हास है, उल्लास है, उत्कर्ष
है
मुदित मन से आ रहा नव
वर्ष है !
हो रहा है अवतरण नव
वर्ष का
और है अवसान बीते
साल का
प्रफुल्लित कण-कण
प्रकृति का हर्ष से
पर्व अनुपम है सकल
संसार का !
दर्द दुःख की कालिमा
से मुक्त हो
उदित हो सूरज
क्षितिज के भाल पे
उल्लसित हो थिरकने
वसुधा लगे
मुग्ध हो संसृति
प्रकृति की चाल पे !
बह चले गंगा पराई
पीर से
पिघलता हो मन किसी
बदहाल पे
जंग और आतंक की
बातें न हों
शुभाशंसा हो लिखी हर
भाल पे !
शुद्ध हो मन आचरण भी
शुद्ध हो
प्रेम और करुणा से अंतस
हो भरा
रख सकूँ मरहम किसी
के ज़ख्म पर
कोटि सुख पर दर्द को
मैंने वरा !
है हरा हर ज़ख्म जो
सौगात में
साल बीता दे गया धर
थाल में
कब तलक रोते रहेंगे
हम उन्हें
हमें तो जीना ही है
हर हाल में !
भूल सब संकल्प यह मन
में करें
हर कदम आगे बढ़ें दृढ़
चाल में
है मिटाना बैर और
नफ़रत हमें
प्रेम मय संसार हो
नव साल में !
इसी मंगलकामना के
साथ आप सभी को नूतन वर्ष २०१७ की हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनायें !
साधना वैद
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