Followers

Wednesday, December 3, 2014

मैं जान जाती हूँ


जब सुबह की समीर पहले की तरह
ना तेरे गीत गुनगुनाती है
ना ही तेरी खुशबू लेकर आती है
मैं जान जाती हूँ
आज अभी तक तेरी सुबह नहीं हुई है !
जब दिन की फिजां पहले की तरह
चुस्त दुरुस्त नज़र नहीं आती
ना ही सूरज से हमेशा की तरह
वह अविरल ताप झरता है
मैं जान जाती हूँ
आज ज़रूर तेरी तबीयत नासाज़ है !
जब खुशनुमां शामों की तमाम
मीठी सी सरगोशियों के बाद भी
ना किसी बात से मन बहलता है
ना ही कोई मधुर गीत दिल को छूता है
मैं जान जाती हूँ
आज तू बहुत उदास है !
जब रात अपनी सारी गहनता के साथ
नीचे उतर आती है,
जब चाँद सितारे आसमान में
एकदम मौन स्तब्ध अपने स्थान पर
रत्न की तरह जड़े से दिखाई देते हैं,
जब पास से आती पत्तों की
धीमी सी सरसराहट भी
अनायास ही बेचैन कर जाती है
मैं जान जाती हूँ
नींद तेरी आँखों से कोसों दूर है !
बस इतनी सी ख्वाहिश है
जैसे तेरे बारे में इतनी दूर रह कर भी
मैं सब कुछ जान जाती हूँ
काश तुझे भी खबर होती
डाल से टूटने के बाद 
ज़मीन पर गिरे फूल पर
क्या गुज़रती है !
 


साधना वैद 

No comments :

Post a Comment