मंजिलें हैं दूर यह मालूम है ,
पाँव थक कर चूर, यह मालूम है ,
क्या हुआ साथी जो पीछे रह गए ,
राह अपनी खुद बनाना सीख ले |
है अमावस का घना साया पड़ा
सूर्य को भी रश्क तुझसे है बड़ा
क्या हुआ राहें अंधेरी हैं अगर
दीप अपना खुद जलाना सीख ले |
ज़िंदगी के खेल बेढब हैं बड़े ,
हसरतों पर तंज के पहरे पड़े ,
क्या हुआ जो हार है तकदीर में
हौसला अपना बढ़ाना सीख ले |
तार टूटे बीन के तो क्या हुआ ,
बोल बिखरे गीत के तो क्या हुआ ,
क्या हुआ सुर ताल लय धुन खो गए ,
गीत अपना गुनगुनाना सीख ले |
साधना वैद
बहुत उम्दा सकारात्मक ख्याल!! बधाई!
ReplyDeleteशुक्रिया इस प्रेरक कविता के लिए ....
ReplyDeleteजय हिंद...
Sadhnaji, aapki rachana bahut sundar aur bhav bahut acche lage...Aahbar!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
aapkaa geet bhoole hue ko raastaa dikhaataa hai aur niraash logo ke man me aashaa kaa sanchar kar detaa hai
ReplyDeleteहमेशा अग्रसर रहने के लिए प्रेरित करती हुई ये .....कविता ......बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteकर्मशील बने रहने की प्रेरणा देती सुन्दर रचना के लिये बधाई धन्यवाद्
ReplyDeletebahut hee sundar bhav...badhai!!
ReplyDeletebahut sundar pryas hai .
ReplyDeletevery good attempt
Asha
Bahut sunder rachna..bhawourn rachna ke liye badhdai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDelete