न दिल में ज़ख्म न आँखों में ख्वाब की किरचें फिर किस गुमान पे इतने दीवान लिख डाले तमाम उम्र जब इस दर्द को जिया मैने तब कहीं जाके ये छोटी सी ग़ज़ल लिखी है ।
बहुत अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार और शिल्प का सुंदर समन्वय रचनात्मकता को प्रखर बना रहा है । मैने भी अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है। समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें- http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
वैचारिक संदर्भों पर केंद्रित लेख-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन-मेरे इस ब्लाग पर पढ़ा जा सकता है- http://www.ashokvichar.blogspot.com
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बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ ।आभार ।
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