द्रौपदी का चीर हरण
उस युग में भी हुआ था
इस युग में भी होता है
और आये दिन होता है
उस युग में गोविन्द
दूर रह कर भी
द्रौपदी की आर्त पुकार को
सुन कर विचलित हुए थे
और उन्होंने चीर बढ़ा कर
द्रौपदी की लाज बचा ली थी !
लेकिन इस युग में आये दिन
न जाने कितनी द्रौपदियों की लाज
हर रोज़ हरी जाती है
और गोविन्द ....?
गोविन्द शायद सुदूर स्वर्ग के
प्रेक्षागृह की दर्शकदीर्घा में बैठे
बेचैनी से पहलू बदल रहे हों
लेकिन किसीका चीर बढ़ा कर
उसकी लाज नहीं बचा पाते,
किसीकी आर्त पुकार शायद
उनके कानों तक पहुँच नहीं पाती,
उनका कोई चमत्कार
कलयुग की इस पाप लीला के
परिदृश्य को बदल नहीं पाता !
यह असमर्थता गोविन्द की
सीमित शक्तियों की ओर
इशारा करती है या
कलयुग में होने वाले
जघन्य पापों की बढ़ती हुई
ताकत की ओर इंगित करती है
इस यक्ष प्रश्न का उत्तर
कौन बताए !
साधना वैद
कलयुग में होने वाले
ReplyDeleteजघन्य पापों की बढ़ती हुई
ताकत की ओर इंगित करती है
इस यक्ष प्रश्न का उत्तर
कौन बताए !
विचारणीय प्रश्न । सराहनीय रचना ।
हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteकुछ जटिल प्रश्नों के उत्तर साधारण शब्दों में दे पाना कठिन है।
ReplyDeleteसृष्टि और जीवन के रहस्यों को आम मनुष्य की बुद्धि से समझना मुश्किल है।
विचारणीय यक्ष प्रश्न में उलझी सराहनीय अभिव्यक्ति।
प्रणाम
सादर।
हृदय से धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteजहाँ तक मैंने पढ़ा है द्रौपदी का विश्वास थे कृष्ण । आज के युग में क्या उतनी आस्था से कृष्ण को किसी ने सखा माना है ? ये भी तो एक यक्ष प्रश्न है ।
ReplyDeleteविचारणीय रचना ।
तो क्या भगवान् भी पक्षपात करेंगे ? श्रद्धा और विश्वास की जिसकी थैली भारी उसीका रक्षण करेंगे ? एक यक्ष प्रश्न यह भी है संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteइस समय तो मुझे याद आ रहा है कि जब भीष्म शरशैया पर थे तो उनके यह पूछने पर कि ये कष्ट मुझे क्यों मिला तो कृष्ण कहते हैं सब कर्मों का ही लेख जोखा है । विध्वंस रोक सकते थे भीष्म । खैर यहाँ पक्षपात की बात नहीं है ।
Deleteमेरे पास इस प्रश्न का उत्तर तो नहीं है लेकिन आज।के युग में सबको अपनी रक्षा स्वयं ही करनी होगी
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे प्रीति जी ! इस कलयुग में चमत्कारों के लिए कोई स्थान नहीं ! हार्दिक धन्यवाद आपका !
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ReplyDeleteविश्वास पर ही प्रश्नचिन्ह है इस युग में
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सतीश जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteकृष्ण हमारे भीतर हैं और द्रोपदी भी। विश्वास सिर्फ स्वयं पर करना हैं और खुद ही स्व की रक्षा भी करना है।
ReplyDeleteकुछ प्रश्नो के जवाब न ही मिलें तो अच्छा।
अच्छी रचना
सादर
सादर
हार्दिक धन्यवाद अपर्णा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteरचना सोचने पर विवश करती है। सुंदर भाव लिए अद्भुत प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रचना जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteविचारणीय रचना...वाकई कृष्ण कब किसी भी द्रौपदी की लाज नहीं बचा रहे यक्ष प्रश्न ही है ये...
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार सुधा जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteस्वयं को ईश्वर कहने वाले गोविन्द के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया दिया है आये दिन हो रहे बालाओं के चीर हरण ने।एक चिंतनपरक रचना प्रिय साधना जी,जो सोचने पर मजबूर करती है 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी ! आपका दिल से बहुत बहुत आभार !
Deleteउत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteहार्दिक बधाई सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteसमसामयिक , विचारणीय !
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