न नींद न ख्वाब
न आँसू न उल्लास,
वर्षों से उसके नैन कटोरे
यूँ ही सूने पड़े हैं !
न शिकवा न मुस्कान
न गीत न संवाद,
सालों से उसके शुष्क अधरों के
रिक्त सम्पुट
यूँ ही मौन पड़े हैं !
न आवाज़ न आहट
न पदचाप न दस्तक,
युग-युग से उसके मन के
इस निर्जन वीरान कक्ष में
कोई नहीं आया !
न सुख न दुःख
न माया न मोह
न आस न निरास
न विश्वास न अविश्वास
न राग न द्वेष
हर ध्वनि प्रतिध्वनि से
नितांत असम्पृक्त एवं विरक्त
आजीवन कारावास का
दंड भोगता यह एकाकी बंदी
अपनी उम्र की इस निसंग
अभिशप्त कारा में
पूर्णत: निर्विकार भाव से
न जाने किस एकांत साधना में
एक अर्से से लीन है !
ऐसे में उसकी तपस्या में
‘खलल’ डालने के लिए
किसने उसके द्वार की साँकल
इतनी अधीरता से खटखटाई है ?
यह किसकी पदचाप है जो
शत्रु सेना के आक्रामक सैनिकों की
उद्दण्डता लिए हृदय को
भयाक्रांत कर देने पर आमदा है ?
ओह, तो यह तुम हो मृत्युदूत !
कह देना प्रभु से,
परम मुक्ति का तुम्हारा यह
अनुग्रह्पूर्ण सन्देश
या यूँ कह लो कि तुम्हारा यह
धमकी भरा आदेश
आज उस निर्विकारी ‘संत’ को
ज़रा भी प्रभावित नहीं कर पायेगा
आज वह अपने अंतर की
अतल गहराइयों में स्वयं ही
समाधिस्थ हो चुका है !
आज उसे किसी सहचर या
किसी विमान की दरकार नहीं !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और शब्द चयन |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका !
Deleteआज वह अपने अंतर की
ReplyDeleteअतल गहराइयों में स्वयं ही
समाधिस्थ हो चुका है !
आज उसे किसी सहचर या
किसी विमान की दरकार नहीं !
बेहतरीन कविता
हार्दिक धन्यवाद वर्षा जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteसुन्दर और सराहनीय बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteअहा ! समाधिस्थ इंसान की वृतियों को जगाना और उसके एकांत को खंडित करना प्राय मुमकिन नहीं | बहुत प्यारा सार्थक शब्द चित्र आदरणीया साधना जी | आपका लेखन अलग पहचान रखना है | हार्दिक शुभकामनाएं |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेणु जी ! सुन्दर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत आभार !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर !
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