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Sunday, January 12, 2025

सायली छंद

 



पुकारूँ

नित्य तुम्हें

कहाँ छिपे हो

मेरे प्यारे

मोहना !

 

बुलाऊँगी

जब तुम्हें

तुम आओगे ना

वादा करो

मुझसे !

 

कितनी

प्यारी लगती  

मोहक छवि तुम्हारी

जाऊँ मैं

  बलिहारी !

 

खिले

रंग बिरंगे

उपवन में फूल

हवा लहराई

मदभरी !

 

अघोर

है विसंगति

कविता कोमल तुम्हारी

हृदय किन्तु

कठोर !

इसे

नाथना होगा

किसी भी तरह  

हारेगा नहीं

    मन !   



चित्र - गूगल से साभार  

साधना वैद  


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