मुक्ताकाश में सजी
तारक मालिका से
प्रेरणा ले मैंने
आज अपनी
पलकों की डोर में
अश्रु मुक्ताओं को पिरो कर
अपने नयनों के द्वारों को
मनमोहक बंदनवार से
तुम्हारे लिये
सजाया है !
बारिश की बूँदों पर
बिखरी सूर्य की
कोमल किरणों
की अनुकम्पा से
उल्लसित हो
अनायास मुस्कुरा उठे
इन्द्रधनुष से
प्रेरित हो मैंने
अपनी सारी
आशा और विश्वास,
श्रद्धा और अनुराग,
मान और अभिमान
हर्ष और उल्लास के
सजीले रंगों से
अपने हृदय द्वार को
सुन्दर अल्पना के
आकर्षक बूटों से
सजाया है !
झर-झर बहते
चंचल, उच्श्रंखल
निर्मल निर्झर से
एक सुरीली सी
तरल तान उधार ले
तुम्हारे लिये
कोमल स्वरों से सिक्त
एक सुमधुर
स्वागत गीत
भी गुनगुनाया है !
अब बस उस आहट
को सुनने के लिये
मन व्याकुल है
जब दिल की ज़मीन पर
तुम्हारे कदमों
के निशाँ पड़ेंगे
और पतझड़ की
इस वीरानी में
बहार के आ जाने का
एहसास होने लगेगा !
साधना वैद
अपने ह्रदय द्वार को ------अल्पना से सजाया है '
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ |
बहुत खूब लिखा है |
आशा
जब दिल की ज़मीन पर
ReplyDeleteतुम्हारे कदमों
के निशाँ पड़ेंगे
और पतझड़ की
इस वीरानी में
बहार के आ जाने का
एहसास होने लगेगा !....waah, bahut achhe ehsaas
इंतज़ार के पलों को बेइंतहा खूबसूरती से सजाया है..
ReplyDeleteबड़ी मासूम नाजुक सी कविता..
जब दिल की ज़मीन पर तुम्हारे कदमों के निशाँ पड़ेंगे और पतझड़ की इस वीरानी में बहार के आ जाने का एहसास होने लगेगा!!
ReplyDeletenature n feelings ka bahut hi sundar meljhol ...bahut hi umda rachana !!
आदरणीय मौसीजी,सादर वन्दे,मनभावन रचना है, मानो प्रतीक्षा की रंगोली सजी है | ऐसे तो ईश्वर भी मिल जाये |
ReplyDeleteजब दिल की ज़मीन पर
ReplyDeleteतुम्हारे कदमों
के निशाँ पड़ेंगे
और पतझड़ की
इस वीरानी में
बहार के आ जाने का
एहसास होने लगेगा !
...बहुत बढ़िया अहसास..
बहुत सुन्दर कोमल सा स्वागत है
ReplyDeleteबहार के आ जाने का एहसास क्यों बहार खुद आएँगी...सुन्दर रचना के लिए आभार आपका
ReplyDeleteखुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
bahaar aane ka ehsaas kuchh aisa hi hota hai...!!
ReplyDeletesundar abhivyakti...!!
प्रकृति से प्रेरित हो बंदनवार सजाना , अल्पना बनाना और गीत गुनगुना कर इंतज़ार करना ... बहुत कोमल भाव लिए सुन्दर रचना
ReplyDeletebahut sunder rachna ...
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसच में प्रकृति से बड़ी मीठी मीठी चोरियां की आपने उनके लिए..
:-)
सादर.
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
लिंक गलत देने की वजह से पुन: सूचना
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
वाह ...बहुत ही बढिया भाव संयोजन ...आभार ।
ReplyDeletekomal ehsaas ke sath likhi gai rachna
ReplyDeletebahut sundar...!
bahut khoob
ReplyDeletesundar rachna
super like
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
आपको पढ़ना हमेशा एक सुखद अनुभूति दे जाता है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कोमल अहसास...बहुत भावमयी प्रस्तुति..
ReplyDeleteवाह ... शब्द जैसे प्रेम में पगे ... ह्रदय से निकले ... और बहार आने की प्रतीक्षा में खड़े ...
ReplyDeleteमन व्याकुल है
ReplyDeleteजब दिल की ज़मीन पर
तुम्हारे कदमों
के निशाँ पड़ेंगे
और पतझड़ की
इस वीरानी में
बहार के आ जाने का
एहसास होने लगेगा !
लाजवाब प्रस्तुति बहुत खूब लिखा है आपने
शब्दों का अनुपम प्रयोग ..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर कोमल भावनाओं की भावाव्यक्ति बधाई
ReplyDeleteprem ke dard se bhari bahut sunder rachna.
ReplyDeleteshubhkamnayen
sundar bhavpoorn rachna !
ReplyDeleteWah! kya benamoon sajavat hai...bahut khub.....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति, पंक्तियाँ अच्छी लगी.....
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
अब बस उस आहट
ReplyDeleteको सुनने के लिये
मन व्याकुल है
जब दिल की ज़मीन पर
तुम्हारे कदमों
के निशाँ पड़ेंगे
और पतझड़ की
इस वीरानी में
बहार के आ जाने का
एहसास होने लगेगा !
......
साधना जी एक अत्यंत सरस कविता ...मन को छू गयी आपकी ये प्रतीक्षा !
सुन्दर नाजुक सा अहसास..
ReplyDeletesach ! kaisa hoga vo milan jo itni kaamnaao ko piro kar aas deep prajwallit kar parwane se milne ko bekaraar hai.
ReplyDeleteSUPERB !
bahut sunder rachanaa .
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२६) मैं शामिल की गई है /आप मंच पर आइये और अपने अनमोल सन्देश देकर हमारा उत्साह बढाइये /आप हिंदी की सेवा इसी मेहनत और लगन से करते रहें यही कामना है /आभार /लिंक है
http://www.hbfint.blogspot.com/2012/01/26-dargah-shaikh-saleem-chishti.html
अब बस उस आहट को सुनने के लिये मन व्याकुल है जब दिल की ज़मीन पर तुम्हारे कदमों के निशाँ पड़ेंगे और पतझड़ की इस वीरानी में बहार के आ जाने का एहसास होने लगेगा !
ReplyDeleteआशाओं से भरी सुन्दर रचना.
मेरी कविता
बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!