ढोंगी
बाबाओं के आश्रमों का मकड़जाल
इस लेख
का मकसद उन सच्चे गुरुओं और उनके द्वारा संचालित आश्रमों का अपमान करना बिलकुल
नहीं है जो अपनी निस्वार्थ सेवा से जनता का भला कर रहे हैं ! प्रयत्न यह है कि उन
कारणों को समझा जाए जिनकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में लोग अनेक कपटी बाबाओं के जाल
में फँसते चले जाते हैं !
मनुष्य समाज
का एक हिस्सा बन कर रहता है ! रोटी, कपड़ा, मकान आदि अपनी बुनियादी आवश्यकताओं के
लिए वह कोई न कोई व्यवसाय चुन लेता है ! लेकिन इनके अलावा जीवन में अनेकों ऐसी
समस्याएँ या परिस्थितियाँ पैदा हो जाती हैं जिनके समाधान एवं निवारण के लिए उसे
किसी के सलाह मशवरे या मार्गदर्शन की आवश्यकता भी होती है जो अक्सर अपने करीबियों
या मित्रों से कभी तो मिल जाती है और कभी नहीं भी मिल पाती है ! हम सभी किसी न
किसी धर्म का अनुसरण करते हैं ! कुछ नास्तिक भी होते हैं लेकिन उनके बारे में फिर
कभी बात करेंगे ! अपने देश में हिन्दुओं का प्रतिशत सबसे अधिक होने की वजह से गुरू
भी संख्या में सबसे अधिक हिन्दुओं में ही है !
इन्ही
गुरुओं में कुछ तो वास्तव में होते हैं सच्चे महात्मा एवं पथ प्रदर्शक और कुछ के चोले
में छिपे रहते हैं गुरु घंटाल ! मनुष्य के रूप में छिपे हुए ऐसे आदमखोर भेड़िये जो अनेक
प्रकार के हथकंडों को अपना कर लोगों को अपने जाल में फँसाने में कामयाब हो ही जाते
हैं ! दरअसल इस मायाजाल का आरम्भ होता है प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले और लुभावनी
बातों से लोगों को सम्मोहित कर लेने की क्षमता रखने वाले ढोंगियों की सत्संग सभाओं
से जो अक्सर शुरू तो होती हैं किसी पार्क के कोने या छोटे मोटे मंदिर के प्रांगण से
लेकिन जब भीड़ बढ़ने लगती है तो इन धर्म सभाओं के लिए बड़े बड़े हॉल या पंडालों की
व्यवस्था भी होने लगती है ! उनमें दान पात्र भी आ जाते हैं और धन भी जमा होने लगता
है ! एक अच्छे व्यापारी की तरह इस धन का निवेश ये गुरुघंटाल बाबा लोग बड़ी चतुराई
से करते हैं ! पहले सत्संग के बाद कुछ प्रसाद, फिर चार छ: महीने में एकाध बार किसी
बड़े गुरु के नाम का भंडारा और फिर किसी अच्छी जगह पर, जो अक्सर किसी मंदिर की
बगीची इत्यादि होती है, वहाँ पर नियमित भंडारों का आयोजन किया जाने लगता है ! देश
की अधिकाँश जनता धर्म भीरू तो है ही साथ ही मनोरंजन की भी भूखी है ! ऊपर से जहाँ
मुफ्त में प्रसाद के रूप में स्वादिष्ट भोजन भी मिले तो भक्त लोग तो सपरिवार आते ही हैं अपने
मित्रों व सम्बन्धियों को भी साथ में ले आते हैं ! जनता का जमावड़ा बड़ा होता देख
पोलीटिकल पार्टियाँ भी बहती गंगा में हाथ धोने के लिए उस गुरु घंटाल में रूचि लेने
लगती हैं क्योंकि उनको इसमें अपने वोट बैंक की खुशबू आने लगती है ! नेताओं को देख
उनके चमचे, सरकारी अफसर भी हाजिरी लगाने लगते हैं ! पुलिस का आयोजन और सुरक्षा का
प्रबंध तो स्वाभाविक रूप से हो ही जाता है क्योंकि आखिर सरकार और पुलिस जनता की
सुरक्षा के लिए ही तो बनी हैं ! भंडारे मेले का रूप ले लेते हैं !
अगला
कदम है मुफ्त की सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर उसको आश्रम या डेरे का नाम दे देना !
इसके लिए सत्ताधारी राजनैतिक दल के नेता और उनके जी हजूरी करने वाले सरकारी अफसर
खुद ही इशारा कर ऐसी जगह उपलब्ध करा देते हैं जहाँ पर मनमाना निर्माण कर धीरे धीरे
उस आश्रम को एक भव्य रूप देकर गुरुघंटाल खुद उसके राजा बन जाते हैं ! वे मुकुट पहन
सिंहासन पर बैठने लगते हैं और अपने लिए निजी सुरक्षा कर्मियों को नियुक्त कर स्वयं
ही अपने को विभिन्न विशेषणों और उपाधियों से विभूषित कर एक सिद्ध महात्मा बन जाते
हैं ! उनकी महिमा का यश फैलते ही श्रद्धालुओं की संख्या में अपार वृद्धि हो जाती
है और आश्रमों की आमदनी बढ़ने लगती है !
दूर से
आने वाले भक्तों को आकर्षित करने के लिए आश्रम में ही उनके रहने की व्यवस्था कर दी
जाती है ! मनोरंजन के साधन बनाए जाते हैं जो देखने में तो धार्मिक लगते हैं लेकिन
होते चकाचौंध वाले हैं ! कुछ ही समय में ये आश्रम पूरी तरह से व्यावसायिक होलीडे
होम बन चुके होते हैं ! लाभ की अपार संभावनाएं देख व्यवसायी भी पैसा कमाने के लिए
इनसे जुड़ने लगते हैं ! धूर्त ठग भी इस स्थान में अपना अच्छा भविष्य देख चेले बन कर
आश्रम के सेवक बन जाते हैं और गुरु के साथ जुड़ जाते हैं ! ये धूर्त लोग गुरु को
ठगी के नए-नए तरीके समझाने लगते हैं जो धर्म के नाम पर किये जा सकते हैं ! अब एक
ही स्थान पर भोली भाली जनता और विकृत मनोवृत्ति वाले ठगों की सलाह पर चलने वाले
गुरुघंटाल का “सत्संग” होने लगता है ! गुरू की कामयाबी को देख चकित जनता उसको
भगवान् मानने में देर नहीं करती ! कुछ मूर्ख भक्त तो उसे पूरी तरह से और कुछ कम
बुद्धि के लोग आधे मन से उसे ईश्वर के समकक्ष मानने लगते हैं ! कुछ लोग जो ऐसा
नहीं मानते वो उस जगह को एक कम खर्च में समय व्यतीत करने का अच्छा मनोरंजक स्थल तो
मान ही लेते हैं ! इस भीड़ भाड़ और आपाधापी में कुछ अति दुखी और अनेक कारणों से
पीड़ित और टूटे हुए परिवार भी आ फँसते हैं और इन ठगों के जाल में अपने को पूरी तरह
से समर्पित कर देते हैं ! आम तौर पर इस भीड़ में अपने हालात और समस्याओं से परेशान
और दुखी महिलाओं की संख्या अधिक होती है जो इन गुरुघंटाल बाबाओं के पास उनके निदान
के लिए आती हैं ! किसीका पति बीमार है तो किसीकी बेटी का विवाह नहीं हो रहा है,
किसीका बेटा बेरोजगार है तो कोई गृह कलह की मारी हुई है, किसीका बच्चा मनोरोगी है
तो किसीकी गृहस्थी में पराई स्त्री की दखलन्दाजी है ! गुरुघंटाल ऐसी महिलाओं की
मन:स्थिति को ताड़ लेते हैं और फिर उनके समाधान बताने के लिए उन्हें पूरी तरह से
अपने चंगुल में फँसा लेते हैं ! तरह तरह के व्रत उपवास, यज्ञ अनुष्ठान करने की
सलाहें उन्हें देते हैं और फिर उन्हें निष्पादित करने के उचित एवं प्रभावी तरीके
सिखाने के लिए आम सत्संग सभाओं के आगे पीछे अलग समय दे उन्हें बुलाया जाने लगता है
! धन की वर्षा, ऊपर से दूषित मनोवृत्ति के ठगों का प्रभाव और मूर्ख परिवारों का
बिना शर्त समर्पण अनैतिकता और अय्याशी की फसल के उगने के लिए एक अच्छी ज़मीन तैयार
कर देता है जिसके दुष्परिणामों का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है और अब तो ये काण्ड
सार्वजनिक हो ही गए हैं !
अपने
अन्दर झाँक कर यदि हम देखें तो इस दूषित वातावरण को बनाने के लिए क्या हम खुद ही
ज़िम्मेदार नहीं हैं ? हम खुद ही इन गुरु घंटालों को निर्मित करते हैं, उन्हें
पालते पोसते हैं, उनकी पूजा कर उन्हें ‘भगवान्’ का दर्ज़ा देते हैं, उनकी सुख
सुविधा संपन्न एवं ऐश्वर्यपूर्ण जीवन शैली को बनाए रखने के लिए स्वयं कंगाल होते
चले जाते हैं लेकिन उफ़ तक नहीं करते और हम में से ही बहुत सारे ऐसे भी हैं जो सब
कुछ जानते हुए भी केवल इसीलिये चुप रह जाते हैं कि उन्हें अपनी व अपने परिवार की
सुरक्षा के लिए खतरे का आभास होता है क्योंकि ये तथाकथित ‘भग़वान’ यदि कुपित हो जायें
तो अपने बागी भक्तों को गाजर मूली की तरह नेस्तनाबूद कर देने में भी पल भर की देर
नहीं करते ! एक तरह से समाज के लिए ये सबसे बड़ा खतरा बन जाते हैं ! ये उन
अपराधियों से भी अधिक खतरनाक हो जाते हैं जो पुलिस की मोस्ट वांटेड की लिस्ट में
होते हैं ! उनके नाम और पहचान तो सार्वजनिक होती है तो स्वयं को पुलिस से बचाने और
छुपाने का इंतजाम उन्हें खुद ही करना होता है लेकिन इन तथाकथित ‘भगवान्’ बने अपराधियों
को तो पूरा सहयोग समर्थन और संरक्षण हम आप जैसे आम लोग ही दे रहे हैं और वह भी
पूरे दम ख़म के साथ ! कोई हाथ लगा कर तो देख ले ‘भगवान्’ को जान देने के लिए हज़ारों
की भीड़ खड़ी होती है !
तो मित्रों
यही वक्त है अपनी आँखें खोलने का, अपनी अंतरात्मा को जगाने का और अपनी
प्राथमिकताओं को तय करने का कि हमें किसका साथ देना है और किसके हाथ मजबूत करने
हैं ! सोने के सिंहासनों पर बैठे सात सितारा होटलों से भी अधिक सुख सुविधाओं के
साथ ऐश्वर्यपूर्ण जीवन बिताने वाले इन भोग विलासी ‘सन्यासी साधू संतों’ का या इनके
हाथों छली जाने वाली और इनकी कुत्सित मनोवृत्तियों का शिकार होने वाली हमारी भोली
भाली भक्त बिरादरी का ? निर्णय आपके हाथ में है !
साधना
वैद
आपका यह लेख पहले भी पढ़ा था। आज भी स्मृति में है।
ReplyDeleteविवेक से काम लेना चाहिए तभी गुरुघंटालों के शिकंजे से बच सकते हैं। इस संदर्भ में हरिशंकर परसाईं जी का व्यंग्य 'टार्च बेचनेवाले' भी उल्लेखनीय है।
अपने अन्दर झाँक कर यदि हम देखें तो इस दूषित वातावरण को बनाने के लिए क्या हम खुद ही ज़िम्मेदार नहीं हैं ? हम खुद ही इन गुरु घंटालों को निर्मित करते हैं, उन्हें पालते पोसते हैं, उनकी पूजा कर उन्हें ‘भगवान्’ का दर्ज़ा देते हैं,
ReplyDeleteसही कहा आपने गलती हमारी ही हैं ,सादर नमस्कार
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! इस लेख पर पहले कई प्रतिक्रियाएं आईं थीं लेकिन गूगल + के समाप्त होते ही समूचा ब्लॉग खाली हो गया टिप्पणियों से ! आपके माध्यम से पाठक पुन: इस आलेख को पढ़ पा रहे हैं हृदय से आपकी आभारी हूँ ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteजी मीना जी ! गूगल + के बंद हो जाने के कारण सारी प्रतिक्रियाएं गायब हो गयीं ! धर्म के नाम पर क्या क्या अधर्म लोग कर रहे हैं यही इस आलेख के माध्यम से कहना चाहती हूँ ! हम कैसे इसे रोक सकते हैं और कैसे इससे अपना बचाव कर सकते हैं यह बताने की चेष्टा की है ! आपको आलेख अच्छा लगा आपका हृदय से धन्यवाद !
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! इस ग़लत और दोषपूर्ण परम्परा को समाप्त करना चाहती हूँ ! उसके लिए स्वयं के अन्दर झाँँकना भी अत्यंत आवश्यक है ! आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर चिन्तनपरक आलेख...
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