चुनाव का मौसम है और प्रत्याशियों का प्रचार प्रसार पूरे ज़ोर पर है । सभी अपने बारे में झूठ सच बढ़ा चढ़ा कर बता रहे हैं । लेकिन वास्तविकता यह है कि आम जनता में से शायद किसी को भी अपने क्षेत्र के सभी प्रत्याशियों के नाम तक नहीं मालूम हैं उनके इतिहास की तो बात ही छोड़ दीजिये । यही कारण है कि जो उम्मीदवार अशिक्षित और ग़रीब मतदाताओं को जाति और धर्म का वास्ता देकर भरमा लेता है या भौतिक वस्तुओं का प्रलोभन देकर अपनी मुट्ठी में कर लेता है मतदाता उसीके पक्ष में वोट दे देते हैं चाहे फिर वह योग्य हो या ना हो । इंटरनेट पर सब के बारे में सूचना उपलब्ध है लेकिन भारत जैसे देश में कितने घरों में इंटरनेट की सुविधा सुलभ है और जीवन की आपाधापी में किसके पास इतना समय है कि वे साइबर कैफे में जाकर प्रत्याशियों के इतिहास भूगोल की जाँच पड़ताल अपनी जेब ढीली करके हासिल करें । आज के परिदृश्य में सूचना प्राप्त करने के लिये आम जनता के लिये जो सबसे सुलभ और स्थाई माध्यम है वह समाचार पत्र ही हैं । टी. वी. भी एक माध्यम है जिसकी पहुँच काफी विस्तृत है लेकिन उसकी भी सीमायें हैं कि वे समय विशेष पर ही सूचना प्रसारित कर सकते हैं और कोई आवश्यक नहीं कि उस समय सारे दर्शक अपना पसंदीदा कार्यक्रम छोड़ कर प्रत्याशियों की जानकारी जुटाने में दिलचस्पी लें । ऐसे में सभी समाचार पत्रों का दायित्व और बढ़ जाता है कि वे अपने पाठकों तक समस्त आवश्यक और अनिवार्य सूचनायें उपलब्ध करायें क्योंकि समाचार पत्रों में प्रतिदिन जो कुछ छपता है उस पर दिन भर में कभी न कभी तो नज़र पड़ ही जाती है ।
मेरे विचार से सभी प्रमुख समाचार पत्रों में प्रतिदिन नामांकित प्रत्याशियों के बारे में इस प्रकार की सूचनायें प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये -
नाम
आयु
शिक्षा आपराधिक मामलों का विवरण
राजनैतिक इतिहास
सम्पत्ति का विवरण
व्यावसायिक अनुभव
उपलब्धियाँ और विफलतायें
आपराधिक मामलों के विवरण के तहत उन पर कितने मुकदमें चल रहे हैं, उन अपराधों की प्रकृति क्या है, कितने विचाराधीन हैं और कितनों में वे बरी हो चुके हैं इन सबका उल्लेख होना आवश्यक है ।
राजनैतिक इतिहास के विवरण के तहत यह जानकारी होना नितांत आवश्यक है कि इससे पहले वे किस पार्टी के लिये काम कर चुके हैं, कितनी बार दल बदल की राजनीति कर चुके हैं, उनकी निष्ठायें किसी भी पार्टी के लिये कितनी अवधि तक समर्पित रहीं, वे राजनीति में पहले से ही सक्रिय किस परिवार से सम्बद्ध हैं और सार्वजनिक सेवा का उनका इतिहास कितना पुराना है ।
पारदर्शिता की मुहिम के चलते सम्पत्ति का व्यौरा देना तो अब चलन में आ ही चुका है लेकिन जन साधारण के लिये यदि इसको अनिवार्य रूप से व्यक्ति विशेष की समस्त जानकारियों के साथ जोड़ कर लिखा जायेगा तो लोगों को तुलनात्मक अध्ययन करने में आसानी होगी ।
व्यावसायिक अनुभव के उल्लेख से यह विचार करने में आसानी होगी कि संसद में वे किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं । जैसे एक वकील कानून के सम्बन्ध में, एक डॉक्टर चिकित्सा के सम्बन्ध में, एक शिक्षक शिक्षा के सम्बन्ध में, एक व्यवसायी उद्योग के सम्बन्ध में, एक कलाकार संस्कृति और कला के सम्बन्ध में, एक जन सेवक आम आदमी के सरोकारों के सम्बन्ध में, एक सैन्य अधिकारी रण कौशल से जुड़ी नीतियों के निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।
उपलब्धियों और विफलताओं के बारे में यह लिखना आवश्यक है कि अब तक वे किन महत्वपूर्ण मुद्दों के लिये प्रयासरत रहे हैं और उनमें कितनी सफलता या असफलता उनके हिस्से में आयी है ।
समाचारपत्रों में जब प्रत्येक प्रत्याशी के बारे में यह जानकारी प्रतिदिन अनिवार्य रूप से छपेगी तो कोई कारण नहीं है कि मतदाता स्वविवेक का प्रयोग किये बिना भेड़चाल की तरह किसी ऐसे प्रत्याशी के पक्ष में अपना वोट डाल आयें जिसने उनको भाँति भाँति के प्रलोभन देकर प्रभावित कर लिया हो, या वह किसी जाति विशेष का प्रतिनिधि हो ।
यह भी आवश्यक है कि यह सारी सूचना पूर्णत: विशुद्ध सूचना ही हो उसमें किसी नेता या पार्टी की सोच, राय, धारणा या छवि का तड़का न लगा हो । मेरे विचार से यदि इस दिशा में ठोस कदम उठाये जायेंगे तो आम जनता को अपने विवेक का प्रयोग करने का सुअवसर अवश्य मिलेगा और तब ही शायद सर्वोत्तम प्रत्याशी की जीत सम्भव हो पायेगी जिसके लिये हम सब कृत संकल्प हैं । जय भारत !
साधना वैद
सही मुद्दे पर सही ढंग से प्रकाश डाला है ...
ReplyDeleteवर्तमान में सच्चा और ईमानदार प्रत्याशी अव्वल तो मिलना मुश्किल है और अगर ऐसा कोई प्रत्याशी मिल गया और जीत भी गया तो उसे सारे बेईमान ईमानदारी से जीने नहीं देंगे.अब तो अंधों में काना राजा ढूंढो,बस.
ReplyDeleteवर्तमान में सच्चा और ईमानदार प्रत्याशी अव्वल तो मिलना मुश्किल है और अगर ऐसा कोई प्रत्याशी मिल गया और जीत भी गया तो उसे सारे बेईमान ईमानदारी से जीने नहीं देंगे.अब तो अंधों में काना राजा ढूंढो,बस.
ReplyDeleteज्वलंत मुद्दे पर आपके विचार सराहनीय हैं .सुझाव अच्छे हैं यदि सच ही समाचार पात्र अपनी कुछ ज़िम्मेदारी समझें तो ... चुनाव जीत कर नेता जनता का नहीं केवल अपना ध्यान रखते हैं ..कुसुमेश जी ने बिक्लुल सही कहा है ..
ReplyDeleteआदरणीय मौसीजी ;सादर वन्दे , बिलकुल सही लिखा है आपने ,चुनाव आयोग अपने इस तरह के हास्यास्पद निर्देश से देश की वो आबादी जो पढ़ी-लिखी है ,उसकी नजरों में एक प्रश्न चिन्ह दल गया है कि क्या अब इस तरह के उपाय भी किये जायेंगे ?
ReplyDeleteमुद्दा सही उठाया है...विचारणीय.
ReplyDeleteसही मुद्दे पर प्रकाश डाला है
ReplyDeletekya sahi likha hain aapane
ReplyDeletemain abhi sham ko ye khabar TV par sun raha tha to hasi aa rahi thi ke vah re mere desh.
bahut khoob mam
Media to pahle hi biki hui hai paper bhi kafi had tak bike hue hi hain...isme koi shak nahi aur jo nahi maante sarkar ki baat vo ban ho jate hain....to vo din door nahi ki ek din aapka blog bhi ban ho jayege...kon se raam-raajy ki baat kar rahi hain...aaj kalyug hai madam ji....mana ki janta pahle se samajhdaar ho chuki hai...sabhi netaao ke asli chehre bhi pehchaan chuki hai....lekin DARRRR' jo sadiyon se janta k man me hai aur dusra SWARTH vo kabhi na khatm hua hai na hoga....to bolega kaun sacchayi ?
ReplyDeleteaap khud ko bhi bachaiye...(ha.ha.ha.) i wil prey for u.
nice post....mutthhiyaan bheech dene me saksham.....aur itni thand me khoon me garmi laane par baadhy.
:-)
अच्छी विचारणीय प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteपरिस्थितियों का सुन्दर विशलेषण किया है आपने.
आपका स्वागत है ब्लॉगर्स मीट वीकली 25 में
ReplyDeletehttp://hbfint.blogspot.com/2012/01/25-sufi-culture.html
अच्छा मुद्दा उठाया है गहन विचारों से ओतप्रोत लेख |बधाई |
ReplyDeleteआशा
बढ़िया मुद्दा उठाया है...जब मूर्तियाँ लगाई जा रही थीं...तब आँखें बंद थीं सबकी...अब इस से क्या बदला जाने वाला है.
ReplyDeleteप्रत्याशियों के कृत्यों का लेखा-जोखा तो आम जनता को पता होना ही चाहिए... तभी सही निर्णय लिए जा सकते हैं.
मेरे ख्याल से आपका सुझाव बेहतरीन है पर इसे कोई अख़बार स्वयं लागू नहीं कर सकता है अपितु चुनाव आयोग को ही ऐसी मुहीम चलानी चाहिए जिसमें सभी प्रत्याशियों के बारे में आवश्यक जानकारियाँ हों और वो निष्पक्ष हो.. जिस तरह चुनाव आयोग अखबारों में विज्ञापन देता है, उसी तरह इस कार्य को भी लागू किया जाए.. अगर ऐसा होता है तो चुनावी घमासान में काफी बदलाव होने के आसार होंगे..
ReplyDeleteक्या ऐसे सुझाव आम जनता चुनाव आयोग को सीधे दे सकती है? किसी से पता लगाएं और इस विचार-विमर्श को आगे बढ़ाएँ तभी आपकी यह सोच सफल होगी अन्यथा यह सोच आपके इस ब्लॉग में सीमित रहकर ही दम तोड़ देगी..
प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें...
@ आपकी प्रतिक्रिया देख कर बहुत खुशी हुई प्रतीक जी ! आपका कथन बिलकुल सही है कि चुनाव आयोग इस तरह की जानकारियाँ आम जनता के लिये आसानी से उपलब्ध करा सकता है क्योंकि उसके पास संवैधानिक ताकत भी है और यह उसका उद्देश्य और दायित्व भी है ! लेकिन समाचार पत्रों की ताकत भी कुछ कम नहीं है ! और जिस सूचना के ज्ञापन की उनसे अपेक्षा की जा रही है उसको छापने में कहीं कोई संवैधानिक बाधा आड़े नहीं आती ! रहा सवाल मेरे विचारों का तो एक नन्हा सा विचार ही खामोशी से जन्म लेता है जिसे थोड़ा सा समर्थन मिल जाता है तो वह हुंकार बन जाता है और व्यापक जन समर्थन मिल जाता है तो वही विचार एक दहाड़ बन जाने की कूवत भी रखता है ! मेरे ब्लॉग पर आपके विचारों का सदैव स्वागत है ! साभार !
ReplyDeleteआपका सुझाव बेहतरीन है समाचार पात्र अपनी कुछ ज़िम्मेदारी समझें तो
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