नहीं अच्छे लगते
मुझे
ये पलाश के फूल !
नहीं लुभाते ये मेरा
मन
अंतर में चुभ जाते
हैं मेरे
ये बन के तीखे शूल !
होते होंगे औरों के
लिए
पलाश के ये फूल
प्रतीक प्रेम और
प्यार के
अनुराग और श्रृंगार
के !
मेरे लिए तो हो चुके
हैं अब
ये मेरे अंतर में सुलगते
चटकते धधकते अंगार
मेरे सर्वांग को
भस्मसात करते
मेरी मरणोन्मुख
चेतना का
एक असह्य सिंदूरी
श्रंगार !
रोपा था जब मैंने पलाश
का
एक नन्हा सा पौधा
मन में था कोमल
भावनाओं का
अपार अथाह विस्तार
थीं अनगिन उत्ताल
तरंगें
और था हर्ष और
उल्लास से
पुलकित सारा संसार !
प्रतीक्षा थी मुझे
पलाश के
इन फूलों के खिलने
की
प्रतीक्षा थी मुझे अपने
दूरस्थ
फ़ौजी प्रियतम से
मिलने की !
सोचा था आयेंगे जब
लौट के
वारूँगी उन पर पलाश
के फूल
भर दूँगी उनका मन
सुख से
सारे दुःख अपने जायेंगे
वो भूल !
लेकिन हो गया
वज्रपात
पड़ गयी सब अरमानों
पर धूल
खबर आ गयी आतंकी
हमले की
और उनकी शहादत का
गढ़ गया हृदय में शूल
!
सुर्ख पलाश के ये सुर्ख
फूल
कराते हैं अब मुझे
धू धू जलती चिता का
भान
और खिंचने लगते हैं इनके
संग
जैसे मेरे भी प्राण !
नहीं देखना चाहती
मैं इन्हें
क्या करूँ ? कहाँ
जाऊँ ?
कैसे इनसे अपनी नज़र
हटाऊँ ?
कौन हैं अब मेरा
यहाँ
किसे अपनी व्यथा सुनाऊँ
?
धधक उठा है नफ़रत का एक
भीषण दावानल मेरे अंतर
में
पलाश के इन फूलों के
लिए !
सामने खड़ा है ज़िम्मेदारियों
का
एक अलंघ्य पहाड़ और
एक अनंत असीम मरुथल
मुझे पार करने के
लिए !
साधना वैद
हमारे शूरवीर सैनिकों के लिए
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
कृतज्ञ देश कभी नहीं भूलेगा
उनका यह पराक्रम और उनकी शहादत !
सादर नमन
ReplyDeleteवहशियत की हद पार कर गई
श्रद्धाञ्जली
सादर
वीर शहीदों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-02-2019) को "चूहों की ललकार." (चर्चा अंक-3249) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
शहीदों के नमन के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति सोमवार 18 फ़रवरी 2019 को प्रकाशनार्थ "पाँच लिंकों का आनन्द" ( https://halchalwith5links.blogspot.com ) के विशेष सोमवारीय आयोजन "हम-क़दम" के अट्ठावनवें अंक में सम्मिलित की गयी है।
अंक अवलोकनार्थ आप सादर आमंत्रित हैं।
सधन्यवाद।
बहुत सुंदर रचना 👌 नमन देश के वीर सपूतों को
ReplyDeleteप्रतीक्षा थी मुझे अपने दूरस्थ
ReplyDeleteफ़ौजी प्रियतम से मिलने की !
सोचा था आयेंगे जब लौट के
वारूँगी उन पर पलाश के फूल
भर दूँगी उनका मन सुख से
सारे दुःख अपने जायेंगे वो भूल. ...भावपूर्ण रचना आदरणीया |वीर शहीदों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि|
सादर
वीर सपूतों को श्रद्धांजलि देती आपकी रचना आँखें नम कर गयी.
ReplyDeleteसादर.
बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी रचना.....
ReplyDeleteहमकदम के आज के अंक के लिए मेरी रचना के चयन के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है