पेड़ों पे झूले पड़े सखियों का है शोर
खनक रही हैं चूड़ियाँ मन आनंद विभोर
मन आनंद विभोर मगन मन झूल रही हैं
कजरी, गीत, मल्हार, सभी दुख भूल रही हैं
बोली कोयल, फूल ‘साधना’ वन में फूले
आया सावन मास पड़े पेड़ों पर झूले !
रास रचैया की सुनी, जब मुरली की तान।
भागीं जमुना तीर पर, ज्यों तरकश से बाण।।
ज्यों तरकश से बाण, किशन को ढूँढ रही हैं ।
थिरक उठे हैं पाँव मुदित मन झूम रही हैं ।।
होतीं सभी विभोर, ‘साधना’ काकी, मैया।
दिखे न कोई और, कान्ह सा रास
रचैया ।