संग उड़ना चाहती हूँ दूर नभ में
दे सकोगे साथ क्या बोलो मेरा तुम
साथ अम्बर का लगा कर एक फेरा
मौन की कारा से कब निकलोगे बाहर
तोड़ दो इस कशमकश की डोर को तुम
भूल कर सारे जहां की उलझनों को
चाँद को हैरान कर दें आज हम तुम !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
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