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Monday, July 20, 2020

विकास या विनाश



वो कभी शहर से गुज़रे तो पूछेंगे
अरे सुलू !
यहीं हुआ करता था न आशियाँ हमारा
आम के इस घने छायादार पेड़ के नीचे ?
कितने परिंदे चह्चहाते थे हरदम और
हमारी अनवरत बातों में
अपना भी मीठा सुर मिला कर
कोयल कितने मीठे सुर में गाती थी,
कच्ची अमिया का स्वाद चखने के लिए
कितने तोते झुण्ड बना कर आ जाते थे
और तुम सुलू !
कैसी ललचाई नज़रों से
गदराई अमिया को देख कर खीझती थीं
ये तोते चोंच मार कर सारी अमिया
ऊपर पेड़ पर ही खराब कर देते हैं  
ये नहीं कि दो चार नीचे भी गिरा दें !
फिर मैं कभी गुलेल से ,कभी पत्थर से
तो कभी पेड़ पर चढ़ कर तुम्हारे लिए
झोली भर अमिया तोड़ दिया करता था !
आम का वह पेड़ कहाँ गया सुलू ?
विकास के नाम पर कट गया क्या ?
वो कभी शहर से गुज़रे तो पूछेंगे
बताओ ना सुलू
छोटे छोटे क्वार्टर्स की लम्बी सी कतार में यहाँ
एक घर तुम्हारा भी तो हुआ करता था न
जिसके दरवाज़े पर आम के कोमल मुलायम
हरे हरे ताज़े पत्तो की सुन्दर सी वन्दनवार
तुम हर रोज़ अपने हाथों से लगाया करती थीं
और जिसके आँगन में बीचों बीच तुम हर सुबह
बहुत ही चिताकर्षक रंगोली बनाया करती थीं
रात को उस रंगोली पर ढेर सारे दीपक
जला कर तुम रख दिया करती थीं
जिसके प्रकाश में वह रंगोली और भी सुन्दर
और भी मनोहारी दिखने लगती थी !
घर की दहलीज पर पाँव रखने से पहले ही 
तुम्हारे आँगन में खिले
मोगरा, बेला और गुलाबों की खुशबू
माँ की बनाई सौंधी रसोई की
खुशबू के साथ मिल कर  
मुझे दीवाना बना दिया करती थी !
कहाँ गया वो स्वर्ग सा छोटा सा घर सुलू ?
यहाँ तो अब कई मंज़िला मॉल
आसमान से बातें कर रहा है !
वो कभी शहर से गुज़रे तो पूछेंगे
बताओ ना सुलू
गहन अवसाद के पलों में
अपनी स्मृतियों में बसी जिन पनाहगाहों में
मैं पल भर के लिए सुकून ढूँढा लिया करता था
मेरी यादों के वो खूबसूरत आशियाने
किसने मिटा दिये सुलू ?
वो कभी शहर से गुज़रे तो पूछेंगे
यह ‘विकास’ है या ‘विनाश’?
तो मैं उन्हें क्या जवाब दूँगी ?

साधना वैद   



13 comments :


  1. सुप्रभात
    सुन्दर और सटीक बयान करती रचना |

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    1. शुक्रिया जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  4. हार्दिक धन्यवाद आपका ! बहुत बहुत आभार !

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  5. विकास के नाम पर विनाश ही तो देख रही है आज की पीढ़ी, बहुत प्रभावशाली लेखन

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. उम्दा लेखन , कल और आज के बीच हो रहे गैप को दर्शाती सुंदर रचना
    सादर

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    1. हार्दिक धन्यवाद अपर्णा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. विकास के नाम पर पेड़ों का कटाव तो विनाश ही है....
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    वाह!!!

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    1. हृदय से धन्यवाद एवं आभार आपका सुधा जी ! आपने मेरे दृष्टिकोण को सराहा समझा मेरा लिखना सार्थक हुआ !

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