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Monday, January 11, 2010

शरारती मिन्नी एक बाल काव्य कथा

थी एक प्यारी नन्हीं चींटी, मिन्नी उसका नाम,
नहीं किसीका कहना सुनती, थी बेहद शैतान ।

नहीं समय पर उठती थी वो, ना करती थी काम,
नहीं समय पर पढ़ती थी वो, ना स्कूल का काम
जब भी उसको काम बताओ बन जाती बीमार,
हरदम नये बहाने गढ़ती, थी बेहद मक्कार
मम्मी उससे बड़ी खफ़ा थीं, पापा थे नाराज़,
उनसे कहती 'कल कर दूँगी नहीं समय है आज|'

बारिश के दिन थे आने को, मम्मी थीं हैरान,
ढेरों काम पड़ा था घर में, लाना था सामान
मम्मी बोलीं मिन्नी से,‘तुम फिर कर लेना काम,
प्यारी बेटी चलो साथ हम ले आयें सामान
फिर आ जायेगी बारिश तो कैसी मुश्किल होगी
कैसे मैं खाना लाउंगी ! क्या तुम फिर खाओगी !'

मिन्नी बोली, ‘कैसे आऊँ बहुत दूर बाज़ार ,
मेरा पैर बहुत दुखता मैं चलने से लाचार
मम्मी अबकी तुम हो आओ मैं ना जा पाउँगी
अगली बार तुम्हारे संग मैं निश्चित ही जाउँगी‘
मम्मी मन ही मन झल्लाईं,समझ गयीं सब बात
इसको सबक सिखाना होगा जो कुछ भी हो आज ।

मम्मी तब सखियों के संग जा ले आईं सामान
मिन्नी सो गई ऊधम करते इन सबसे अनजान
तभी अचानक बड़ी ज़ोर से मेघ गगन में गरजे
बिजली चमकी, हवा चली और बादल गरजे बरसे
मिन्नी सोई जिस पत्ते पर बह निकला पानी में
सपने में खोई थी मिन्नी दुनिया अनजानी में ।

सपने में सब उसके नौकर रानी बनी हुई थी
सबको देती हुकुम छड़ी वो लेकर खड़ी हुई थी
बरफी का था महल,खीर का था मोहक तालाब,
लड्डू, पेड़े, खुरमें झुक कर करते थे आदाब,
बूँदी का था फर्श, पेड़ से लटकी हुई जलेबी,
रसगुल्ले से गेंद खेलते थे बाबू और बेबी ।

सोहन हलुए के आसन पर बैठे चींटे राजा,
केक, पेस्ट्री, बालूशाही बजा रहे थे बाजा
इतनी ढेर मिठाई से मिन्नी का मन ललचाया
टूटा बाँध सबर का उसके मुँह में पानी आया
उसको लगा पेट में चूहों ने है रेस लगाई
भूल शराफत मिन्नी पूरी ताकत से चिल्लाई ।

‘फौरन खाना लेकर आओ मुझको भूख लगी है’
तभी अचानक आँख खुली तो देखा झड़ी लगी है
झलमल पानी की लहरों पर पत्ता झूल रहा था
डर के मारे थर थर मिन्नी का मन डोल रहा था
‘मम्मी मम्मी’ बड़ी ज़ोर से मिन्नी तब चिल्लाई
’मुझे बचाओ!,घर पहुँचाओ!’ वह रोई घबराई ।

‘जो मम्मी का कहना सुनती तो क्यों ऐसा होता
मैं भी मम्मी के संग सोती जैसे भैया सोता’
मिन्नी मन ही मन शरमाई, सकुचाई, पछताई'
अब न कभी कहना टालूँगी’ बात समझ में आई
‘बड़े हमेशा करते हैं बच्चों के हित की बात
सुनना चहिये हमें हमेशा उसे ध्यान के साथ।'


पानी में रहता था कछुआ आया सुन आवाज़
पहुँचाया उसने मिन्नी को उसके घर के पास
'प्यारे बच्चों तुम भी इतना हरदम रखना ध्यान
सदा मानना कहना सबका, रखना सबका मान
कहना टाल बड़ों का तुम हो सकते हो हैरान
मिन्नी सा हो सकता है तुम सबका भी अंजाम ।'


साधना वैद

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