सन १९६४ की बात है ! हमारी हायर सेकेंडरी की परीक्षाओं के समाप्त होने के बाद हमारा पूरा
परिवार जगन्नाथ पुरी घूमने गया ! इस यात्रा के
लिए हम सब लम्बे समय से प्रतीक्षा कर रहे थे ! एक तो धार्मिक दृष्टिकोण से जगन्नाथ
पुरी एक बहुत ही पावन स्थान है एवं हिन्दू धर्म के चार पवित्र तीर्थों में से एक
बहुत ही बड़ा एवं महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है ! दूसरे इससे पूर्व हमने समुद्र केवल
फिल्मों में ही देखा था कभी स्वयं नहीं देखा नहीं था ! सो समुद्र की किनारे तक
दौड़ती आती लहरों से वार्तालाप करने की भी बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा थी ! घर में
उन दिनों हमारी दीदी और जीजाजी भी आये हुए थे अपनी छोटी सी बिटिया के साथ ! बस फिर
क्या था प्रोग्राम बन गया और हम सब जगन्नाथ जी के दर्शन करने और बंगाल की खाड़ी की
प्रचंड लहरों से मुलाक़ात करने के लिए जगन्नाथ पुरी की यात्रा के लिए निकल पड़े !
ग्रुप में मम्मी, बाबूजी, हम तीनों भाई
बहन, जीजाजी
और उनकी बड़ी बेटी स्मिता ही थे जो उस
वक्त साल सवा साल की छोटी सी बच्ची
रही होगी !
पुरी हम लोग रात को पहुँचे थे ! अन्धेरा हो चुका था ! जिस
धर्मशाला में हम ठहरे हुए थे वहाँ समुद्र की वेगवान लहरों की गर्जना बड़ी तेज़ सुनाई
दे रही थी ! हम तो समझे ही नहीं कि यह लहरों का शोर है ! हम समझे आस पास कोई
कारखाना चल रहा है ! लेकिन धर्मशाला के कर्मचारियों ने जब बताया कि यह समुद्र की
लहरों की आवाज़ है तो हमारा कौतुहल और सूर्योदय की प्रतीक्षा और तीव्र हो गयी कि
जल्दी सुबह हो और हम भी तट की रेत में किसी फ़िल्मी हीरोइन की तरह चहलकदमी कर सकें
!
अंतत: सुबह हुई ! हमारी
प्रतीक्षा समाप्त हुई और हम जल्दी से अपने कपड़े समेट समुद्र तट पर पहुँच गए ! समुद्र
से हमारा यह पहला साक्षात्कार था ! जगन्नाथ पुरी का तट रेतीला है और समुद्र की लहरें
बहुत ही तीव्र और डरावनी ! हम समुद्र से काफी दूर किनारे पर आराम से रेत पर बैठे हुए लहरों के आवर्तन प्रत्यावर्तन और आस पास
की विविध प्रकार की
गतिविधियों का नज़ारा ले ही रहे थे कि अचानक से एक बहुत बड़ी लहर आई और हमारे नीचे की रेत के साथ साथ
हमें भी अपने साथ बहा ले
चली ! जीजाजी हमसे काफी दूर आगे घुटनों तक गहरे पानी में खड़े हुए थे ! हमें बहते
देख एकदम से चीख पुकार मच गयी ! शोर सुन कर जीजाजी
ने जैसे ही पलट कर देखा कि हम
बेकाबू लहर के साथ बहे जा रहे हैं उन्होंने तुरंत दौड़ कर हमें
सम्हाला ! हमारे जीजाजी बहुत ही कुशल
तैराक थे ! वे काफी समय तक चेन्नई में रहे थे इसलिए उन्हें समुद्र में तैरने का
काफी अनुभव और अभ्यास था ! हमें याद है हम जीजाजी का हाथ पकड़ कर
पेंडुलम की तरह झूल रहे थे ! पैरों के नीचे
से ज़मीन खिसकने का क्या अर्थ होता है यह उस दिन हमने स्वयं भोग कर समझ लिया था !
हमारे पैर ज़मीन को छू भी नहीं पा रहे थे ! अगर उस दिन जीजाजी न होते तो हम
समुद्र की अतल गहराइयों में समा गए होते और बंगाल की खाड़ी के खतरनाक जल जंतुओं का भोजन बन गए होते ! मम्मी, बाबूजी, दीदी, भैया, सब आतंकित हो गए थे ! जल्दी
जल्दी सामान समेट कर हम सब धर्मशाला लौट गए ! उसके बाद जितने दिन पुरी में रहे समुद्र
के दर्शन दूर ही से किये ! कई सालों बाद एक बार फिर जगन्नाथ पुरी जाने का अवसर मिला
! लेकिन अपनी पहली यात्रा की भयाक्रांत कर देने वाली स्मृतियों से स्वयं को मुक्त
नहीं कर पाई ! वह हादसा और वह स्थान मानस पटल पर जब तब कौंधते ही रहे ! हाँ वास्तव
में नहीं भूला जाता यह संस्मरण !
साधना वैद
पुरी के जगन्नाथ मंदिर के दर्शन का सौभाग्य एक बार हमें भी प्राप्त हुआ था ..जो आपका संस्मरण पङने के बाद फिर ताजा हो गया ..बात करें समुद्र की तो समुद्र की लहरें देखकर
ReplyDeleteतो मुझे भी डर लगता है .. समुद्र को दूर से ही देखकर ..मन बहला लेते हैं ..
हार्दिक धन्यवाद ऋतु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deletebahut puraanii yaad bhulaaii kaise jaa sakatee hai|bahut sundar abhivyakti
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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