पुकारूँ
नित्य तुम्हें
कहाँ छिपे हो
मेरे प्यारे
मोहना !
बुलाऊँगी
जब तुम्हें
तुम आओगे ना
वादा करो
मुझसे !
कितनी
प्यारी लगती
मोहक छवि तुम्हारी
जाऊँ मैं
बलिहारी !
खिले
रंग बिरंगे
उपवन में फूल
हवा लहराई
मदभरी !
अघोर
है विसंगति
कविता कोमल तुम्हारी
हृदय किन्तु
कठोर !
इसे
नाथना होगा
किसी भी तरह
हारेगा नहीं
मन !
साधना वैद
कठोर ह्रदय को नाथ कर कोमल बनाता है गिरधारी, सुंदर भाव ! !
ReplyDeleteदिल से आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteहार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
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