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Saturday, August 16, 2014

सुहाना सफर – यूरोप

पहला पड़ाव - म्यूनिख

कभी-कभी ऐसा लगता है कि यायावरी के जीवाणु मेरे रक्त में ही हैं ! नये-नये शहरों और स्थानों के बारे में जानने का मुझे हमेशा से ही बहुत शौक रहा है ! जब छोटी थी अपने मम्मी बाबूजी के साथ और विवाह के बाद पतिदेव के साथ यथेष्ट घूमने के अवसर मिले ! लेकिन उन दिनों इतना समय नहीं मिल पाता था कि अपने अनुभवों को शब्दों के रूप में सहेज कर स्थायित्व दे सकूँ ! अब जब बच्चे आत्मनिर्भर होकर अपनी दुनिया में सेटिल हो गये हैं और हम भी अपने लिये कुछ वक्त निकाल पाने की स्थिति में आ गये हैं तो घूमने का मज़ा दोगुना हो गया है ! खुशकिस्मती से हमारे बच्चों की फितरत में भी यही शौक कूट-कूट कर भरा हुआ है ! बड़ा बेटा शब्द अमेरिका में सेटिल्ड है ! जब भी हम लोग उसके पास यू एस जाते हैं वह हमें खूब घुमाता है ! यूरोप को अब तक हमने सिर्फ नक़्शे पर ही देखा था ! सन् 2005 में नवंबर माह में जब वह सपरिवार भारत आया तो उसने अमेरिका वापिस लौटते समय हम लोगों के साथ यूरोप घूमने का एक बहुत ही दिलचस्प प्रोग्राम बना लिया ! कम समय, कम थकान और भरपूर किफायत के साथ किसी भी स्थान के लगभग सभी महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल कैसे देखे जा सकते हैं इस कला में उसने खूब महारत हासिल कर ली है ! कई दिनों के अध्ययन के बाद उसने यह कार्यक्रम बनाया और तदनुसार सभी शहरों में होटल वगैरह की बुकिंग भी उसने पहले से ही ऑनलाइन कर ली ! मन उत्साह और आनंद से भरा हुआ था ! यूरोप यात्रा के लिये हम पाँच लोगों का काफिला तैयार हो चुका था ! इस ग्रुप का सबसे नन्हा सदस्य मेरा पोता श्रेयस था जो उस वक्त मात्र दो वर्ष का था !














31 दिसंबर 2005 को लुफ्तांसा एयर लाइन्स की फ्लाईट से हम लोग दिल्ली से सुबह 9.55 पर म्यूनिख के लिए रवाना हुए ! फ्लाईट लगभग आठ घंटे की थी ! लेकिन जब म्यूनिख एयरपोर्ट पर जहाज ने लैंड किया तो वहाँ स्थानीय समय के अनुसार दिन का डेढ़ बजा था ! कन्वेयर बेल्ट से लगेज कलेक्ट करते और एक्स्ट्रा सामान लेफ्ट लगेज सेंटर में रखवाने के बाद हम लोगों ने लोकल ट्रेन ( S-Bahn ) Hauptbahnof पकड़ी और होटल ट्राईप पहुँच गये जहाँ हमारे लिये कमरे पहले से ही बुक थे ! थोड़ा फ्रेश होकर और कुछ देर आराम करने के बाद हम लोग घूमने के लिये निकल पड़े ! मेट्रो स्टेशन से लोकल ट्रेन पर सवार हो हम लोग Odeonplatz Metro Station पहुँचे ! शाम हो चुकी थी ! हल्की-हल्की फुहार पड़ रही थी ! आने वाले नव वर्ष की पूर्व संध्या थी ! खूब ठण्ड थी लेकिन फिर भी मौसम बहुत खुशगवार था ! स्टेशन से पैदल सैर करते हुए हम Marienplatz पहुँचे !

नए वर्ष के स्वागत में सजे, रोशनी में नहाये Marienplatz में अद्भुत रौनक थी ! सजी हुई दुकानों में खूब भीड़ थी ! रोड्स पर भी बहुत खूबसूरती के साथ अनेकों दुकानें सजी हुई थीं ! जगह-जगह परफॉर्मिंग आर्टिस्ट्स अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे ! कोई एकोर्डियन बजा रहा था तो कोई खुद गा रहा था, कोई किसी कार्टून कैरेक्टर के वेश में सजा बच्चों को लुभा रहा था तो कोई नख से शिख तक रंगा पुता स्टेचू बना खड़ा हुआ था ! 
सब कुछ बहुत भव्य और खूबसूरत लग रहा था ! बारिश होने के बावजूद भी सड़कें एकदम साफ़ सुथरी थीं और जगह-जगह बैठने की व्यवस्था थी कि आप थके बिना अपने आस पास होने वाली गतिविधियों का आनंद उठा सकें ! बहुत मज़ा आ रहा था ! घूमते फिरते विंडो शॉपिंग करते काफी देर हो गयी थी ! भूख भी लग आयी थी ! सामने मेक्डोनाल्ड रेस्टोरेंट दिखाई दे रहा था ! बिना वक्त गँवाए हम लोगों ने वहाँ सुस्वादिष्ट डिनर लिया ! खाना तो स्वादिष्ट था ही हीटेड रेस्टोरेंट में हाथ पैर भी गर्म हो गये और थकान उतारने का भी यथेष्ट अवसर मिल गया !

नई ऊर्जा के साथ हम लोग फिर सैर के लिये निकल पड़े ! पैदल चलते हुए हम लोग Karlsplatz पहुँचे ! खूबसूरत स्थान, सड़क के दोनों ओर भव्य कलात्मक इमारतें और खुशनुमां वातावरण में भरपूर आनंद उठाते लोगों के खिले हुए ताज़गी भरे चहरे मन में अद्भुत प्रसन्नता का संचार कर रहे थे ! काफी रात हो गयी थी ! सर्दी भी गज़ब की पड़ रही थी ! श्रेयस भी उनींदा हो रहा था ! सुबह के लिये भी ऊर्जा बचा कर रखनी थी सो स्वादिष्ट आइसक्रीम का मज़ा लेते हुए हम लोग लोकल ट्रेन से अपने होटल लौट आये ! 

अगली सुबह डकाउ कंसंट्रेशन कैम्प जाने का प्रोग्राम पहले से ही तय था ! आने वाले अगले आठ दिनों में यूरोप के कुछ चुनिन्दा शहरों में हम क्या-क्या देखने वाले हैं और कितना मज़ा आने वाला है इसीके बारे में बातें करते हुए रात के बारह कब बज गये पता ही नहीं चला ! बारह बजे नव वर्ष की शुभकामनायें एक दूसरे को देने के बाद शब्द और कविता सोते श्रेयस को उठा कर अपने कमरे में सोने के लिये चले गये ! हम भी नये वर्ष की नयी सुबह के साथ नये स्थानों की सैर और नये-नये अनुभवों को जीने की उत्कंठा मन में लिए सोने के प्रयास में जुट गये लेकिन नये देश, नये परिवेश, नये वातावरण और नये स्थान में नींद आँखों से कोसों दूर थी ! आज की कहानी यहीं तक ! पहली जनवरी के संस्मरण सुनाने के लिये जल्दी ही आपसे फिर मिलूँगी ! तब तक के लिये फिलहाल नमस्कार !






साधना वैद

 यात्रा संस्मरण , यूरोप , म्यूनिख , जर्मनी

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