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Sunday, March 4, 2012

एक बाँझ सी प्रतीक्षा



सदियों से प्रतीक्षा में रत
द्वार पर टिकी हुई
उसकी नज़रें
जम सी गयी हैं !
नहीं जानती उन्हें
किसका इंतज़ार है
और क्यों है
बस एक बेचैनी है
जो बर्दाश्त के बाहर है !
एक अकथनीय पीड़ा है
जो किसीके साथ
बाँटी नहीं जा सकती !
रोम रोम में बसी
एक बाँझ विवशता है
जिसका ना कोई निदान है
ना ही कोई समाधान !
बस एक वह है
एक अंतहीन इंतज़ार है
एक अलंघ्य दूरी है
जिसके इस पार वह है
लेकिन उस पार
कोई है या नहीं
वह तो
यह भी नहीं जानती !
वर्षों से इसी तरह
व्यर्थ, निष्फल, निष्प्रयोजन
प्रतीक्षा करते करते
वह स्वयं एक प्रतीक्षा
बन गयी है
एक ऐसी प्रतीक्षा
जिसका कोई प्रतिफल नहीं है !

साधना वैद !

Wednesday, January 11, 2012

तुम्हारा इंतज़ार है

मुक्ताकाश में सजी

तारक मालिका से

प्रेरणा ले मैंने

आज अपनी

पलकों की डोर में

अश्रु मुक्ताओं को पिरो कर

अपने नयनों के द्वारों को

मनमोहक बंदनवार से

तुम्हारे लिये

सजाया है !

बारिश की बूँदों पर

बिखरी सूर्य की

कोमल किरणों

की अनुकम्पा से

उल्लसित हो

अनायास मुस्कुरा उठे

इन्द्रधनुष से

प्रेरित हो मैंने

अपनी सारी

आशा और विश्वास,

श्रद्धा और अनुराग,

मान और अभिमान

हर्ष और उल्लास के

सजीले रंगों से

अपने हृदय द्वार को

सुन्दर अल्पना के

आकर्षक बूटों से

सजाया है !

झर-झर बहते

चंचल, उच्श्रंखल

निर्मल निर्झर से

एक सुरीली सी

तरल तान उधार ले

तुम्हारे लिये

कोमल स्वरों से सिक्त

एक सुमधुर

स्वागत गीत

भी गुनगुनाया है !

अब बस उस आहट

को सुनने के लिये

मन व्याकुल है

जब दिल की ज़मीन पर

तुम्हारे कदमों

के निशाँ पड़ेंगे

और पतझड़ की

इस वीरानी में

बहार के आ जाने का

एहसास होने लगेगा !

साधना वैद

Friday, July 22, 2011

मुझे अच्छा लगता है


दिल की दीवारों पर लिखी

वर्षों पुरानी धुँधली सी इबारतों को

यत्न कर साफ़-साफ़ पढ़ना

मुझे अच्छा लगता है ,

खिले गुलाब की हर पंखुड़ी पर

सम्पूर्ण समर्पण और भावना के साथ

तुम्हारा ‘आई लव यू’ उकेरना

मुझे अच्छा लगता है !

खिडकी की सलाखों पर सिर टिका

इंतज़ार में आँखे बिछाये अधीरता से

घंटों तुम्हारा सड़क को निहारना

मुझे अच्छा लगता है !

बहुत पीछे छूट गये

अपने हमसायों के कदमों की

बेहद धीमी आहट को

कान लगा कर सुनने की कोशिश करना

मुझे अच्छा लगता है !

मन की अतल गहराइयों में कहीं

दबे छिपे विस्मृत प्रणय गीतों की

मधुर पंक्तियों को सायास दोहराना

मुझे अच्छा लगता है ,

कस कर बंद किये गये तुम्हारे

अधरों का कुछ कहने के लिये

तत्पर हो धीमे-धीमे खुलना

मुझे अच्छा लगता है !

ढीली गुँथी चोटी को सामने कर

काँपती उँगलियों से तुम्हारा

बार-बार उसे खोलना और गूँथना

मुझे अच्छा लगता है ,

किसी सवाल के जवाब में

तुम्हारा अपने दुपट्टे के छोर को

दाँतों से दबाना और

सलज्ज पलकों को ऊपर उठा

अपनी मौन दृष्टि को मेरे चहरे पर

गहराई तक रोप देना

मुझे अच्छा लगता है !

इन मीठी यादों को सहेजना ,

समेटना और फिर से जी पाना

मुझे अच्छा लगता है ,

बस बदलते समय के साथ

बदलते परिवेश में

प्रणय निवेदन के बदलते प्रतिमानों

और बदलती परिभाषा के साथ

समझौता करना

मुझे अच्छा नहीं लगता !

साधना वैद