अभी तक समझ नहीं पाई कि
भोर की हर उजली किरन के दर्पण में
मैं तुम्हारे ही चेहरे का
प्रतिबिम्ब क्यों ढूँढने लगती हूँ ?
हवा के हर सहलाते दुलराते
स्नेहिल स्पर्श में
मुझे तुम्हारी उँगलियों की
चिर परिचित सी छुअन
क्यों याद आ जाती है ?
सम्पूर्ण घाटी में गूँजती
दिग्दिगंत में व्याप्त
हर पुकार की
व्याकुल प्रतिध्वनि में
मुझे तुम्हारी उतावली आवाज़ के
आवेगपूर्ण आकुल स्वर
क्यों याद आ जाते हैं ?
यह जानते हुए भी कि
ऊँचाई से फर्श पर गिर कर
चूर-चूर हुआ शीशे का बुत
क्या कभी पहले सा जुड़ पाता है ?
धनुष की प्रत्यंचा से छूटा तीर
लाख चाहने पर भी लौट कर
क्या कभी विपरीत दिशा मे मुड़ पाता है ?
वर्षों पिंजरे में बंद रहने के बाद
रुग्ण पंखों वाला असहाय पंछी
दूर आसमान में अन्य पंछियों की तरह
क्या कभी वांछित ऊँचाई पर उड़ पाता है ?
मेरा यह पागल मन
ना जाने क्यूँ
उलझनों के इस भँवर जाल में
आज भी अटका हुआ है ।
साधना वैद
अच्छी कविता उलझन पर ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना है।
ReplyDeleteब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
pls visit...
www.dweepanter.blogspot.com
मेरा यह पागल मन
ReplyDeleteना जाने क्यूँ
उलझनों के इस भँवर जाल में
आज भी अटका हुआ है ।
मन का काम ही है उलझना
औ फिर
उलझन में उलझे बिना उलझन नहीं सुलझती
सुन्दर् रचना
मेरा यह पागल मन
ReplyDeleteना जाने क्यूँ
उलझनों के इस भँवर जाल में
आज भी अटका हुआ है ।
-बहुत उम्दा भाव!
ये ही तो प्यार है जिस पर मिट जाने का मन करता है।
ReplyDeleteवर्षों पिंजरे में बंद रहने के बाद
ReplyDeleteरुग्ण पंखों वाला असहाय पंछी
दूर आसमान में अन्य पंछियों की तरह
क्या कभी वांछित ऊँचाई पर उड़ पाता है ?
मेरा यह पागल मन
ना जाने क्यूँ
उलझनों के इस भँवर जाल में
आज भी अटका हुआ है ।
मन की व्यथा को बहुत सुन्दर शब्दों से उभारा है अच्छी अभिव्यक्ति के लिये बधाई और शुभकामनायें
marmsparshee bhavabhivyakti.
ReplyDeleteअच्छी रचना ।नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद.
ऊँचाई से फर्श पर गिर कर
ReplyDeleteचूर-चूर हुआ शीशे का बुत
क्या कभी पहले सा जुड़ पाता है ?
धनुष की प्रत्यंचा से छूटा तीर
लाख चाहने पर भी लौट कर
क्या कभी विपरीत दिशा मे मुड़ पाता है ?
बहुत शानदार कविता है.
आपकी भावुकता शब्दो से टपकती ही नहीं झरती सी महसुस होती है। खुबसुरत ह्रदर्य पाया....समभालना
ReplyDeleteमनसा आनंद मानस
uljhan ko suljhana hota hai kya?
ReplyDeletea very difficult theme dealt in such a easy way in spontaneous
flow> this is something which touches heart>
Asha
सुन्दर शब्दों से उभारा है अच्छी अभिव्यक्ति के लिये बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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