चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे !
जहाँ दिखा था पानी में प्रतिबिम्ब तुम्हारा ,
उस इक पल से जीवन का सब दुःख था हारा ,
कितनी मीठी यादों के थे नभ में तारे ,
चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे !
जहाँ फिजां में घुला हुआ था नाम तुम्हारा ,
फूलों की खुशबू में था अहसास तुम्हारा ,
मीठे सुर में पंछी गाते गीत तुम्हारे ,
चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे !
जहाँ हवा के झोंकों में था परस तुम्हारा ,
हर साये में छिपा हुआ था अक्स तुम्हारा ,
पानी पर जब लिख डाले थे नाम तुम्हारे ,
चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे !
शायद अब भी वहीं रुकी हो बात तुम्हारी ,
किसी लहर में कैद पड़ी हो छवि तुम्हारी ,
मेरे छूने भर से जो जी जायें सारे ,
चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे !
मन का रीतापन थोड़ा तो हल्का होगा ,
सूनी राहों का कोई तो साथी होगा ,
तुम न सही पर यादें होंगी साथ हमारे ,
चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे !
जादू की उस नगरी में जाना है मुझको,
हर तिलस्म को तोड़ तुम्हें पाना है मुझको,
जो आ जाओ रौशन होंगे पथ अँधियारे,
चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे !
हर तिलस्म को तोड़ तुम्हें पाना है मुझको,
जो आ जाओ रौशन होंगे पथ अँधियारे,
चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे !
साधना वैद
भावपूर्ण पोस्ट
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना उम्दा शब्द चयन |
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण और बहरीन लगी
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
ReplyDeleteआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
26/02/2019 को......
[पांच लिंकों का आनंद] ब्लौग पर.....
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आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
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धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर... उत्कृष्ट सृजन।
ReplyDeleteबहुत शानदार रचना के लिए बधाई |
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