जीवन की दुर्गमता मैंने जानी है ,
अपनों की दुर्जनता भी पहचानी है ,
अधरों के उच्छ्वास बहुत कह जाते हैं ,
निज मन की दुर्बलता मैंने मानी है ।
पर साथ तेरा पा अनुभव जब विपरीत हुए
मौन अधर ने खुलना चाहा तेरे लिये ।
टूट गये विश्वास , आस्था की माला ,
जला गयी संसार द्वेष की इक ज्वाला ,
जीवन के सब रंग हुए बेरंग , बचा
दुख, दर्द, घृणा, अवसाद, व्यथा का रंग काला ,
ऐसे में जब घायल तन को तूने छुआ
बन्द पलक ने खुलना चाहा तेरे लिये ।
जली शाख पर कली एक मुस्काई है ,
दूर तेरे आँचल की खुशबू आयी है ,
कहीं क्षितिज पर सूरज कोई चमका है ,
कहीं अंधेरा चीर रोशनी आयी है ,
भावों का उन्माद बहक कर उमड़ा है
गीत हृदय ने रचना चाहा तेरे लिये ।
साधना वैद
अच्छा गीत है साधना जी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर साधना जी ,
ReplyDeleteशब्दों का चयन और उपयोग बेहद खूबसूरती से किया गया है ....॥
यह आशा ही तो है हमें जिन्दारखे रह्ती है ।बहुत ही प्रेरणास्पद कविता।
ReplyDeleteA mirror of heart touching ideas. A fine piece of writing.
ReplyDeleteटूट गये विश्वास , आस्था की माला ,
ReplyDeleteजला गयी संसार द्वेष की इक ज्वाला ,
जीवन के सब रंग हुए बेरंग , बचा
दुख, दर्द, घृणा, अवसाद, व्यथा का रंग काला ,
ऐसे में जब घायल तन को तूने छुआ
बन्द पलक ने खुलना चाहा तेरे लिये ।
bahut sundar bhav ko sanjoye huye hai ye rachna....aapki kahani baad men padhungi.....