पुकारूँ
नित्य तुम्हें
कहाँ छिपे हो
मेरे प्यारे
गिरिधारी !
जब
मैं बुलाऊँगी
तुम आओगे ना
वादा करो
मुझसे !
लगता
कितना प्यारा
तुम्हारा सुन्दर मुखड़ा
बलिहारी जाऊँ
मैं !
खिले
रंग बिरंगे
फूल उपवन में
हवा लहराई
मदभरी !
विसंगति
कैसी अघोर
कविता कोमल तुम्हारी
किन्तु हृदय
कठोर !
जीतना
होगा इसे
किसी भी तरह
हारेगा नहीं
मन !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 26 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
Deleteसुंदर सृजन😍💓
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद मनीषा जी !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-10-2021) को चर्चा मंच "कलम ! न तू, उनकी जय बोल" (चर्चा अंक4229) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
Deleteउम्दा सृजन के लिए बधाई |
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