ओ मनमोहन !
द्वापर के उस कालखण्ड से बाहर आओ
कलयुग के इस मानव वन में
भूले भटके क्लांत पथिक को राह दिखाओ ।
ओ मुरलीधर !
अधिकारों के प्रश्न खड़े हैं
काम बन्द है , सन्नाटा है
ऐसे नीरव मौन पलों में
बंद मिलों के सारे यंत्रों को थर्रा दे
ऐसी प्रेरक मंजुल मधुर बाँसुरी बजाओ ।
ओ नटनागर !
यमुना तट पर महारास के रासरचैया
कलयुग के इस थके रास को भी तो देखो
आज सुदामा अवश निरंतर नाच रहा है
भग्न ताल पर गिरते पड़ते बाल सखा को
निज बाहों का सम्बल देकर प्राण बचाओ ।
ओ नंदलाला !
उस युग में ग्वालों संग कौतुक बहुत रचाये
इस युग के बालों की भी थोड़ी तो सुध लो
बोझा ढोते और समय से पूर्व बुढ़ाते
भूखे प्यासे इन बच्चों को
माखन रोटी दे इनका बचपन लौटाओ ।
ओ गिरिधारी !
दुश्चिंताओं की निर्दय घनघोर वृष्टि में
आज आदमी गले-गले तक डूब रहा है
तब भी गिरिधर तुमने सबकी रक्षा की थी
अब भी तुम छिंगुली पर पर्वत धारण कर लो
सुख के सूरज की किरणों से जग चमकाओ ।
पार्थसारथी कृष्णकन्हैया !
उस अर्जुन की दुविधा तुमने खूब मिटाई
आज करोड़ों अर्जुन दुविधाग्रस्त खड़े हैं
इनकी पीड़ा से निस्पृह तुम कहाँ छिपे हो ?
आज तुम्हें इस तरह तटस्थ ना रहने दूँगी
रुक्मणी के आँचल में यूँ छिपने ना दूँगी
यह लीला जो रची तुम्हीं ने तुम ही जानो
इनके दुख का कारण भी तुम ही हो मानो
इनकी रक्षा हेतु तुम्हें आना ही होगा
गीता का संदेश इन्हें सिखलाना होगा
निष्काम कर्म का पाठ इन्हें भी आज पढ़ा दो
धर्म अधर्म की शिक्षा देकर ज्ञान बढ़ा दो
कृष्णा ज्ञान सुधा बरसा कर सावन कर दो
अपनी करुणा से तुम सबको पावन कर दो ।
साधना वैद
कविता के द्वारा आपकी यह गुहार सही जान पड़ती है....आज का यथार्थ भी यही है...अनगिनत सुदामा और अगणित दुविधाग्रस्त अर्जुनों को ज़रुरत है....पार्थसारथी कृष्ण रूपी मार्गदर्शक की..
ReplyDeleteहे कान्हां बस अब चले आओ...!!
बहुत अच्छा भजन है। आजकल अध्यात्मिक रंग मे रंगी हुयी हैं । बधाई
ReplyDeleteएक अच्छी कविता पढ़कर मन प्रसन्न हुआ .
ReplyDeletesahi kah rahi hain aap.........
ReplyDeletetumhein aana hi hoga
ek baar phir wo hi rang dikhlana hoga
bigde huyon ko sudharna hoga
aaj phir usi dharti par paap badha hua hai
aur lalach ke kans se trast huaa hai
is kans ko bhi mitana hoga
phir wo hi swarg dharti par lana hoga.
कान्हा इतनी करूण पुकार तो द्रौपदी की भी नहीं थी, वहां तो एक अकेले जन की पीडा थी, यहां ज-जन का सवाल है।एक सुन्दर और सार्थक कविता
ReplyDeleteA very heart touching poem with hew ideas linked as a protest to Manmohan. It shows deep knowledge in Indian mythology too.
ReplyDeleteआना ही पड़ेगा ,कह जो गये हैं -संभवामि युगे-युगे !
ReplyDeleteआज के यथार्थ को रचना का रूप देने के लिए आभार
ReplyDeletebhaut hi acchi prabhaavpurn rachna.....
ReplyDelete