दिन भर जंगल में घूम घूम कर और बाँख से झाड़ियों को काट कर गाँव की औरतों ने तमाम सारी सूखी लकड़ी जमा कर ली थी ! अब सब जल्दी जल्दी इनके बड़े बड़े गट्ठे बाँध कर घर जाने की हडबडी में थीं ! सब एक दूसरे की सहायता भी कर रही थीं और उनके सर पर गट्ठर लदवा भी रही थीं ! सुमरिया इन सबमें सबसे बड़ी बूढ़ी और सयानी थी ! गाँव की औरतें सब सलाह मशवरे के लिए उसीका मुख देखतीं !
“काहे अम्माँ का फ़ायदो भयो परधान मंतरी जी ने गाँव में सबके काजे गैस तो भेज दई लेकिन हमें तो लकड़ियन के काजे रोजई जंगल में आनो पड़त है ! का करें गैस हैई है इत्ती महंगी !”
“अरे नहीं रधिया ! जे बात ना है ! जे बात तो सही है कि गैस को सलंडर महँगो है ! लेकिन फिर भी कोयला से सस्तो पड़त है ! खानों जल्दी बनत है ! धुआँ धक्कड़ नहीं होत है गैस में ! आँखें खराब नईं होत हैं और जब चाही रात बिरात हर समय गैस को चूल्हो तैयार रहत है खाना बनायबे को ! नईं तो औचक से कोई मेहमान आय जइहैं रात बिरात तो आधी रात को बीन बटोर के चूल्हा सिगड़ी जलाओ तौऊ कछु कच्चो पक्को बनि पइहै खायबे को ! है कि नईं ?”
सुमरिया की बात पर सबने समर्थन में सिर हिलाया !
“तो फिर हमें भी तो थोड़ा जुगत से चले की पड़ी है कि नाहीं ? गैस बचायबे के काजे ही तो यह लकड़ी बीनने आनो पड़त है जंगल में ! बच्चों के नहायबे धोयबे के काजे और घर के और सिगरे काजन के लिए तो चूल्हा जलाय सकत हैं ना ! किफायत से गैस जलइहें तो गैस ही सबसे सस्ती पड़त है ! घर जाके हिसाब लगा लीजो तुम सब !”
“अम्मा जे बात तो सच्चई तुमने सौ टका की की है !”
सुमरिया की बात से सब के चहरे पर मुस्कान आ गयी थी और सबकी चाल तेज़ हो गयी थी !
साधना वैद
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteसुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विकास जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 05 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर लघुकथा।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (6-10-2020 ) को "उन बुज़ुर्गों को कभी दिल से ख़फा मत करना. "(चर्चा अंक - 3846) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे सखी !
Deleteउम्दा शिक्षाप्रद रचना |
ReplyDeleteधन्यवाद जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteसुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर लघुकथा
ReplyDeleteबहुत सुंदर, वाह
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद गगन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआदरणीया साधना वैद जी, बहुत अच्छी लघुकथा। लघुकथा के सभी मानकों पर सही उतरती लघुकथा। प्रेरक और प्रशंसनीय!--ब्रजेन्द्रनाथ
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मर्मज्ञ जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteक्या बात है! कितनी सरल, और कितनी सशक्त रचना!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका !
ReplyDelete