जीवन यापन के लिए
करना है उद्योग
लेकन समुचित काम का
बना नहीं संयोग !
ऑफिस-ऑफिस फिर रहे
बैग हाथ में थाम
व्यर्थ हुईं सब
डिग्रियाँ मिला न कोई काम !
रद्दी का हैं ढेर सब
कहीं न इनका मोल
सुनने को मिलते रहे
सबके कड़वे बोल !
कब तक हम भटका करें
नाकारा बेकार
नैया कर दो पार अब
जग के पालन हार !
बीत रहा जीवन फिसल ज्यों
हाथों से रेत
संभल न जाते हम तभी
जो आ जाती चेत !
इससे तो हम सीखते
हाथों का कुछ काम
‘बेकारों’ की लिस्ट
से हट तो जाता नाम !
मिहनत करने से भला
क्यों कतराते लोग
कुर्सी पर बैठे रहे
लगा लिए सौ रोग !
बेशक करते रात दिन
हाड़ तोड़ कर काम
‘बेकारी’ के दंश से
बच जाते श्रीमान !
श्रमिकों की महिमा
बड़ी श्रम का जग में मान
हुनरमंद इंसान का
होता जग में गान !
श्रम बिन शिक्षा
व्यर्थ है जब होगा यह ज्ञान
इनके समुचित मेल से पाओगे सम्मान !
साधना वैद
No comments :
Post a Comment