ग़म के सहराओं से ये आह सी क्यों आती है ,
दिल की दीवारों पे
नश्तर से चुभो जाती है !
ये किसका साया मुझे
छू के बुला जाता है ,
ये किसकी याद यूँ
चुपके से चली आती है !
ये मुद्दतों के बाद
कौन चला आया था ,
ये किसके कदमों की
आहट कहाँ मुड़ जाती है !
ये किसने प्यार से
आवाज़ दे पुकारा था ,
ये किस अनाम अँधेरे
से सदा आती है !
कि जिनकी खुशबू से
मौसम में खुशगवारी थी ,
उन्हीं गुलों को
गिराने हवा क्यों आती है !
ये हमने प्यार से
जिन पत्थरों को पूजा था
उन्हीं के दिल से
धड़कने की सदा आती है !
अभी तो तैरना सीखा
था तुमसे पानी में
तुम्हीं बताओ सुनामी
कहाँ से आती है !
बहा के अश्क जो
सदियों में दिल किया हल्का
तेरे अश्कों की नमी
बोझ बढ़ा जाती है !
ये कौन मौन की वादी
में यूँ भटकता है
ये किसकी हूक है जो दिल को जला जाती है !
कि सूखे पत्तों के
दिल में भी दर्द होता है
कि हर एक चोट बहारों की
याद लाती है !
हमें तो आज भी है
तेरी ज़रुरत ऐ दोस्त
तुझीको हाथ झटकने की
अदा आती है !
हमें पता है तुझे बोलना नहीं भाता
तेरी खामोशी ही हर बात कह सुनाती है !
साधना वैद
चित्र गूगल से साभार
ख़ामोशी की जुबां...दिल की ख़ामोशी ही सुनती है ..
ReplyDeleteउम्दा अहसास !
मुबारक हो !
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल.
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ReplyDeleteबहा के अश्क जो सदियों में दिल किया हल्का तेरे अश्कों की नमी बोझ बढ़ा जाती है !
ReplyDelete.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .आभार छोटी मोटी मांगे न कर , अब राज्य इसे बनवाएँगे .” आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
बहुत खूबसूरत गजले कही है आपने साधना जी
ReplyDeleteसाभार...........
वाह क्या बात है दिल को छूती भावपूर्ण गजल |
ReplyDeleteआशा
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही बढ़ियाँ गजल...
बेहतरीन...
:-)
बहुत ही सुंदर गजल,,,,
ReplyDeleteRECENT POST: पिता.
हमें तो आज भी है तेरी ज़रुरत ऐ दोस्त
ReplyDeleteतुझीको हाथ झटकने की अदा आती है !
ये लाइने दिल को छू गयी
ये कौन मौन की वादी में यूँ भटकता है
ReplyDeleteकि मन की गलियों में चलने की भनक आती है !
...वाह! बहुत उम्दा ग़ज़ल...
बहुत उम्दा पंक्तियाँ
ReplyDeleteकि सूखे पत्तों के दिल में भी दर्द होता है
ReplyDeleteहर एक चोट बहारों की याद लाती है !
सार्थक सन्देश देती बहुत सुंदर गज़ल.
khoobsurat gazal ...
ReplyDeleteशुक्रिया साधना जी . मेरी कविता को पसंद करने के लिए
ReplyDeleteआपकी ये ग़ज़ल पढ़ी . बहुत सुन्दर लिखा है .. बधाई स्वीकार करिए
ज़िन्दगी के हर भाव को आपने इस ग़ज़ल में समाहित किया है .
विजय
www.poemsofvijay.blogspot.in
कि जिनकी खुशबू से मौसम में खुशगवारी थी , उन्हीं गुलों को गिराने हवा क्यों आती है !
ReplyDeleteबेहतरीन भाव लिए खूबसूरत ग़ज़ल ...
अभी तो तैरना सीखा था तुमसे पानी में
ReplyDeleteतुम्हीं बताओ सुनामी कहाँ से आती है ! ....
सुनामी का पता हो जाये तो तुमसे कहते हैं
तुम्हारा नाम भूले से जुबां पर हम न लायेंगे ....
बहुत सुन्दर अलफ़ाज़. दाद स्वीकारें.
ReplyDeleteगहन भाव लिये ... बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteहमें पता है तुझे बोलना नहीं भाता
ReplyDeleteतेरी खामोशी ही हर बात कह सुनाती है !
बहुत खूबसूरत अहसास... आभार