वर्षों से भटक रहे थे हम तुम
ज़िंदगी की इन अंधी गलियों में
कुछ खोया हुआ ढूँढने को
और मन प्राण पर सवार
कुछ अनचाहा कुछ अवांछित
बोझ उतार फेंकने को !
थके हारे बोझिल कदमों से
जब घर में पैर रखा तो
अस्त व्यस्त बिखरे सामान से
टकरा कर औंधे मुँह गिरे !
चोट लगी, दर्द भी हुआ
तभी यह ख़याल आया
आज बहुत करीने से
कमरे की हर चीज़ को सँवार देंगे
कमरे के बाहर का बरामदा
बरामदे के आगे का बागीचा
सब बिलकुल व्यवस्थित कर
शीशे सा चमका देंगे !
एक दूसरे को बता कर
हम दोनों अपने-अपने घर की
सफाई में जुट गए !
और देखो मेहनत रंग ले आई
हम दोनों को ही अपनी
खोयी हुई चीज़ें मिल गयीं !
मुझे बगीचे के सबसे
निर्जन कोने में पड़ी बेंच पर
सूखे पत्तों के नीचे दबी ढकी
मेरी सबसे कीमती
सबसे अनमोल उपलब्धि मिल गयी
जिसे शायद कभी बेध्यानी में
या बहुत ही अनमने पलों में
मैं गलती से वहाँ छोड़ आई थी !
बड़े जतन से सहेज कर उसे मैं
घर के अन्दर ले आई !
और अपने उर अंतर के
सबसे निजी कोने में
जीवन भर के लिए मैंने
उसे सुरक्षित कर लिया !
मेरी तलाश पूरी हो गयी थी !
उसी दिन वहाँ अपने घर में
तुम्हारी तलाश भी पूरी हुई थी !
तुमने ही तो बताया था मुझे !
अपने कमरे की सफाई में
तुम्हें भी पुरानी जर्जर किताबों की
अलमारी में कहीं दबा पड़ा
वह सामान मिल गया था
जिसका वजूद, जिसका अहसास
वर्षों से तुम्हारी आत्मा,
तुम्हारी चेतना पर एक भारी
शिला की तरह पड़ा हुआ था !
उसे अपने हृदय से उतार तुम
मुक्ति की साँस लेना चाहते थे
स्वयं को उससे उन्मुक्त कर
पूर्णत: स्वछन्द हो आसमान में
ऊँचे खूब ऊँचे उड़ना चाहते थे !
तुम्हारी चाह भी पूरी हुई
एक पल भी गँवाए बिना
तुमने उस अवांछनीय वस्तु को
झाड़ कर अपने घर से
बाहर कर दिया और कबाड़ की
कोठरी में फेंक दिया !
अब तुम्हारी आत्मा भी निर्बंध है
तुम्हारी चेतना पर कोई बोझ नहीं है !
जान तो गए हो ना !
वो कुछ हमारी यादें थी
कुछ हमारी चाहतें थीं जिन्हें
मैंने बड़े प्यार से
अपने अंतर में संजो लिया
और तुमने बड़ी बेरहमी से
उन्हें दिल के बाहर कर दिया !
अच्छा ही तो है
काँटा निकला पीर गयी !
साधना वैद
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