बाप रहा ना बाप सा, पूत रहा ना पूत 
पाँसे दोनों चल रहे, बिछी हुई है द्यूत ! 
राजनीति के खेल में, रिश्तों का क्या काम 
पापा चाचा बैठ घर, भजें राम का नाम ! 
सत्ता छूटे ना छुटे, समझो ना यह बात 
जो आओगे बीच में, पड़ जायेगी लात ! 
कुर्सी से इस मोह का, सीखा तुमसे पाठ 
मैं बैठा इस पर रहूँ, तुम पकड़ो अब खाट ! 
अवसरवादी हैं यहाँ, राजनीति में लोग 
सब हैं चखना चाहते, सत्ता का सुख भोग ! 
कौन तुम्हारा मित्र है, याद किसे उपकार 
अब सब उसके साथ हैं, जिसकी है सरकार ! 
सत्ता का यह रूप भी, है कितना बलवान 
उगते सूरज को सभी, करते मिले प्रणाम ! 
साधना वैद 
चित्र - गूगल के सौजन्य से 

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