एक आवारा सा ख़याल,
एक बेतरतीब सी सोच,
एक ज़िद्दी सी याद,
एक अनगढ़ सी मूरत,
वक्त के एल्बम में
पीली पड़ी ढेर सारी
धुँधली तस्वीरों में
एक बिलकुल साफ़ ताज़ी
चमकती सी तस्वीर,
जाने क्यों गाहे बेगाहे
फुसफुसा कर कानों में
जीने का मन्त्र सा
फूँक जाती है,
नयनों की कोरों में
खुशी का उजास
भर जाती है,
बरसों से मौन पड़े कंठ में
एक सुरीली तान के
मधुर सुरों की
सरगम को जगा जाती है,
उदासी से विवर्ण मुख पर
आस और विश्वास के
प्रसाधन लगा
चहरे को चमका जाती है
और मुद्दत से भिंचे
मौन रहने के आदी अधरों पर
एक मीठी सी मुस्कान को
आमंत्रित कर जाती है !
ऐसा लगता है जैसे
कोई आस पास है !
साधना वैद
No comments :
Post a Comment