सुबह हवाओं में खुशबू थी
खिले बाग़ में ढेरों फूल
कोयल कुहुक रही अमराई
पंछी रहे शाख पर झूल !
विस्मित थी क्या हुआ
प्रकृति को
क्यों है इतनी मगन विभोर
द्वार खोल कर मैंने देखा
वसंत आया देहरी पर !
रंग दी फ्रॉक बसंती माँ ने
बाबूजी का रंगा रुमाल
घर में उत्सव की हलचल थी
सेवंती के गूँथे हार !
पीले चावल की खुशबू ने
हमको याद दिला दी आज
माता सरस्वती का दिन है
वसंत आया देहरी पर !
पीली सरसों के उबटन से
अपना रंग निखार लिया
रंग बिरंगे फूलों के गहनों
से
निज श्रृंगार किया !
सज धज कर यह धरा सुन्दरी
स्वागत को तत्पर है आज
विहँस उठी जब देखा उसने
वसंत आया देहरी पर !
उतर आये हैं मदन धरा पर
लिए हाथ फूलों के बाण
लक्ष्य साध लिया है भू पर
हैं तत्पर करने संधान !
नाच उठे गन्धर्व स्वर्ग में
देख धरा का अनुपम रूप
आल्हादित हर प्राण देख यह
बसंत आया धरती पर !
साधना वैद
सुन्दर सृजन |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deletebahut sundar abhivyakti
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !
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