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Tuesday, January 28, 2025

विवाह चिह्न और उनसे जुड़े सवाल

 



आजकल यह मुद्दा बहुत ही संवेदनशील हो गया है ! भारतीय समाज में विवाह और विवाह चिह्नों को लेकर अनेक मत एवं मान्यताएं प्रचलित हैं ! जिन्हें सदियों से निभाया जा रहा है ! पुरुष प्रधान समाज में विवाह के समय निभाई जाने वाली सारी प्रथाएं, परम्पराएं स्त्रियों के लिए ही अनिवार्य कर दी गईं कदाचित इसलिए भी कि वह दूसरे परिवार से आती है और नए घर में उसे कुछ नियम कायदे मानने होंगे जो इस बात के प्रतीक भी थे कि उसकी स्थिति इस घर में बाकी सदस्यों से हीन है ! वह अपने पति की संपत्ति मानी जाती थी ! पति की मृत्यु के बाद हमारे इसी समाज में एकाध सदी पहले तक उसकी इतनी दयनीय स्थिति थी कि कोई उसका भार उठाना नहीं चाहता था और उसे भी ‘सती मैया के नाम से महिमा मंडित कर पति से साथ ज़िंदा जला दिया जाता था ! समाज के कुछ प्रगतिवादी जागरूक लोगों ने इसका विरोध किया और जो परम्पराएं नृशंसता, अमानवीयता जुड़ी हुई थीं उनके उन्मूलन के लिए डट कर रूढ़िवादी दकियानूस लोगों का विरोध किया ! सती प्रथा के उन्मूलन के लिए राजा राममोहन रॉय के अथक प्रयासों को कौन भूल सकता है !  
विवाह के समय धारण किये जाने वाले विवाह चिह्नों की उपयोगिता केवल विधि विशेष तक के लिए ही सीमित नहीं होती ! इनको धारण करने वाली स्त्री के मनोविज्ञान से भी ये बहुत गहराई से जुड़े होते हैं ! ये केवल विवाह के चिह्न मात्र नहीं रहते एक स्त्री के अपने पति के प्रति अनन्य प्रेम
, अनुराग और समर्पण के प्रतीक भी बन जाते हैं जिन्हें वह पूरी तरह भावना के साथ अपने पति की मंगलकामना के लिए धारण करती है ! पति की मृत्यु के बाद उसका मन स्वयं इन चीज़ों से विरक्त हो जाता है ! और वह इन प्रतीकों का त्याग कर देती है ! हाँ कई परिवारों में ऐसी स्त्रियाँ भी होती हैं जो बड़ी निर्दयता से इन्हें सद्य बेवा हुई स्त्री के शरीर से उतारने के फरमान जारी करती हैं ! जो बहुत ही ग़लत और दुर्भाग्यपूर्ण है !
कई स्त्रियों के लिए ये प्रतीक चिह्न कवच की तरह होते हैं जो आस-पास मंडराते दुराचारियों से उनकी रक्षा करने में मददगार होते हैं ! मैंने कई युवा कामकाजी महिलाओं को अविवाहित या विधवा होने के उपरान्त भी माँग में सिन्दूर लगाये हुए और मंगलसूत्र पहने हुए नौकरी पर जाते हुए देखा है ! वैसे भी
आजकल इन नियमों के पालन की कोई बाध्यता नहीं रह गयी है ! नव विवाहिता शादी के समय पूरी तरह से पारंपरिक वेशभूषा और श्रृंगार में सर से पैर तक गहनों और विवाह चिह्नों से लदी हुई फोटो शूट करवाती है और अगले ही दिन सारे प्रतीकों को उतार कर जींस टॉप में घूमती दिखाई देती है ! विधवा स्त्रियाँ भी अब सफ़ेद साड़ी में लिपटी दिखाई नहीं देती ! सिन्दूर को छोड़ कर वे हर श्रृंगार को धारण करती हैं ! चूड़ी बिंदी सब पहनती हैं और नाती पोतों वाली स्त्रियाँ तो बिछुए भी धारण करती हैं ! और यह बहुत ही सराहनीय पहल है ! विधवा हो या सधवा स्त्री को क्या पहनना है क्या नहीं यह उसका अपना निर्णय होना चाहिए किसी और के द्वारा थोपा गया फरमान नहीं !
यह हमारे समाज की विशेषता है कि सारे नियम कायदे कानून को मानने की बाध्यता स्त्रियों के लिए ही रही है ! पुरुष सदा से इन सबसे मुक्त रहे हैं !

चूड़ी, बिंदी, सिन्दूर, आभूषण आदि सब स्त्री प्रधान चीज़ें हैं जो अक्सर भारतीय पारंपरिक परिधानों के साथ शोभा देते हैं ! लैंगिक समानता के आज के युग में जब से स्त्री पुरुष में समानता की होड़ अपने पूरे शबाब पर है महिलाओं ने साड़ी, लहँगा, चुनरी यहाँ तक कि सलवार सूट को भी त्याग दिया है ! अब वे पुरुषों की तरह जींस, शर्ट या स्कर्ट ब्लाउज में आ गयी हैं !  महानगरों में तो सलवार सूट भी अब बहुत उम्र दराज़ महिलाएं पहनती हैं या मेड्स पहनती हैं ! उसमें भी 'ड्राप दुपट्टा' का चलन हो गया है ! बाल प्राय: कटा लिए जाते हैं ! इस वेश के साथ सिन्दूर, चूड़ी, बिंदी, गजरा, पायल शोभा नहीं देते ! इसीलिये उनका परित्याग कर दिया गया है ! अक्सर महिलाएं कामकाजी हैं ! चूड़ियाँ बजती हैं तो शोर मचता है तो सबको डिस्टर्ब होता है ! इसीलिये चूड़ियाँ उतर गईं हाथों से, आजकल चेन स्नैचिंग की घटनाएं आम हो गयी हैं ! पहले महिलाएं सर ढक कर रहती थीं तो ये आभूषण छिपे रहते थे अब कमीज़ या जींस टॉप के साथ सर ढकने का प्रावधान भी नहीं रहा तो मंगल सूत्र उतर गया ! इस पुरुषों जैसी वेशभूषा के साथ सिन्दूर ज़रा भी नहीं सुहाएगा इसलिए सिन्दूर और बिंदी भी उतर गयी ! ज़रा सोचिये कोई पुरुष सिन्दूर या बिंदी लगाए हुए कैसा दिखेगा ! आधुनिकता की होड़ में पाश्चात्य जीवन शैली और रहन सहन को अपनाने की वजह से भी यह परिवर्तन आया है ! पश्चिमी देशों में महिलाओं को ऐसे वैवाहिक चिह्न पहनने की कोई बाध्यता नहीं है ! मैं जब भी अमेरिका जाती हूँ बच्चे और महिलाएं बड़ी गौर से मेरी बिंदी को देखती हैं ! एक रेस्टोरेंट में तो एक लेडी ने मुझसे आकर पूछा भी था कि इतनी गोल बिंदी मैं कैसे लगाती हूँ ! मैंने उसे दिखाया कि यह स्टिकर वाली होती है और उसे अपने पर्स से निकाल कर बिंदी का एक पत्ता दिया तो वह बहुत खुश हुई ! यह और बात है घर जाकर उसने उसे ट्रेश कैन में फेंक दिया हो ! यह सिर्फ स्त्री पुरुष में सामान दिखने की मानसिकता का मुद्दा है उसका विवाह को अस्वीकार करने की मानसिकता से कोई लेना देना नहीं है ! मेरा भी यही मानना है ! यही वजह है अक्सर आजकल की हाई सोसाइटीज़ की आधुनिक पार्टीज़ में सुरा और सुंदरियों को साथ-साथ देखा जा सकता है !


साधना वैद


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