धरा विकल
अविरल निर्मल
बहता चल
कल कल चपल
झर झर निर्झर !
सिंचित कर
चिर शुष्क अधर
धरा तृषित
दे कर भर भर
अमृत मधुकर !
भर दे व्रण
धर मन में प्रण
प्लावित होगा
प्रति पल औ क्षण
माता का कण कण !
मुस्कुरायेगी
हरी चूनर ओढ़
गायेगी धरा
थिरकेगा गगन
झूमेगी मंद हवा !
साधना वैद
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