सदियों से गुलामी रही है
किस्मत भारत की !
एक बार विदेशी आक्रान्ताओं के सामने
पराजय का विष पीकर
युगों तक गुलामी के जुए के नीचे
गर्दन डाले रखने को विवश रहा है भारत !
पहले विदेशी आक्रमणकारियों की
गिद्ध दृष्टि का निशाना बना भारत !
फिर मुगलों ने इसे लूटा और
इस पर अधिकार जमाया !
फिर यहाँ के वैभव और समृद्धि ने
अंग्रेजों की आँखों को चौंधियाया
और भारत सदियों तक
खिलौना बना रहा कभी इस हाथ का
तो कभी उस हाथ का !
लेकिन भारत के दुर्भाग्य का भी
एक दिन अंत तो होना ही था !
गुलामी की युगों लम्बी स्याह रात का
एक दिन तो खात्मा होना ही था !
अनेकों युगांतरकारी नेताओं, विचारकों,
क्रांतिकारियों, विद्रोहियों की योजनाओं ने
आज़ादी के प्रथम प्रभात की ओर कदम बढ़ाया
और १५ अगस्त १९४७ का बालारुणस्वतंत्र भारत के अभिनन्दन का थाल सजाये
पूर्व दिशा में नभ पर अवतरित हुआ !
हम स्वतंत्र हो गए !
गुलामी के बंधन कट गए !
लेकिन क्या सच में ?
क्या इसी लोकतंत्र का सपना देखा था
हमारे नेताओं ने ?
क्या आज भी हम मानसिक रूप से
गुलाम नहीं हैं उन्हीं प्रदूषित विचारधाराओं के
उसी विषैली मानसिकता के और
उसी अन्यायपूर्ण कार्य प्रणाली के ?
जागना होगा हमें !
और इस बार हमें मुक्त करना होगा
स्वयं को ही अपनी ही
विदेशी मानसिकता की गुलामी से !
साधना वैद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
कल सारा दिन आना जाना लगा रहा ! विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ रवीन्द्र जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सादर वन्दे !
Deleteगुलामी के बंधन कट गए !
ReplyDeleteलेकिन क्या सच में ?
क्या इसी लोकतंत्र का सपना देखा था
हमारे नेताओं ने ?
यह कैसा सवाल है जिससे हर किसी को विचार करने की जरूरत है!जिससे हमारा भारत प्रगति की राह पर बहुत ही तेजी से अग्रसर हो सके!और अपनी संस्कृति को भी बनाए रखें! जब तक हम मानसिक रूप से स्वतंत्र नहीं होते तब तक स्वतंत्रता का कोई मतलब ही नहीं रह जाता!
चेतना को जागृत करती बहुत ही उम्दा रचना
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDelete१९४५ की जगह १९४७ कर लें, सशक्त लेखन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! अभी ठीक करती हूँ ! पता नहीं कैसे इतनी बड़ी भूल कर बैठी ! दिल से आभार आपका !
Deleteवाह!साधना जी ,बहुत सुंदर । गुलामी के बंधन कहाँ कटे हैं
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभ्रा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुप्रभात
ReplyDeleteबहुत सुन्दर |
बड़ी देर कर दी आने में आपने ! लेकिन हृदय से धन्यवाद आपका और बहुत बहुत आभार !
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