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Monday, December 16, 2024

उत्पीडन करने वाली पत्नियाँ

 





पिछले सप्ताह बैंगलोर के होनहार युवा इंजीनियर की आत्महत्या ने सारे देश को झकझोर कर रख दिया है ! एक समय था जब समाज में स्त्री की बड़ी दयनीय दशा हुआ करती थी और अक्सर लड़की होने की वजह से पहले तो अपने ही जन्मदाता माता-पिता के घर में उसके साथ भेद भाव किया जाता था और बेमेल विवाह के बाद ससुराल में भी उसे भाँति-भाँति से प्रताड़ित किया जाता था ! कभी दहेज़ कम लाने की वजह से, कभी संतान न होने की वजह से या संतान हुई भी तो लड़की पैदा करने की वजह से बहू को ही तरह-तरह की मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी जाती थीं ! उन्हें इतने कष्ट दिए जाते थे कि कभी-कभी तो वे आत्महत्या करने जैसे घातक कदम उठा लेती थीं ! कभी-कभी तो ससुराल में ही उन्हें ज़हर देकर मार दिया जाता था या मिट्टी का तेल छिड़क कर आग के हवाले कर दिया जाता था ! अगर यह सब न किया गया हो तो उन्हें उनके मायके वापिस भेज दिया जाता था जहाँ उनका जीवन बड़ी ही दयनीय दशा में पराश्रित होकर गुज़रता था ! यह वो समय था जब घर परिवार में स्त्रियों का दर्ज़ा पुरुष से नीचा माना जाता था ! लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था ! ससुराल में उनकी हैसियत नौकरानियों से भी बदतर होती थी ! इस विषय पर आधारित अनेकों उपन्यास और कहानियाँ हमने भी पढ़ी हैं और आप सबने भी ज़रूर पढ़ी होंगी ! पिता की संपत्ति में बेटी का कोई अधिकार नहीं होता था ! ससुराल में तो उसे इंसान ही नहीं समझा जाता था इसलिए ज़मीन जायदाद में अधिकार की तो बात ही बेमानी थी ! स्त्रियों की इस दुर्दशा को देखते हुए कुछ कड़े क़ानून स्त्रियों के हित में बनाए गए ! पिता की संपत्ति में उनका अधिकार सुरक्षित किया गया, ससुराल में भी उनकी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए पति व ससुर की संपत्ति में भी उनका हिस्सा सुरक्षित किया गया ! लड़कियों की शिक्षा के लिए ज़ोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया गया ! उद्देश्य था कि ससुराल में अगर उन्हें दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है तो उन्हें इतना आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया जाए कि वे प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वतंत्र रूप से अलग रह कर भी आत्मसम्मान के साथ अपना जीवन यापन कर सकें !
स्त्रियों को यह विशेषाधिकार भी दिया गया कि यदि वे दहेज़ प्रताड़ना या घरेलू हिंसा का आरोप ससुराल वालों पर लगा कर मुकदमा दायर कर दें तो पुलिस ससुराल वालों को तुरंत गिरफ्तार करे और उन्हें आसानी से बेल भी ना मिले ! इन प्रावधानों ने वास्तव में कितनी अबलाओं को सबल बनाने में सहायता की इसके आँकड़े तो मेरे पास उपलब्ध नहीं हैं लेकिन अपराधी प्रवृति की शातिर दिमाग की अनेकों स्त्रियों और उनके परिवार वालों के हाथ करोड़ों की लॉटरी का टिकिट ज़रूर लग गया ! बहुओं बेटियों को इन्साफ दिलाने की मुहिम में इन कानूनों का भरपूर दुरुपयोग होने लगा और अनेकों भले सज्जन पतियों की और उनके परिवार वालों की ज़िंदगी नर्क बन गयी ! ये सारी व्यवस्थाएं और क़ानून तभी तक ठीक थे जब तक इनका दुरुपयोग नहीं किया जाता था ! अब आँकड़े बताते हैं कि हर साल हज़ारों की संख्या में झूठे केस दायर किये जाते हैं और न जाने कितने भद्र पति सामाजिक प्रताड़ना और अपमान से बचने के लिए और पत्नी की अनाप-शनाप हर्जे खर्चे की माँग को पूरा न कर सकने की स्थिति में अपनी जीवन लीला को समाप्त कर देने के विकल्प को चुनने के लिए विवश हो जाते हैं !  
लड़कियों को सबल सशक्त बनाने का अभियान इतना तेज़ हुआ कि ये लड़कियाँ कब सही-गलत
, उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय की सीमा रेखा को क्रॉस करके प्रताड़ित होने अबला नारी की भूमिका से बाहर निकल कर प्रताड़ित करने वाली जल्लाद खलनायिका की भूमिका में आ गईं किसीको पता ही नहीं चला ! आजकल समाज में लड़कियाँ ज़रा भी दीन हीन और कातर नहीं रह गई हैं ! नारी जाति में भी घटिया सोच और आपराधिक प्रवृत्ति की अनेकों स्त्रियाँ हैं जिन्होंने इन कानूनों का दुरुपयोग कर अनेकों भले और सज्जन पुरुषों की और अपने ससुराल वालों की नाक में दम कर दी है ! इन दिनों अतुल सुभाष जी का जो केस मीडिया में छाया हुआ है वह इस बात का ज्वलंत उदाहरण है ! स्त्री हो या पुरुष किसीका भी उत्पीड़न होना बहुत गलत है ! जब हर क्षेत्र में नारी समान अधिकार की माँग रखती है तो इस क़ानून के तहत भी उसे कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए ! पहले पत्नी को पति द्वारा गुज़ारा भत्ता दिलवाए जाने का प्रावधान इसलिए रखा जाता था कि तब स्त्रियाँ आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित होती थीं ! वे स्वयं न तो शिक्षित होती थीं न नौकरी ही करती थीं इसलिए पति से अलग होने के बाद उनके व बच्चों के भरण पोषण में कोई दिक्कत न आये इसलिए यह व्यवस्था की गयी थी ! लेकिन अब जब नारी हर क्षेत्र में पुरुषों के समकक्ष खड़ी है और कही-कहीं तो उससे भी अधिक कमा रही है तो उसे गुज़ारा भत्ता किसलिए चाहिए ? यहाँ स्त्री का स्वाभिमान आड़े क्यों नहीं आता ? उसे दोनों हाथों में लड्डू चाहिए ! खुद तो कमा ही रही है पति को भी लूटना है ! पति बेचारा पत्नी की बेसिर पैर की माँगें पूरी करते-करते ही बाबा जी बन जाए ! यह नितांत अनुचित है, गलत है ! एक सभ्य एवं संवेदनशील समाज इस शाईलॉकी प्रवृत्ति का कतई समर्थन नहीं कर सकता ! मेरे विचार से जो सज़ा उत्पीड़न करने पर पति को और उसके परिवार को दी जाती है वही सज़ा ऐसी पत्नी को भी दी जानी चाहिए और उस पर भी सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए !

समस्या यह है कि महिलाओं के हित में जो क़ानून बनाए गए हैं वे मुकदमा दायर करने वाली हर महिला को समान रूप से लाभान्वित करने वाले हैं ! इन कानूनों में बदलाव लाने की ज़रुरत है ! कोई बीमार जब इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाता है तो डॉक्टर उसकी बीमारी की गंभीरता को जाँच परख कर उसे उतनी ही मिकदार की दवा देता है जो उसे स्वस्थ करने के लिए आवश्यक हो ! साधारण खाँसी ज़ुकाम के मरीज़ को सीवियर निमोनिया की दवा तो नहीं दी जाएगी ना ! इसमें संदेह नहीं है कि अभी भी हमारे समाज में अनेकों स्त्रियाँ ऐसी हैं जिनकी स्थिति में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है ! विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ शिक्षा का प्रचार प्रसार अभी इतना नहीं हुआ है जितना शहरों में हुआ है और जहाँ स्त्रियाँ अभी भी आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हैं !
मेरे विचार से 498-
A के मुकदमों का फैसला करते समय मुकदमा दायर करने वाली महिला की आर्थिक स्थिति के बारे में गहराई से संज्ञान लेने की बहुत अधिक ज़रुरत है ! अगर वह नौकरी करती है तो उसको कितना वेतन मिलता है, अपने माता-पिता की सम्पत्ति में उसका कितना अधिकार है और उसके घर वालों का आर्थिक स्तर क्या है ? फिर अलग होने के बाद अपने जिस पति का वह दोहन करना चाहती है उसका वेतन कितना है और उसके दायित्व कितने हैं ! गुज़ारे भत्ते के लिए पत्नी के द्वारा माँगी गयी राशि उसे देने के बाद उसके पास जीवन निर्वाह के लिए क्या बचेगा और कितना बचेगा ! पत्नी तो छोड़ कर चली गई लेकिन उसकी जो ज़िम्मेदारी अपने बूढ़े माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए हैं उन्हें तो और कोई नहीं बाँटने वाला है ! ऐसे में निष्पक्ष और उचित न्याय यही होगा कि ऐसे केसेज़ को निश्चित समय सीमा के अन्दर निपटाया जाए और पत्नी की आर्थिक स्थिति को भली प्रकार से जानने समझने के बाद ही गुज़ारे भत्ते की राशि को तय किया जाए ! जहाँ पत्नी पूरी तरह से सक्षम हो और किसी अतिरिक्त आर्थिक सहायता की उसे ज़रुरत न हो तो वहाँ पति को इस मुसीबत से बख्श भी दिया जाना चाहिए ! सामान अधिकार के लिए ऊँची आवाज़ में चिल्लाने वाली नारियों को सामान रूप से कर्तव्य निभाने के लिए भी तत्पर होना चाहिए ! अगर बच्चों की कस्टडी पिता के पास है और अगर पिता आर्थिक रूप से पूरी तरह से सक्षम नहीं है तो सक्षम पत्नी को बच्चों के भरण पोषण के लिए पति को आर्थिक मदद देनी चाहिए ! सही अर्थों में समान अधिकार की अवधारणा तब ही साकार होगी ! यह नहीं कि लाखों करोड़ों की दौलत गुज़ारे भत्ते के नाम से पति से ही वसूली जाए और उसे भिखारी बना कर सड़क पर फेंक दिया जाए ! जिस दिन क़ानून में इस आलोक में परिवर्तन होंगे और जब लोग देखेंगे कि इस तरह मुकदमा दायर करने से उनके पास किसी लॉटरी का टिकिट नहीं आने वाला है और उन्हें कोई विशेष फ़ायदा नहीं होने वाला है तो झूठे केसेज़ बना कर पतियों का दोहन करने का और उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का यह खौफनाक दौर ज़रूर थमेगा !


साधना वैद

 

चित्र - गूगल से साभार 

Wednesday, December 11, 2024

वर्तमान शिक्षा प्रणाली और बच्चों का विकास

 



वर्तमान में जैसी शिक्षा प्रणाली चलन में है उसे हम किसी भी तरह से बालोपयोगी तो बिलकुल भी नहीं है ! इस शिक्षा प्रणाली ने बच्चों से उनका बचपन और खुशी छीन ली है ! बच्चे मशीन की तरह इस शिक्षा प्रणाली के जाल में उलझ कर रह गए हैं और सुबह से शाम तक किताबों का बोझ उठाये शहर की सडकों पर दौड़ते भागते दिखाई देते हैं !

पहले साल में केवल तीन बार परीक्षा लेने का चलन था ! तिमाही, छ:माही और वार्षिक परीक्षाएं हुआ करती थीं ! इम्तहान के दिनों में छात्र मेहनत करके परीक्षा दे आते थे और अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होकर अगली कक्षा में प्रवेश लेते थे ! पूरे साल बच्चे खूब खुश रहते थे ! इनडोर, आउटडोर हर तरह के खूब खेल खेलते थे और अपने बचपन के सखा सखियों के संग खूब आनंदमय वातावरण का लाभ भी उठाते थे ! हर समय परीक्षा की तलवार सर पर लटकी हुई नहीं होती थी तो खूब बालोपयोगी पत्र पत्रिकाओं और अपनी अवस्था के अनुसार साहित्यिक किताबों को भी पढ़ा करते थे ! हमने भी अपने छात्र जीवन में अनेक उपन्यास और श्रेष्ठ कहानियाँ अदि पढ़ी हैं ! लेकिन अब जो हर समय टेस्ट होते रहते हैं और इनके मार्क्स फाइनल रिज़ल्ट में जुड़ने का दबाव बच्चों पर बनाया जाता है उसकी वजह से बच्चों को ज़रा भी समय नहीं मिल पाता है !

आजकल कोचिंग का भी प्रचलन भी बहुत बढ़ गया है ! शिक्षा भी अब व्यापार बन चुकी है ! पहले वे ही थोड़े से बच्चे ट्यूशन पढ़ते थे जो किसी एकाध विषय में कमज़ोर होते थे और कक्षा में बाकी बच्चों से पढाई में पिछड़ जाते थे ! लेकिन अब तो बच्चा कितना भी होशियार हो ! कक्षा में भले ही सबसे अधिक प्रतिभाशाली या टॉपर हो कोचिंग क्लासेज़ में तो उसे प्रवेश लेना ही होगा क्योंकि इन दिनों यही चलन है ! माता पिता पर दोहरा भार पड़ जाता है ! एक तो स्कूलों की फीस ही इतनी अधिक होती है कि सामान्य आमदनी के लोगों के पसीने छूट जाते हैं उस पर कोचिंग कक्षाओं की फीस और देनी पड़ जाती है चाहे बच्चे को कोचिंग की ज़रुरत हो या न हो ! कोचिंग कक्षाओं में बच्चों को भेजना आजकल फैशन की तरह हो गया है ! सुबह के स्कूल गए हुए बच्चे थके हारे स्कूल से तीसरे पहर तक घर आते हैं ! ढंग से खाना भी नहीं खा पाते कि कोचिंग क्लासेज़ का समय हो जाता है ! देर रात तक अगले दिन के टेस्ट की तैयारी में जुटे रहते हैं ! अब परीक्षाओं में हाई स्कोर अंक लाने का भी बहुत प्रेशर है बच्चों पर ! 90% अंक आने के बाद भी बच्चों को फूट-फूट कर रोते हुए देखा है मैंने ! हमारे ज़माने में 50% से ऊपर अंक लाने वाले बच्चों को बहुत होशियार समझा जाता था और 60% से ऊपर अंक लाकर प्रथम श्रेणी में पास होने वाले बच्चे बहुत प्रतिभाशाली और मेधावी माने जाते थे !

आज की परीक्षा पद्धति ने बच्चों की मुस्कराहट छीन ली है ! अधिकतर बच्चे अवसादग्रस्त रहने लगे हैं और चिड़चिड़े व एकान्तप्रिय होते जा रहे हैं ! न वे परिवार के साथ अच्छा वक्त बिता पाते हैं न दोस्तों के साथ खेल के मैदानों में और पार्क्स में दिखाई देते हैं ! इसका मूल्य वे अपने स्वास्थ्य को दाँव पर लगा कर चुका रहे हैं ! अगर घर में जल्दबाजी में ठीक से खाना नहीं खाया होता है तो वे शाम को कोचिंग क्लासेज़ के बाद अपनी मित्र मंडली के साथ बाहर का हानिकारक जंक फ़ूड खाने की बुरी आदत की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं ! कोचिंग क्लासेस के आस-पास अनेकों खाने पीने के स्टॉल्स इन दिनों दिखाई देने लगे हैं ! इसीका दुष्परिणाम है कि आजकल बहुत कम उम्र के युवाओं को हार्ट, शुगर, ब्लड प्रेशर आदि की समस्याएँ होने लगी हैं ! इसकी एक वजह यह भी है कि इस उम्र में बच्चों को जो शारीरिक व्यायाम आदि करना चाहिए उसके लिए उनके पास समय ही नहीं रहता ! शिक्षा प्रणाली और परीक्षाओं की रूपरेखा इस प्रकार की होनी चाहिए कि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके न कि वे केवल किताबी कीड़ा ही बन कर रह जाएँ ! देश के उज्जवल भविष्य के लिए और सर्वांगीण विकास के लिए आज के युवाओं का स्वस्थ होना परम आवश्यक है ! कहते हैं स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग होता है ! 


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद

 

 

Saturday, December 7, 2024

हाइकु मुक्तक

 




कौल पिता का, भटके जंगलों में, सन्यासी राम

निभाते रहे, दशरथ का वादा, करुणाधाम

हर ली सीता, क्रोधित रावण ने, हुआ अनर्थ

जलने लगी, प्रतिशोध की आग, छिड़ा संग्राम !

 

पन्नों के बीच, सूखी सी पाँखुरियाँ, गीली सी यादें,

तुम्हारी छवि, जब आती है याद, जगाती रातें, 

भीगी सड़क, रिमझिम फुहार, हाथों में हाथ

लम्बी सी सैर, आकाश पाताल की, बातें ही बातें !

 

चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद 

Monday, November 18, 2024

ओफ्फोह दादू - हाइकु संवाद पोएम - 3


ओफ्फोह दादू - दिल छू लेने वाली कविता जो याद दिलाती है बचपन के दिन

क्या आप भी अपने दादा की यादों में खो जाते हैं? साधना वैद की यह कविता दादा-पोते के रिश्ते को एक खूबसूरत तरीके से पेश करती है। पोते की जिज्ञासा, दादा की ममता और दोनों के बीच का प्यार, ये सभी भावनाएं इस कविता में बखूबी उभर कर आती हैं।

अपनी बचपन की यादों को ताजा करें और इस कविता के माध्यम से अपने दादा को याद करें।


साधना वैद 

Saturday, November 9, 2024

जगमग जग कर दें

 



दूर भगा कर तम हर घर को
जगर मगर कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !

रहे न कोई घर का कोना
कहीं उपेक्षित
, तम आच्छादित
हो जाए मन का हर कोना
हर्षित
, गर्वित और आह्लादित
रच कर सुन्दर एक रंगोली  
घर पावन कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर

जगमग जग कर दें !
गूँथ आम्र पल्लव से सुन्दर
द्वारे वन्दनवार सजाएं
तेल और बाती से रच कर
घर आँगन में दीप जलाएं
माँ लक्ष्मी के स्वागत में हम
घर मंदिर कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !
जैसे आज सजाया घर को
मन का भी श्रृंगार करें
ममता
, करुणा, दया भाव से
अतिथि का सत्कार करें
द्वेष
, ईर्ष्या, क्रोध मिटा कर
मन निर्मल कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !  

साधना वैद

Tuesday, November 5, 2024

दौज का टीका

 



दौज का टीका

भैया के भाल पर

दमके ऐसे

 

चंदा सूरज

नील गगन पर

चमके जैसे 

 

भैया सा स्नेही

सकल जगत में

दूजा न कोई

 

सौभाग्य जगा

पाकर तुझे भैया

खुशियाँ बोई

 

स्नेह की डोर

कस कर थामना

दुलारे भैया

 

पार उतारो

थाम के पतवार

जीवन नैया

 

दौज का टीका

दीप्त हो भाल पर

सूर्य सामान

 

शीतल करे

अन्तर की तपन

चन्द्र सामान   

 

रोली अक्षत

सजे भाल पर ज्यों

सूरज चाँद 


स्नेह डोर से 

बहना ने लिया है 

भैया को बाँध !



साधना वैद 


Thursday, October 24, 2024

किसान

 



बुधिया सुबह सवेरे जब खेत पर पानी लगाने पहुँचा तो हैरान रह गया उसके खेत में जाने वाली नहर की धार को साथ वाले खेत के नए मालिक ने खूब ऊँची मेंड़ बना कर रोक लिया था और अपने खेत की और मोड़ लिया था ! वहाँ पहलवान किस्म के चार हट्टे कट्टे आदमी भी मुस्तैदी से पहरा दे रहे थे ! बुधिया ने प्रतिवाद किया तो उन्होंने उसे डपट कर हड़का दिया ! पहले तो बगल वाले खेत का मालिक रामेसर था ! उसका जिगरी दोस्त ! दोनों बारी-बारी से अपने खेत में पानी लगा लेते थे ! कोई झगड़ा कोई तकरार कभी नहीं हुए ! गले तक कर्जे में डूबे रामेसर ने पिछले हफ्ते अपना खेत किसी जगत सिंह को बेच दिया ! और अपने परिवार के साथ शहर की ओर पलायन कर गया मेहनत मजदूरी करके बाल बच्चों का पेट भरने के लिए ! बुधिया के सर पर संकट के बादल मंडरा रहे थे ! क्या करे किससे मदद माँगे ! पिछले साल भी सूखे की वजह से सारी फसल खराब हो गयी थी ! बहुत नुक्सान उठाना पडा था उसे भी ! इस साल भी ठीक से सिंचाई नहीं हुई तो वह तो बर्बाद हो जाएगा !
दुखी चिंतित बुधिया मुँह लटकाए घर आया तो बापू ने सलाह दी विधायक जी के पास जाकर अपनी विपदा कहे ! वो कुछ न कुछ सहायता जरूर करेंगे ! बुधिया को कुछ धीरज बँधा ! पास पड़ोस के दो तीन बुजुर्गों को लेकर वह विधायक जी का पता पूछते हुए उनके बंगले तक पहुँचा ! गेट पर चार बंदूकधारी पहरा दे रहे थे और सुनहरे अक्षरों में नेम प्लेट पर विधायक जी का नाम चमक रहा था, ‘जगत सिंह चौधरी’ !



साधना वैद

 

चित्र - गूगल से साभार 

Tuesday, October 22, 2024

लेखक और उसका आचरण





किसी भी लेखक के लेखन में उसके व्यक्तित्व या उसके आचरण की झलक दिखना आवश्यक तो नहीं होता फिर हम उसे ढूँढने की कोशिश ही क्यों करते हैं ! लेखक सर्वप्रथम एक इंसान है और लेखन उसकी रूचि, शौक या व्यवसाय कुछ भी समझ लीजिये ! ये दोनों ही चीज़ें एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हैं और किसी भी तरह से एक दूसरे को तनिक भी प्रभावित नहीं करतीं या यूँ कहिये कि उन्हें एक दूसरे को प्रभावित करना नहीं चाहिए !


किसी भी लेखक के लेखन में उसका अपना व्यक्तित्व झलक सकता है और उसकी अपनी सोच, उसकी मानसिकता एवं उसकी प्राथमिकताएं प्रतिबिंबित अवश्य हो सकती हैं लेकिन उसके शत प्रतिशत लेखन में ऐसा ही हो यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं ! कोई भी लेखक सदैव एक ही साँचे में ढाल कर लेखन कैसे कर सकता है ! लेखन के विषय विविध होंगे तो उसका प्रारूप भी भिन्न ही होगा ! सामाजिक सरोकारों के प्रति साहित्यकार की प्रतिबद्धता सर्व विदित भी है और सर्वमान्य भी ! कभी उसकी रचनाएं आत्मपरक हो सकती हैं तो कभी नितांत तटस्थ और निर्वैयक्तिक ! कभी वह भावुक होकर लिखता है तो कभी वस्तुपरक होकर ! दोनों ही सूरतों में उसका लेखन भिन्न होगा ! जो व्यक्ति पर्यटन को विषय बना कर लिख रहा है या किसी भवन की वास्तुकला पर लिख रहा है जो कि एक विशुद्ध तथ्यपरक विषय है उसमें उसके आचरण की झलक देखने की कोशिश बेमानी ही होगी ! ऐसा मेरा विचार है ! वैसे एक लेखक की कुछ रचनाओं को पढ़ कर उसके सोच
, उसकी मानसिकता और उसके आत्मिक सौन्दर्य के दर्शन तो अवश्य ही हो जाते हैं इसमें भी संदेह नहीं है तभी तो हम बिना मिले ही कतिपय लेखकों के मुरीद हो जाते हैं और अपने हृदय में उनके लिए कोई न कोई कोना अवश्य ही सुरक्षित कर लेते हैं ! आशा करते हैं कि उनका आचरण भी उतना ही श्रेष्ठ होगा जितना उनका लेखन है !


एक बात और जो कहने से रह गई उसे और कह दूँ ! कुछ लेखकों की छवि और लोकप्रियता जनमानस में उनके लेखन व रचनाओं के माध्यम से बनती है ! जैसे कि हास्य रस के दो बड़े स्तम्भ हैं काका हाथरसी एवं सुरेन्द्र शर्मा जी ! दोनों ही दिग्गज रचनाकार माने जाते हैं और पाठकों एवं श्रोताओं के बीच गहरी पैठ बनाए हुए हैं ! दोनों ने ही अपनी रचनाओं में अपनी पत्नी की इंतहा की हद तक हँसी उड़ाई है ! काका हाथरसी की कविताओं में 'काकी' और सुरेन्द्र शर्मा जी की कविताओं में उनकी 'घराड़ी' सारी मुसीबतों की जड़ रही हैं तो क्या हम यह समझ लें कि वे अपनी पत्नियों का सम्मान नहीं करते या उनकी नज़रों में उनकी पत्नियाँ केवल मूर्ख, अज्ञानी और उपहास की पात्र ही हैं ! लेखक केवल कभी-कभी पाठकों को रिझाने के लिए, उनके अवसाद को कम कर उन्हें गुदगुदाने के लिए या उन्हें खुश करने के लिए भी लिखते हैं ! लेकिन यह कतई ज़रूरी नहीं कि उनकी सोच भी वैसी ही हो और उनका आचरण भी वैसा ही हो !


साधना वैद


Sunday, October 13, 2024

मेरा फैसला – लघुकथा

 





आज कक्षा में टीचर बहुत खुश दिखाई दे रही थीं | उन्होंने इशारा करके रोहित को खड़ा किया |

“रोहित, तुम अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद क्या बनना चाहते हो ?”

“जी टीचर, मैं डॉक्टर बन कर दीन दुखियों और निर्धन रोगियों का मुफ्त में उपचार कर मानवता की सेवा करना चाहता हूँ |”

“शाबाश ! और आकाश तुम ?”

“टीचर, मैं पायलट बनना चाहता हूँ और देश विदेश के सभी प्रसिद्ध स्थानों को देखना चाहता हूँ |”

इसी तरह, कोई जज, कोई वकील, कोई इंजीनियर, कोई स्पेस साइंटिस्ट, कोई कलाकार तो कोई अध्यापक बनना चाहता था और सबके पास अपने सबल तर्क भी थे जो उनकी महत्वाकांक्षा का समर्थन कर रहे थे | टीचर बहुत खुश हो रही थीं अपने विद्यार्थियों की खूबसूरत सपनों की उड़ान और उनकी सुलझी हुई सोच को देख कर |

अंत में बारी आई देवांश की | टीचर ने उससे भी यही सवाल किया |
“टीचर, मैं साधू बाबा बनना चाहता हूँ |”

टीचर के साथ सारे बच्चे हैरान थे !

“और भला तुम साधू बाबा क्यों बनना चाहते हो बताओगे |” टीचर ने पूछा |

“टीचर, सबसे बड़ा फ़ायदा तो साधू बाबा बनने में ही है | कहीं कोई डिग्री नहीं दिखानी पड़ती, कोई एंट्रेंस इम्तहान पास नहीं करना पड़ता, किसी को रिश्वत नहीं देनी पड़ती | बस किराए के कपड़े पहन कर, दो चार बढ़िया बढ़िया भजन याद कर कीर्तन और सत्संग के नाम पर थोड़ी सी भीड़ जुटा लो एक दो बार, आपके तो समर्थक बढ़ते ही जायेंगे | पुराने संतों के उपदेशों को सुन कर चार छ: दमदार डायलॉग्स याद कर लो | इस धंधे में बड़ी इज्ज़त मिलती है | आप चाहे तीस बरस के भी न हों बड़े बूढ़े बुज़ुर्ग भक्त आपके चरणों में लोट लगाने को तैयार रहते हैं | भेंट पूजा उपहार में इतने फल फ्रूट मेवा मिठाई और तरह तरह के व्यंजन आते हैं कि कितना भी खाओ खिलाओ ख़त्म ही नहीं होते | दान पेटी हर समय रुपयों से भरी रहती है और बिन माँगे पुलिस प्रशासन आपकी सेवा सुरक्षा में लगा रहता है | बड़े बड़े नेता आपके आगे सर झुकाते हैं और हर समाचार पत्र में, टी वी के हर चैनल पर आपके ही इंटरव्यू आते रहते हैं | इसके अलावा लोग हज़ारों रुपयों के टिकिट खरीद कर आपकी सभा में आने के लिए हफ़्तों पहले से बुकिंग कराते हैं | जितना पैसा ये जीवन भर नौकरी करके नहीं कमा पायेंगे उससे कहीं अधिक मेरे पास बिना कुछ करे धरे एक सभा में आ जाएगा ! इंसान को इससे ज़्यादह और क्या चाहिए | बताइये टीचर मेरा फ़ैसला इन सबसे बढ़िया है या नहीं ?”  


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद

 


Thursday, October 10, 2024

त्योहार

 



आज शारदेय नवरात्रि की अष्टमी है ! बस्ती के घरों में खूब हलचल है ! जो बच्चियाँ अपनी माँओं की डाँट फटकार खाने के बाद भी दिन चढ़े तक ऐसे ही घूमती रहती हैं आज सुबह से नहा धोकर साफ़ सुथरे कपड़े पहन कर बाल बाँध कर तैयार हो रही हैं ! आज का दिन उन सबके लिए सबसे बड़े त्योहार का दिन है ! सबको आज कई घरों में आमंत्रित किया जाएगा ! खूब हलवा पूरी खाने को मिलेंगी और भेंट उपहार मिलेंगे सो अलग ! लड़कियों के ग्रुप में बड़ा उत्साह है !
बिल्मा भी सबके साथ जाना चाहती है ! लेकिन न तो उसके पास कोई अच्छी सी फ्रॉक है न जूते या चप्पल ! जूता फट गया है चप्पल टूट गयी है ! अम्माँ के पास पैसे भी नहीं है जो खरीद कर दिला देती ! इसलिए माँ ने जाने से मना कर दिया है ! बिल्मा आँखों में आँसू भरे उदास बैठी है ! आज बापू ज़िंदा होते तो ज़रूर उसके लिए कोई न कोई जुगत लगा कर इंतजाम कर देते ! तभी उसकी पक्की सहेली मुनिया उसके लिए एक फ्रॉक लेकर आ गयी ! “ले बिल्मा ! इसे पहन ले और जल्दी से तैयार हो जा ! पूजा में इतने पैसे तो मिल ही जायेंगे कि तेरी चप्पल आ जाए !” बिल्मा ने माँ की तरफ देखा ! माँ की आँखों में आँसू भी थे और इजाज़त भी !


चित्र - गूगल से साभार


साधना वैद

Friday, October 4, 2024

प्रेम पर्याय

 




दिग दिगंत

सुरभित प्रेम से

दिव्य है भाव

सागर से गहरा

आकाश से व्यापक !

 

प्रीत की ज्योत

सदा बाले रखना

उर अंतर

तृप्त रहेगा मन

आलोकित जीवन !

 

रही निहार

खिड़की पर खड़ी

बूंदों की लड़ी

कब आयेगी पिया

तेरे आने की घड़ी !

 

प्रेम के रंग

भावों की पिचकारी

रंग दे पिया

अपने ही रंग में

मेरी चूनर कोरी !

 

दिव्य प्रकाश

प्रेम मय जगत

धरा प्रफुल्ल

करे अभिनंदन

नवोदित रवि का !

 

रास की रात

मंत्रमुग्ध राधिका

विमुग्ध कान्हा

हर्षित ग्वाल बाल

औ’ आल्हादित धारा !


चित्र - गूगल से साभार 

 

साधना वैद 

 


Monday, September 30, 2024

ओफ्फोह दादू हाइकु संवाद पोएम 2

दादा और पोते का प्यारा सा रिश्ता, जो हर पल खास होता है। इस वीडियो में देखें कैसे एक पोता अपने दादा की हर छोटी-छोटी ज़रूरत का ख्याल रखता है और अपनी सेवा और शरारतों से दादा का दिल जीतता है। o दादा-पोते के रिश्ते की मासूमियत को महसूस करें o बचपन की यादें ताजा करें o परिवार के प्यार का अनुभव करें o एक मर्मस्पर्शी कहानी का आनंद लें o दादा और पोते के बीच प्यारे संवाद o पोते का दादा का ख़याल रखने का अनोखा अंदाज़ o पोते की शरारतें और दादा की प्रतिक्रिया o परिवार के साथ बिताए हुए खूबसूरत पल

साधना वैद 


Thursday, September 26, 2024

बच्चों में अनुशासन की कमी – कारण और निदान

 



बच्चों में अनुशासन की कमी – कारण और निदान

आजकल के बच्चों में मुख्य रूप से किशोर वय के बच्चों में अनुशासनहीनता एवं निरंकुशता के दर्शन कुछ अधिक ही हो रहे हैं ! उसका मुख्य कारण भी घर परिवार का वातावरण है और इसका निदान भी घर में ही है ! संयुक्त परिवारों का टूटना इसका सबसे बड़ा कारण है ! जहाँ माता पिता दोनों ही काम करने वाले होते हैं वहाँ बच्चों की अच्छी परवरिश की समस्या आ जाती है ! लेकिन उन परिवारों में जहाँ घर में और भी कई सदस्य रहते हैं इसका निदान आसानी से हो जाता है क्योंकि परिवार के वे सभी सदस्य बच्चों का बहुत अच्छी तरह से ध्यान रखते हैं उनमें अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करते हैं और बच्चे भी उनका कहना मानते हैं उनका आदर करते हैं ! लेकिन जहाँ संयुक्त परिवार टूट गए हैं घर के बड़े बुजुर्गों का स्थान अल्प शिक्षित नौकरों, आया व नैनीज़ वगैरह ने ले लिया है जिनका एक मात्र सरोकार सिर्फ अपने वेतन से होता है बच्चों की परवरिश से नहीं ! अक्सर इनमें से अधिकाँश नौकर स्वयं बुरी आदतों के शिकार होते हैं, जैसे झूठ बोलना, चोरी करना, बहाने बनाना आदि और बच्चों को भी वे ही यही बातें सिखाते हैं ! माता पिता अपने बच्चों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाते इस अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए वे बच्चों की हर सही गलत माँग को पूरा करने के लिए बाध्य रहते हैं और बच्चे इस मौके का फ़ायदा उठाते हैं ! घर में बच्चों पर कोई अंकुश नहीं होता तो वे अपने फोन पर या टी वी पर अनर्गल कार्यक्रम देख कर अपना मनोरंजन करते हैं जिसका उनके मन मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है ! आजकल बच्चों में स्वेच्छाचारिता व् एकान्तप्रियता की भावना भी प्रबल रूप से घर करती जा रही है ! वे अपने पसंद के लोगों के अलावा अन्य किसीसे से बात करना मिलना जुलना बिलकुल पसंद नहीं करते ! कोई घर आ जाए तो कमरे से भी बाहर नहीं आते ! उन्हें मँहगे मँहगे वीडियो गेम्स और बाहर दोस्तों के साथ सैर सपाटा करने में ही आनंद आता है जो बिलकुल गलत है ! वे किसीसे आदरपूर्वक बात नहीं करते !
इन समस्याओं के निदान माता पिता के हाथ में ही हैं ! सबसे पहले वे अपना आचरण सुधारें ! बच्चों की पहली पाठशाला घर में ही होती है ! बच्चों को घर के सभी सदस्यों का आदर करने की और उनकी बात मानने की शिक्षा दें ! बच्चों के दोस्तों पर भी सतर्क नज़र रखें एवं उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में भी जानें ! अक्सर टूटे परिवारों के बच्चे अस्वस्थ मानसिकता के शिकार हो जाते हैं और ऐसे बच्चों का साथ आपके बच्चे पर भी बुरा प्रभाव डाल सकता है ! घर में कुछ अच्छी परम्पराओं का प्रतिपादन करें और स्वयं भी उनका पालन करें ! शाम का समय सब साथ बैठ कर खाना खाएं ! खाने के समय टेलीफोन का प्रयोग बिलकुल वर्जित कर दें ! बच्चों के हाथों से घर के अन्य सदस्यों को खाना परसवायें ! बुज़ुर्ग अगर घर में हैं तो प्रतिदिन उनके पास कुछ समय बैठने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करें ! इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बच्चे उनका अनादर न करें ! बच्चों को उनके कर्तव्यों का भान अवश्य कराते रहें ताकि उनमें अच्छे संस्कारों की नींव पड़े और वे अच्छे इंसान बनें ! उन्हें जो भी समझाएं प्यार से समझाएं ताकि वे उसे मन से आत्मसात करें चिढ़ कर नहीं ! क्योंकि जिन बातों को मन से नहीं किया जाता उनका असर भी अस्थाई ही होता है ! स्वयं भी बच्चों के सामने नियंत्रित रहें और किसीसे अपमानजनक भाषा में बात न करें ! आजकल असभ्यता और बदतमीजी को आधुनिकता और बोल्डनेस का पर्याय समझा जाने लगा है !


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद


Wednesday, September 18, 2024

यह घर भी तुम्हारा ही है

 


रिंगटोन से ही पहचान गयी सविता ! यह सुपर्ण का ही फोन है ! मन उदास था कि इस बार क्रिसमस वेकेशंस में वह होस्टल से घर नहीं आ रहा था ! अपने दोस्त के साथ उसने यूरोप के कुछ बहुत खूबसूरत स्थान देखने का प्रोग्राम बना लिया था ! सविता को फ़िक्र थी यूरोप में बहुत सर्दी होगी ! सुपर्ण के पास तो पर्याप्त गरम कपड़े होंगे भी नहीं ! मुम्बई में सर्दी पड़ती ही कहाँ है ! उसे कह दूँगी न हो तो वहीं से कुछ खरीद ले या यहीं से कुछ बढ़िया वाले कपड़े खरीद कर भेज देती हूँ ! इसी उधेड़बुन में उलझा था सविता का दिमाग ! अच्छा हुआ सुपर्ण का फोन आ गया ! उसने जल्दी से दौड़ कर फोन उठाया !

“हाँ बेटा बोलो ! तुम्हारे एयर टिकिट्स बुक हो गए ? किस तारीख के हुए हैं ? मैं सोच रही थी पापा का नीला वाला ओवरकोट और कुछ नए एक्स्ट्रीम ठण्ड में पहनने वाले गरम कपड़े तुम्हारे पास भेज दूँ ! वहाँ तो उन दिनों गज़ब की ठण्ड होगी ना |”

“रुको ना मम्मी ! इस सबकी कोई ज़रुरत नहीं है हम कहीं नहीं जा रहे !” सविता हतप्रभ थी ! 

“क्यों क्या हुआ ? अभी तक तो तुम बहुत उत्साह में थे ! पैसे कम पड़ रहे हैं क्या ? मैं भेज दूँगी न और ! क्या बात है सब ठीक तो है ?”

“नहीं मम्मी ! फरहान के साथ यूक्रेन की राजधानी कीव जाने का प्लान था हम तीन दोस्तों का ! बहुत ही खूबसूरत शहर था वो ! सारी दुनिया से लोग पढ़ने आते हैं वहाँ ! लेकिन पिछले शुक्रवार के हमले में कीव के उस इलाके में बमबारी हुई जहाँ फरहान का सारा परिवार रहता था ! सुना है वह हिस्सा बिलकुल तबाह हो गया है ! मम्मी फरहान का चार पाँच मंजिला शानदार घर भी तहस नहस हो गया और उसके माता पिता चाचा चाची, भाई बहन सब इस हमले में मारे गए ! अब उसके पास न घर रहा जाने के लिए न परिवार !” सुपर्ण का गला भर आया था !
“मम्मी इसीलिये मैं भी इस बार घर नहीं आउँगा ! हम तीन चार दोस्त यही रहेंगे फरहान के साथ मुम्बई में ताकि वह अकेला न हो जाये !”
“नहीं बेटा ! तुम घर ज़रूर आओगे और अकेले नहीं आओगे फरहान को साथ लेकर आओगे ! उससे कहना यह घर भी तुम्हारा ही है और यह परिवार भी !” सविता की आवाज़ में दृढ़ता भी थी और अकथनीय प्यार भी !   

 

साधना वैद  


Sunday, September 15, 2024

"ओफ्फोह दादू"- हाइकु संवाद पोएम 1

 



एक प्यारा पोता अपने दादू के लिए अपनी भावनाओं को इस खूबसूरत हाइकु कविता के माध्यम से बयां करता है। दादू की चिंताओं को दूर करने और उन्हें खुश करने के लिए वह तरह-तरह के प्यारे काम करने की बात करता है। इस वीडियो में आप देखेंगे कि कैसे एक पोते का प्यार अपने दादू के लिए कितना मायने रखता है। कविता के प्रत्येक पंक्ति के साथ आप दादू और पोते के बीच के भावुक पलों को दिखा सकते हैं। जैसे दादू की चिंता, पोते का दादू को ढांढस बंधाना, साथ में शतरंज खेलना, और अंत में दादू को सोने के लिए कहना।


साधना वैद

Sunday, September 1, 2024

बिकाऊ

 



आज दुनिया में हर चीज़ बिकाऊ हो चुकी है
हवा से लेकर पानी तक
खुशबू से लेकर मुस्कान तक
चितवन से लेकर चाल तक
लेकिन अभी भी बहुत कुछ बाकी है
जो अनमोल होते हुए भी 
बिलकुल बिकाऊ नहीं है
जो संसार में
सबसे कीमती होते हुए भी
नितांत नि:शुल्क है
लेकिन जिसकी कद्र करना
आज का इंसान भूल गया है
जिसे एक कोने में उपेक्षा से डाल कर
इंसान ने उससे नज़रें फेर ली हैं
वह है माता पिता का प्यार
माता पिता का आशीर्वाद
माता पिता का सान्निध्य !
कब समझेगा यह मूरख इंसान
यह वह अनमोल वरदान है
जो कभी बिकाऊ नहीं हो सकता
जिसका मोल इस संसार में
कभी कोई लगा ही नहीं सकता

क्योंकि उसे बिलकुल मुफ्त
अबाध मात्रा में पाया तो जा सकता है
लेकिन उसका अल्पांश भी
खरीदने की औकात
किसी में नहीं है !   

 

साधना वैद   


Thursday, August 29, 2024

‘रोज़ी – द रिवेटर’

 


आप जानते हैं रोज़ी को ? कभी मिले हैं उससे ? नाम तो सुना होगा उसका ! अरे नाम भी नहीं सुना ? तब तो आपको मिलवाना ही होगा इस विलक्षण व्यक्तित्व की स्वामिनी रोज़ी से ! अमेरिका के इस प्रवास से पूर्व मैंने भी रोज़ी का नाम पहले कभी नहीं सुना था ! लेकिन जब उसके बारे में जाना, समझा और उसका थोड़ा सा परिचय मिला तो रोक नहीं सकी खुद को और उससे मिलने के लिए एक दिन अपने बेटे और पतिदेव के साथ जा ही पहुँची उसके घर जो सैन फ्रांसिस्को में है ! आप अभी तक इतिहास के पन्नों में दर्ज अनेकों उन दर्ज़नों महान महिलाओं से मिल चुके होंगे जिनके नाम समूचे विश्व में प्रसिद्ध हैं और जिनकी तस्वीरें, जिनके तैल चित्र, जिनकी मूर्तियाँ, जिनकी कहानियाँ संसार के बड़े बड़े संग्रहालयों में सजी हुई हैं ! लेकिन अगर आप रोज़ी से नहीं मिले तो मेरी नज़र में आप सच में एक बहुत बड़ी उपलब्धि से आज तक वंचित ही रह गए हैं ! मिलना चाहते हैं ना रोज़ी से ? तो चलिए मेरे साथ !
रोज़ी की कहानी जानने के लिए हमें काल खण्ड की दुर्गम वीथियों में प्रवेश कर समय की विपरीत दिशा में मुड़ कर लगभग अस्सी पिच्चासी वर्ष पीछे जाना होगा ! स्वाभिमानी, सक्षम, समर्थ, दृढ़ इच्छाशक्ति वाली और अदम्य उत्साह व जोश से भरी रोज़ी का अवतरण इसी काल में हुआ था जो आज भी सबके लिए मिसाल बन हुई है ! यह काल था द्वितीय विश्व युद्ध का ! हेनरी काइज़र उस समय के बहुत बड़े उद्योगपति थे और सैन फ्रांसिस्को के रिचमंड क्षेत्र में उनका एक बहुत बड़ा शिप यार्ड था जिसमें युद्ध के लिए बड़े-बड़े युद्ध पोत और उनसे जुड़ी अनेक तरह की सामग्री का निर्माण किया जाता था ! द्वितीय विश्व युद्ध का वह समय बहुत ही कठिन था जिसने तत्कालीन अमेरिकन्स के जीवन को आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से सबसे अधिक प्रभावित किया था ! अधिकतर पुरुष युद्ध के मोर्चे पर चले गए थे और घरों में केवल स्त्रियाँ, बच्चे और बुज़ुर्ग लोग रह गए थे ! रोज़ी के म्यूज़ियम में कई परिवारों के लोगों के अनुभव प्लेकार्ड्स पर लिखे हुए दिखाई देते हैं ! उसमें एक प्लेकार्ड पर किसी व्यक्ति ने लिखा था कि उसने अपने बचपन में अपने घर में किसी भी पुरुष को नहीं देखा ! आपको जान कर आश्चर्य होगा कि उस समय के अमेरिका में भी लोगों की यही मानसिकता थी कि औरतों को केवल घर सम्हालना चाहिए ! उन्हें बाहर जाकर काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है ! क्या हम भारतीयों की मानसिकता से मिलती जुलती नहीं लगी आपको भी यह बात ? मैंने जब वहाँ पत्थर पर इसे खुदा हुआ देखा तो मुझे भी बहुत हैरानी हुई थी ! लेकिन जब जीवन में ऐसी कठिन परिस्थितियाँ आ जाएँ तो घर परिवार चलाने के लिए स्त्रियों को भी बाहर तो निकलना ही पड़ेगा ! भारत हो या अमेरिका ! यह भी एक निर्मम यथार्थ है !
हालात ऐसे थे कि मर्दों के युद्ध में चले जाने से घर में बड़ा भारी आर्थिक संकट पैदा हो गया ! मजबूर होकर स्त्रियों को काम के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा ! मर्दों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में उनकी स्वीकार्यता न के बराबर थी ! कोई भी उन्हें काम पर लेने के लिए तैयार नहीं था ! न वे मर्दों की तरह प्रशिक्षित थीं, न उनकी तरह ताकतवर थीं और शायद न ही उनकी तरह होशियार थीं ऐसा बड़े बड़े व्यापारिक संस्थानों को चलाने वाले लोगों की राय थी ! ‘रोज़ी द रिवेटर’ का जन्म इसी काल में हुआ ! स्त्रियों को फैक्ट्रीज में काम करने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा ! कदम-कदम पर स्वयं को सिद्ध करना पड़ा और मर्दों के इस संसार में कई तरह की असमानताओं, अन्याय और शोषण को झेलना पड़ा ! रिचमंड के शिप यार्ड से इस संघर्ष का सूत्रपात हुआ ! स्त्रियाँ यहाँ आकर नौकरी पर रखे जाने के लिए मालिकों को हर संभव तरीके से कन्विंस कराने की कोशिश करती थीं लेकिन परिणाम कभी संतोषप्रद नहीं निकलते थे ! वे यह सिद्ध करना चाहती थीं कि ऐसा कोई भी काम नहीं है जो मर्द कर सकते हैं और वे नहीं कर सकतीं ! रिवेटिंग, वेल्डिंग, मशीनिंग, शिपफिटिंग, पाइपफिटिंग, पेंटिंग, इलेक्ट्रीशियन आदि का कोई भी काम वे मर्दों से बेहतर कर सकती हैं उन्हें सिर्फ मौक़ा दिए जाने की दरकार है ! महिलाओं का यह संघर्ष दिन ब दिन उग्र होता गया और इसकी गूँज बड़े बड़े उद्योगपतियों तक भी पहुँचने लगी ! इस आन्दोलन से जुड़ी हर महिला रोज़ी कहलाई और “ We can do it.” इस आन्दोलन का नारा बन गया ! रोज़ी के नाम से १९४३ में एक गाना सारे अमेरिका में बहुत लोकप्रिय हुआ ! ‘रोज़ी’ सारे अमेरिका की महिलाओं की आवाज़ बन गयी ! गीत अंग्रेज़ी में है ! इसका मुखड़ा लिख रही हूँ ! आप चाहें तो गूगल पर सर्च कर इसे सुन सकते हैं ! गीत के बोल इस प्रकार हैं –
“She is a part of the assembly line
She is making history
Working for victory
Rosie the riveter.”
हेनरी काइज़र, जो उस वक्त के सबसे बड़े उद्योगपति थे, ने समय की नज़ाकत को समझा ! उन दिनों अमेरिका का वेस्ट कोस्ट युद्ध सामग्री बनाने का केंद्र स्थल था ! द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान समूचे विश्व में जितनी युद्ध सामग्री की खपत हो रही थी उसका ४०% अमेरिका में बन रहा था ! जिन कारखानों में कारें व विविध प्रकार के अन्य समाजोपयोगी सामान बनाये जा रहे थे वे सभी अपने काम छोड़ कर युद्ध सामग्री बनाने में जुट गए ! सैनफ्रांसिस्को के बे एरिया से, जिसमें रिचमंड शिपयार्ड भी शामिल था, ४५% कार्गो टनेज और 20% युद्ध पोतों के टनेज की आपूर्ति की जाती थी ! हेनरी काइज़र के पास युद्ध से जुड़ी सामग्री बनाने के बड़े-बड़े ऑर्डर्स थे और शिप यार्ड में कामगारों की भारी कमी थी ! उसने महिलाओं को काम पर रखना शुरू किया ! महिलाओं का आन्दोलन रंग लाया ! उन्हें काम तो मिला लेकिन यहाँ भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा ! एक ही तरह के काम के लिए उन्हें मर्दों से कम मेहनताना दिया जाता था ! उन्हें अपने सीनियर्स की झिड़कियाँ खानी पड़ती थीं और बात-बात पर अपमानित होना पड़ता था ! फिर भी उस समय हर रोज़ी में अदम्य जोश था, हौसला था और थी स्वयं को मर्दों के बराबर योग्य सिद्ध करने की उत्कट लालसा ! स्त्रियों के लिए कामों की कमी नहीं थी ! शिप यार्ड्स में और फैक्ट्रीज में काम करने के अलावा भी कई क्षेत्र थे जैसे शिक्षा विभाग, नर्सिंग, पुलिस आदि जिनमें उस समय की महिलाओं ने अभूतपूर्व योगदान दिया और स्वयं को सिद्ध किया !
युद्ध के इस काल ने जहाँ लोगों को जीवन की कठिनाइयों और अभावों से परिचित कराया तो वहीं कुछ क्षेत्र में कई वर्जनाएं भी टूटीं ! काले गोरे का भेद उन दिनों भी चरम पर था जिन्हें हमेशा भेदभाव का शिकार होना पड़ता था उन्हें व्हाईट अमेरिकन्स के साथ एक स्तर पर काम करने के अवसर मिलने लगे ! काले पुरुष तो युद्ध के मोर्चे पर भेज दिए जाते थे कारखानों में काली स्त्रियों को भी काम मिलने लगा ! यद्यपि उनका वेतन व्हाइट अमेरिकन्स से कम होता था लेकिन भेद भाव और अस्पर्श्यता की मानसिकता में फर्क आया ! उनमें भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता आई और वे भी कालान्तर में समानता के स्तर पर आने के लिए संघर्षरत हुए ! विश्व युद्ध के समापन के बाद जब पुरुष मोर्चे से वापिस आ गए तो अनेकों महिलाओं को और दोयम दर्जे के इन अमेरिकन्स को नौकरी से हटा दिया गया ! लेकिन उस वक्त देश और समाज के प्रति किये गए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता !
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद रिचमंड का यही शिपयार्ड ‘रोज़ी द रिवेटर’ का म्यूज़ियम बना दिया गया ! अभी यह ‘रोज़ी द रिवेटर / वर्ल्ड वार II, होम फ्रंट नेशनल हिस्टोरिक पार्क, कैलीफोर्निया’ के नाम से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है ! तो यह था ‘रोज़ी’ का घर ! महिला सशक्तिकरण की अद्भुत मिसाल थी रोज़ी ! आज भी कितने लोगों की प्रेरणा बनी हुई है ‘रोज़ी’ इसे कोई नहीं जानता ! स्कूल के बच्चों को यह म्यूज़ियम दिखाया जाता है ! म्यूज़ियम के एक रैक में दर्शनार्थियों एवं स्कूली बच्चों की भावपूर्ण प्रतिक्रियाओं की चिटों को बड़े करीने सजाया गया है ! कुछ दूरी पर स्थित शिपयार्ड में अब एक कॉफ़ी हाउस और रेस्टोरेंट बना दिया गया है जिसका इंटीरियर अभी भी पुराने ज़माने का ही है ! हमने भी यहाँ की कॉफ़ी का आनद लिया ! म्यूज़ियम से कुछ दूर बे एरिया के समीप इस शिप यार्ड में बना हुआ ‘रेड ओक विक्ट्री’ नाम का एक युद्ध पोत भी पर्यटकों के देखने के लिए रखा हुआ है ! इसके निर्माण में कितनी ‘रोज़ियों’ का अकथनीय श्रम लगा होगा यह सोच कर ही रोमांच हो आता है ! मैं भी ‘रोजी’ से कितना प्रेरित हुई हूँ इसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है ! लेकिन यह सच है कि नारी सशक्तिकरण की मिसाल यह ‘रोज़ी’ युग-युग तक किसी भी स्वाभिमानी नारी के आत्मबल को कभी झुकने नहीं देगी ! उस ज़माने की अनेक रोज़ी चिर निंद्रा में लीन हो चुकी हैं ! लेकिन म्यूज़ियम की इंचार्ज लेडी ऑफीसर ने बताया कि दो रोज़ी अभी भी जीवित हैं वे कभी कभी इस म्यूज़ियम में आती हैं ! वे अब बहुत वृद्ध हो चुकी हैं ! हमारा नमन उनको ! दोस्तों इन ‘रोज़ियों’ का शरीर थक गया है ! शायद इनके पास ज्यादह वक्त भी न हो ! लेकिन ‘रोज़ी द रिवेटर’ उसी साहस, उसी जोश और उसी हौसले के साथ आज भी ज़िंदा है ! वह कालजयी है ! वह चिर युवा है ! उसे कभी कोई पराजित नहीं कर सकता ! आज भी समूचे ब्रह्मांड में उसकी ललकार गूँज रही है जिसका कोई दमन नहीं कर सकता !
“We can do it.” “We can do it.” “We can do it.”


साधना वैद







Thursday, August 22, 2024

चेतावनी

 




चेतावनी
खूब जानती हूँ राणा जी तुम्हें
तुम पर भरोसा करने का मन भी बनाती हूँ
सिर्फ इसीलिए, क्योंकि बहुत प्यार करती हूँ तुम्हें
लेकिन फिर जाने कितने प्रसंग याद आ जाते हैं
जब मेरे भरोसे को रौंद कर तुमने
अपने क्षणिक सुख को प्राथमिकता दी
और मेरे हृदय में प्रज्वलित क्रोधाग्नि को
अपने तुच्छ आचरण की आहुति दे
और प्रबल कर दिया !
क्षमा तो मैं कर दूँगी तुम्हें
स्त्री जो ठहरी, दयामई, करुणामई, त्यागमई !
लेकिन यह कभी न भूलना
यह क्षमा तुम्हें एक घायल क्षत्राणी से मिली है
जिसने अपने स्वाभिमान को सदैव
सर्वोच्च शिखर पर रखा है !
यह अंतिम अवसर है
इस बार जो चूके तो कहीं ऐसा न हो
कि मेरे अंतर में सुलगती ज्वाला
आँखों की राह बाहर निकल
हमारे संसार को ही भस्म कर दे
और सब कुछ पल भर में स्वाहा हो जाए !


साधना वैद

Tuesday, August 20, 2024

हाइकु दोहे

 



धरा पुकारे, चीख कर सुन ले, पागल गाँव

बंद करो ना, छीनना मनहर, शीतल छाँव !

 

तप्त ज़मीं थी, रो पड़े खग जन, कर धिक्कार

अब तो रोको, मूर्खजन अपना, दुर्व्यवहार !

 

बरस रही, है झूम के शीतल, मंद फुहार

चलती देखो, घूम के सुरभित, मस्त बयार !

 

चितवन से, घायल करे अरु, स्मित से घात

अँखियन से, सब दुःख हरे दे, बातों से मात !

 

परम पिता, करुणा तेरी की है, हमको आस,

बुझ जायेगी, शरण में व्याकुल, मन की प्यास !

 

साधना वैद