कहाँ-कहाँ ढूँढूँ
तुझे
कितने जतन करूँ,
किस रूप को ध्यान
में धरूँ,
किस नाम से पुकारूँ,
मंदिर, मस्जिद,
गिरिजा, गुरुद्वारा
किस घर की कुण्डी
खटखटाऊँ ?
किस पंडित, किस
मौलवी,
किस गुरु के चरणों
में
शीश झुकाऊँ
बता मेरे मौला
मैं कहाँ तुझे पाऊँ
?
ना जाने कितने
जन्म जन्मांतरों के
पाप पुण्य के हिसाब-किताब
में
पंडित जी ने उलझा
दिया है
हज़ारों देवताओं में
से
जाने कौन से देवता
और हज़ारों धर्म
ग्रंथों में से
जाने कौन सा पुराण
मुझे सही राह
दिखायेंगे
मैं आज तक भ्रमित
हूँ !
मौलवी जी के मुश्किल
मशवरे
और उनकी सख्त हिदायतें
मुझे
समझ नहीं आतीं
और मैं एक कतरा
रोशनी की तलाश में
भटकते-भटकते
और गहरी तारीकियों
में
डूबता जाता हूँ !
मेरे प्रभु,
किस गुरू की सलाह पर
अमल करूँ और
किसके चरण गहूँ ?
यहाँ तो सब
धर्म के ठेकेदार बने
अपनी-अपनी दुकानें
खोले बैठे हैं !
सब लाभ हानि के
जोड़-बाकी, गुणा-भाग
में
अपनी सुविधा के
अनुसार
अपने इच्छित
प्राप्तांक को
पाने की आशा में
खुद ही सांसारिकता
के
दलदल में आकण्ठ डूबे
बैठे हैं !
वो भला मुझे कैसे और
कौन सी
सच्ची राह दिखा
पायेंगे !
क्या करूँ, कहाँ
जाऊँ मेरे भगवन् !
अपने मन में झाँक कर
देखता हूँ तो पाता
हूँ कि
तुम्हारा तो बस
एक नाम, एक रूप,
एक आकार और बस
केवल एक ही ठिकाना
है
और वह है
मेरा अन्तस्तल !
जहाँ तुम्हारे दर्शन
पाकर मेरी
सारी पीड़ा विलीन हो
जाती है,
सारे भ्रम तिरोहित
हो जाते हैं,
सारा अन्धकार मिट
जाता है
और उस अलौकिक आलोक
में
मेरी आँखों के सामने
होती है
केवल तुम्हारी दिव्य
छवि,
चहुँ ओर फैला होता
है
अनुपम, अद्भुत, स्वर्गिक
संगीत
और होती है अपार
शान्ति,
परम संतोष एवं
हर शंका का समाधान
करता
दिव्य ज्ञान का
प्रकाश
जिससे मेरे मन का
हर कोना जगमगा उठता
है !
मेरे देवता ,
यही है तम्हारा स्थायी
देवालय
और मेरा मोक्षधाम ,
तुम्हारा चिरंतन
शाश्वत कार्यालय
और मेरा परम धाम !
साधना वैद
कहीं मत जाइए .... अन्तर्मन में झांक लीजिये मिल जाएगा प्रभु :):)
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
मेरे देवता ,
ReplyDeleteयही है तम्हारा स्थायी देवालय
और मेरा मोक्षधाम ,
तुम्हारा चिरंतन शाश्वत कार्यालय
और मेरा परम धाम !
वाह ... भावमय करते शब्दों का संगम !!!
भगवान सबसे पहले हमारे अंतर्मन में दर्शन देते है..
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना......
:-)
खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteवाह ,,, बहुत उम्दा प्रस्तुती,
ReplyDeleteसिर्फ अपने अन्तर्मन में झांक लीजिये,प्रभु मिल जाएगें,,,,,
recent post: रूप संवारा नहीं,,,
संगीता जी से सहमत , इश्वर अपने अन्दर खोजिये और दूसरों के बीच खोजिये जरूर मिल जायेगा। अपनी आत्मा ही सच्चे इश्वर से मिला देती है।
ReplyDeleteमेरे देवता ,
ReplyDeleteयही है तम्हारा स्थायी देवालय
और मेरा मोक्षधाम ,
तुम्हारा चिरंतन शाश्वत कार्यालय
और मेरा परम धाम !
सच है
man ka prashno me ulajhna aur khud hi shanti ka marg pa lena....adbhut shabd sanyojan. sanmarg ko le jati kavy rachna.
ReplyDeleteमेरे देवता ,
ReplyDeleteयही है तम्हारा स्थायी देवालय
और मेरा मोक्षधाम ,
तुम्हारा चिरंतन शाश्वत कार्यालय
और मेरा परम धाम !
बस जिसे ये राह मिल गयी उसे और कहीं जाने याझांकने की जरूरत नहीं…………बहुत सुन्दर भाव
इधरउधर का भटकना सही नहीं है |ईश्वत का वास मन के अंदर ही है |अपने मन मैं झाँक कर देखें तो ईश्वर वही बसता है |जीजा जी कह रेहे हैं की मुकाबला बराबरी का है किसे क्या कहे |
ReplyDeleteआशा
ReplyDeleteदिनांक 17/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
संगीता स्वरुप जी की बात से पूर्णतया सहमत. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteहमारे अन्तर्मन मे ही ईश्वर का वास ..बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteयह द्वंध तो चलता रहता है मन में...सुंदर रचना है आपकी
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