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Wednesday, November 20, 2013

नियति














जब मन और आत्मा को तृप्त कर देने वाली
उच्च स्वर में गूँजती
संगीत की मधुर स्वर लहरियाँ
शनै शनै नेपथ्य में जा
धीमी होती जाती हैं और सहसा ही
शून्य में विलीन हो जाती हैं
तो कैसा लगता है !
जब सुदूर यात्रा पर जाने वाले
अत्यंत प्रिय स्वजन का हाथ
ट्रेन के साथ भागते-भागते भी
आपके हाथों से छूटता जाता है
तो कैसा लगता है !
जब बहुत कुछ कहने को आतुर
लेकिन कुछ भी कह सकने में विफल
अधरों की गूढ़ भाषा को
नयनों में छलछला आये
आँसुओं की सरल भाषा में भी
कोई ना पढ़ पाये
तो कैसा लगता है !
जब सारे संसार की अक्षुण्ण खुशियों को
अपनी मुट्ठी में बाँध लेने का भ्रम
पल भर में ही उनके रेत की तरह
सरक कर हथेलियों को
रीता कर जाने से टूट जाता है
तो कैसा लगता है !
जब तृषा से दरकते शुष्क अधरों पर
शबनम की दो बूँदें डालने से पहले ही
किसीके हाथ काँप जायें और
जीवनदायी वे अनमोल बूँदें
धरा पर गिर कर नष्ट हो जायें
तो कैसा लगता है !
शायद यही जीवन की गति है,
शायद यही विधाता की कृति है,
शायद हर इंसान के हिस्से में
ज़िंदगी के इन्हीं दस्तावेजों की एक प्रति है
या फिर
खोने और पाने की यह प्रक्रिया ही
शायद हर इंसान की नियति है !

साधना वैद

  


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