुआ था ! स्कूल परिसर में बहुत सारे
बच्चे लहुलुहान फूलों की टूटी हुई पंखुरियों की तरह यहाँ-वहाँ बिखरे पड़े थे ! कई
लोगों के विस्फोट से चीथड़े उड़ गये थे तो कई आख़िरी साँसें गिन रहे थे और कई बेजान
पड़े थे ! इन्हीं लाशों के बीच श्याम ने रक्तरंजित मेरी को भी तड़पते हुए देखा ! वह
सर से पाँव तक थर-थर काँप रहा था !
“नहीं ऐसा नहीं हो सकता ! मैं अपने जीते जी ऐसा
कभी नहीं होने दूँगा ! “ श्याम का मन कुछ स्थिर हुआ ! अगले ही पल
वह खुद ब खुद पुलिस स्टेशन की ओर बढ़ चला ! उसकी आँखों में संकल्प की चमक थी, कदमों
में दृढ़ता और मन में टीचर जी की सिखाई पंक्तियाँ गूँज रही थी ....
जो
भरा नहीं है भावों से
बहती
जिसमें रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं !
साधना
वैद
बचपन में जो सीखा, वह लक्ष्मण रेखा से बढकर है ..... परिवर्तन ही परिवर्तन, पर भाव वही, स्वदेश के लिए आस्था वही ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इसे पढना
जो भरा नहीं है भावों से
ReplyDeleteबहती जिसमें रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं !
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार
किशोर ने नेक काम को अंजाम दिया |हम भी बच्चो के मन में ऐसे भाव भर सकें|
ReplyDeleteबहुत प्रेरक कहानी .... अच्छी बातें लोग नहीं सीखते , श्याम रूपी पात्र ने अपनी ज़िम्मेदारी को समझा ...
ReplyDeleteबचपन की शिक्षा जिंदगी भर साथ रहती है बहुत अच्छी लगी यह रचना |
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