नयनों ने बह-बह कर कितनी सींची धरती ,
आहों ने ऊपर उठ कितना जल बरसाया ,
भावों ने मथ अंतर कितने खोदे कूँए ,
क्योंकर इसका लेखा जोखा तुमको दूँ मैं ।
यह दौलत तो मेरी, बस केवल मेरी है
मुझे तुम्हारी साझेदारी नहीं चाहिये ।
मैंने टूटे इंद्रधनुष गिरते देखे हैं ,
सपनों की गलियों में दुख पलते देखे हैं ,
तारों के संग उड़ते अगणित पंछी के दल
पंखहीन नभ से भू पर गिरते देखे हैं ।
मैंने अपना लक्ष्य और पथ ढूँढ लिया है
मुझे तुम्हारी दूरदर्शिता नहीं चाहिये ।
तुमने कब मेरे सच का विश्वास किया है,
मेरे हर संवेदन का परिहास किया है ,
मेरी आँखों ने जो देखा जाना परखा
तुमने तो केवल उसका उपहास किया है ।
अपने सच की उँगली थाम मुझे जीने दो
मुझे तुम्हारी सत्यधर्मिता नहीं चाहिये ।
मेरा सच वो सच है जिसको जग जीता है ,
सत्य तुम्हारा वैभव के पीछे चलता है ,
मेरा सपना है सबकी आँखों का सपना ,
स्वप्न तुम्हारा धन दौलत तुमको फलता है ।
देखूँ निज प्रतिबिम्ब स्वेद के दर्पण में मैं
मुझे तुम्हारी दुनियादारी नहीं चाहिये ।
साधना वैद
तुमने कब मेरे सच का विश्वास किया है,
ReplyDeleteमेरे हर संवेदन का परिहास किया है ,
मेरी आँखों ने जो देखा जाना परखा
तुमने तो केवल उसका उपहास किया है ।
अपने सच की उँगली थाम मुझे जीने दो
मुझे तुम्हारी सत्यधर्मिता नहीं चाहिये ।
बहुत ही सुन्दरता और सहज भाव से नारी मन मे उठने वाले क्षोभ को शब्द दिये हैं। शुभकामनायें
behad gahan .
ReplyDelete"मेरा सपना है सबकी आखों का सपना "
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार और सशक्त अभिब्यक्ति,बधाई
आशा
"मेरा सपना है सब की आँखों का सपना "
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति |
हार्दिक बधाई |
आशा
"मेरा सच वो सच है जिसको जग जीता है ,
ReplyDeleteसत्य तुम्हारा वैभव के पीछे चलता है , "
बेहतरीन
सादर
गहन अभिव्यक्ति!
ReplyDelete'मेरा सच वो सच है जिसको जग जीता है ,
ReplyDeleteसत्य तुम्हारा वैभव के पीछे चलता है ,
मेरा सपना है सबकी आँखों का सपना ,
स्वप्न तुम्हारा धन दौलत तुमको फलता है ।
देखूँ निज प्रतिबिम्ब स्वेद के दर्पण में मैं
मुझे तुम्हारी दुनियादारी नहीं चाहिये ।'
- कितनी प्रखर अभिव्यक्ति - प्रभावित करती है !