दीवार पर टंगी
बापू की तस्वीर उदास है
स्वर रुंधे हैं, आँखें बे आस हैं
कल जन्मदिन जो आ रहा है
लोगों की बनावटी, झूठी, असहनीय,
खोखली बातों को सुनने का, झेलने का
झेल कर असहज होने का
वही मनहूस दिन कल
फिर से जो आ रहा है !
बापू के मन में
विचारों का तूफ़ान
तेज़ रफ़्तार से चलता रहा
लुटा दिया सर्वस्व जिन पर
ताउम्र उन्हीं की आँखों में
मैं किरकिरी की तरह
खटकता रहा !
सारे सुख, सारे वैभव त्याग
एक धोती में मैंने अपना
सारा जीवन काट दिया
लेकिन उनके ऐशो आराम में
कहीं मैं रुकावट न बन जाउँ
इस डर से मेरे साथियों ने मुझसे ही
अपना रास्ता काट लिया !
मेरी बातों से, मेरी नीतियों से
विदेशी हुक्मरानों की सोच बदली
देश की सूरते हाल बदली
और देश आज़ाद हुआ
लेकिन मेरी हर सोच, हर बात,
हर सलाह मेरे ही देशवासियों को
नागवार गुज़री और कुछ
असामाजिक तत्वों के बरगलाने से
देश साम्प्रदायिक ताकतों का
गुलाम हुआ !
मेरी सलाह, मेरे मशवरे,
मेरे भाषण, मेरे तस्किरे,
मेरे व्रत, मेरे उपवास
किसी काम न आये,
देश में दंगे हुए, फूट पड़ गयी
बँटवारा हो गया
जनता गाजर मूली की तरह
कटती रही उसे बचाने
ना तो रहीम आये और
ना ही राम आये !
सारी हिंसा का ठीकरा
मेरे सिर फोड़ दिया गया
और मेरी सारी सद्भावनाओं
सारी हित चिंताओं को
परे सरका मुझे गोलियों से
भून दिया गया !
मुझे यूँ नींद में सुलाने के बाद
अब किसलिए यह
ढोंग और दिखावा,
सहा नहीं जाता मुझसे
अपनों के ही हाथों मिला
यह विश्वासघात और छलावा !
बंद करो श्रद्धा और भक्ति का
यह झूठा अभिनय,
यह देशप्रेम और नैतिकता की बातें
जो हो रहा है वह होने दो,
मत डालो मेरी अंतरात्मा पर
राष्ट्रपिता होने के दायित्व का
और गुरुतर बोझ
मैं थक गया हूँ बहुत
अब तो मुझे चैन से सोने दो !
साधना वैद
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