क्या होगा मन में
यादों के अलाव जला के,
मन के घनघोर वीराने में सुलगे
अतीत की भूली बिसरी यादों के
इस अलाव से जो चिनगारियाँ निकलती हैं
वो आसमान के सितारों की तरह
प्यार की राह रोशन नहीं करतीं
दिल की दीवारों को जला कर उनमें
बड़े-बड़े सूराख कर देती हैं
जो वक्त के साथ धीरे-धीरे
नासूर में तब्दील हो जाते हैं !
कुछ दिनों तक अच्छा लगता है
इन बाँझ सपनों की जीना लेकिन
जिस भी किसी दिन यह
मोहनिंद्रा भंग होती है और
यह रूमानी दिवास्वप्न टूटता है
खुद को अगले ही पल
मोहोब्बत की सबसे ऊँची मीनार से
हकीकत की सख्त ज़मीन पर
गिरता हुआ पाते हैं और
यह दुःख तब और दोगुना हो जाता है
जब देखते हैं कि उन ज़ख्मों पर
मरहम रखने वाला भी कोई
आस पास नहीं है,
हैं तो सिर्फ चूर-चूर हुए
उन दिवास्वप्नों की बिखरी हुई किरचें
जो तन, मन, आत्मा, चेतना सबको
लहूलुहान कर जाती हैं !
साधना वैद
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