बनाई सुन्दर सी
रंगोली
सजा दिए तोरण
तुम्हारे लिए
बिखेरी पाँखुरी
पथ पर
चुन कर शूल
तुम्हारे लिए
रात भर जागे आतुर
द्वार खोलने को
तुम्हारे लिए
कितने गीत लिख
डाले
मैंने डायरी में
तुम्हारे लिए
कितने व्यंजन
बना डाले
खट्टे मीठे नमकीन
तुम्हारे लिए
कितने गीत गा
चुकी
प्रतीक्षा करते हुए
तुम्हारे लिए
सब व्यर्थ हुए
उपक्रम
किये जो हमने
तुम्हारे लिए
तुम नहीं आये तो
किया द्वार बंद
तुम्हारे लिए !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार आपका दिग्विजय जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteव्याकुल है ये वेदना
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिया जी ! आभार आपका !
Deleteसुंदर सृजन!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभा जी ! बहुत बहुत आभार !
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