कब तक इसी तरह
विष बुझे बाणों से
बींधते रहोगे तुम मुझे !
स्वर्ण मृगी बन कर
सनातन काल से
आखेट के लिये आतुर
तुम्हारे बाणों की
पिपासा बुझाने के लिये
अपनी कमनीय काया पर
मैं अनगिनत प्रहारों को
झेलती आयी हूँ !
युग परिवर्तन के साथ
बाणों के रूप रंग
आकार प्रकार में भी
परिवर्तन आया है !
इस युग के बाण
पहले से स्थूल नहीं वरन
अति सूक्ष्म हो गये हैं !
इतने कि दिखाई भी नहीं देते !
अब ये धनुष की
प्रत्यंचा पर चढ़ा कर
नहीं चलाये जाते !
ये चलते हैं
जिह्वा की कमान से
और जब चलते हैं
रक्त की एक बूँद भी
दिखाई नहीं देती
लेकिन मन प्राण आत्मा को
निमिष मात्र में घायल कर
निर्जीव बना जाते हैं !
प्रयोजन कुछ भी हो,
स्वार्थ किसी का भी
सिद्ध हो रहा हो
निमित्त नारी ही बनती है !
लेकिन अब अपने मन की
इस कोमल स्वर्ण मृगी की
रक्षा करने के लिये
प्रतिकार में नारी ने भी
धनुष बाण उठा लिया है !
सावधान रहना
इस बार तुम्हारा सामना
अत्यंत सबल और प्रबल
शत्रु से है
जिसके पास हारने के लिये
कदाचित कुछ भी नहीं है
लेकिन जब वह
कुपित हो जाती है
तो उसका रौद्र रूप देख
देवता भी काँप जाते हैं
और पल भर में
चंडिका बन वह
असुरों का नाश कर
समस्त विश्व को
भयहीन कर देती है !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 3020...अपना ऑक्सीजन सिलिंडर साथ लाइए!) पर गुरुवार 6 मई 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शिवम् जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
Deleteसही कहा आपने दीदी कि
ReplyDeleteजब वह
कुपित हो जाती है
तो उसका रौद्र रूप देख
देवता भी काँप जाते हैं
परंतु कठिनाई तो यही है कि अपनी शक्ति पहचानने, कुपित होने और रौद्र रूप धारण करने में बड़ी देर लगा देती है नारी !!!
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी ! नारी अपनी शक्ति को पहचान ले और सही वक्त पर उसका प्रयोग करे तो अनेकों समस्याओं का निराकरण हो सकता है लेकिन धरती की तरह सब कुछ सह लेने का उसका जज्बा उसे ऐसा करने से यथासंभव रोकता है और वह प्रताड़ित शोषित होती रहती है ! हार्दिक आभार आपका !
Deleteजी अद्भुत! वाकई वर्तमान में एक ही बाण और वह जिह्वा ही है....इसमें कोई संदेह नहीं। इस बाण से तो हम रोज ही घायल होते हैं....पर आपने सही कहा इसके सबसे अधिक पीड़िता स्त्री हैं।
ReplyDeleteमैं आशा करता हूं कि आपके इस रचना से लोगों के विचारों में बदलाव आए। आपकी यह रचना वाकई बेहतरीन है।
हार्दिक धन्यवाद प्रकाश जी ! मेरा लेखन आपको अच्छा लगा आपका बहुत बहुत आभार !
Deleteआदरणीया मैम, हर स्त्री अपने आप में माँ दुर्गा होती है, इसी सत्य को उभारते हुए और स्त्री पर अत्याचार करनेवाले को चेतावनी देती हुई बहुत ही सुंदर और सशक्त रचना के लिए हार्दिक आभार व प्रणाम ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनंता जी ! मेरी रचना आपको पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteसही कहा मैम आपने
ReplyDeleteइस बार तुम्हारा सामना
अत्यंत सबल और प्रबल
शत्रु से है,
जिसके पास हारने के लिए
कदाचित कुछ नहीं है!
बहुत ही प्रभावशाली रचना!
हार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत अद्भुत रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रीती जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteवाह ! नारी शक्ति को नमन, अब अपने सम्मान की रक्षा करना सीख लिया है नारी ने
ReplyDeleteजी आशा की किरण कहीं तो उदित होती सी लगती है ! दिल से आभार आपका अनीता जी ! बहुत बहुत शुक्रिया !
Deleteस्वर्ण मृगी बन कर
ReplyDeleteसनातन काल से
आखेट के लिये आतुर
तुम्हारे बाणों की
पिपासा बुझाने के लिये
अपनी कमनीय काया पर
मैं अनगिनत प्रहारों को
झेलती आयी हूँ !---स्वर्ण मृगी बन कर
सनातन काल से
आखेट के लिये आतुर
तुम्हारे बाणों की
पिपासा बुझाने के लिये
अपनी कमनीय काया पर
मैं अनगिनत प्रहारों को
झेलती आयी हूँ !---बेहतरीन रचना---
हार्दिक धन्यवाद संदीप जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद आपका आलोक जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत प्रभावशाली रचना, साधना दी।
ReplyDeleteरचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ ज्योति जी ! हृदय तल से आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
Deleteअद्भुत रचना"जिह्वा के कमान से.....दिखाई नही देती" शानदार रचना।
ReplyDeleteआपका स्वागत है इस ब्लॉग पर उर्मिला जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
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