रोशनी का बहुत पीछे छूटा
एक नन्हा सा कतरा
कितनी दूर तक
मेरी राह रोशन कर पायेगा
यह तो कहो !
दूर बादल की आँख से टपकी
बारिश की एक नन्हीं सी बूँद
सहरा से सुलगते
मेरे तन मन को
कितना शीतल कर पायेगी
यह तो कहो !
प्राणवायु का एक
अदना सा झोंका
जो सदियों बाद
मेरी घुटती साँसों को
नसीब से मिला था
कब तक मुझे
जीवित रख पायेगा
यह तो कहो !
भूलवश मुख से उच्छ्वसित
प्रेम की वंचना से सिक्त
नितांत एकाकी,
निर्बल, अस्फुट सा शब्द
मेरे सुदीर्घ जीवन के
पल पल में संचित
कटुता के विशाल पुन्ज को
निमिष भर में ही
कैसे धो डालेगा
यह तो कहो !
मेरी अवरुद्ध हुई साँसों को,
मेरी मुँदती हुई पलकों को,
मेरी डूबती हुई नब्ज़ को
ज़रूरत है उस आवाज़ की
जो निष्प्राण देह में भी
पल भर में जाने कैसे
जीवन का संचार
कर देती है ,
वह चिर प्रतीक्षित आवाज़
मुझे कब सुनाई देगी
यह तो कहो !
साधना वैद !
वह चिर प्रतीक्षित आवाज़
ReplyDeleteमुझे कब सुनाई देगी
यह तो कहो !…………बस इसी आस मे जिये जा रहे हैं।
खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत
भाव अभिव्यक्ति...
"यह तो कहो" से आपने बहुत कुछ कह
ReplyDeleteडाला है.गहन सार्थक और भावपूर्ण.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
atyant bhavprabal sunder rachna ...
ReplyDeletebadhai evam shubhkamnayen ...!!
ज़रूरत है उस आवाज़ की
ReplyDeleteजो निष्प्राण देह में भी
पल भर में जाने कैसे
जीवन का संचार
कर देती है ,... यह संजीवनी सी पुकार मिल जाए तो जीवनक्रम कुछ और हो जाए
bahut gehen vanchna ki hai aur bhavo ko aise goodh shabdon se sajaya hai ki seedhi dil me hi utar jate hain.
ReplyDeletebahut prabhavshali prastuti hai.
lekin padh kar ek sawal kaundhta hai man me ki ham kyu kisi k do pyar bhare bol sunNe ko itne us par nirbhar ho jate hain ki apni zindgi ki aane wali har khushi ko us par balidan kar dete hain. kyu ham itne kamzor ban jate hain. ye kamzori acchhi nahi....ek seema k baad is kamzori par vijay pa lene me hi apni bhalayi hai.
बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...
ReplyDeleteसाधना जी,..मै आपका पाठक एवं फालोवर पहले से ही हूँ आप भी फालो करे तो खुशी होगी
MY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteप्रतीकों का सहज एवं सफल प्रयोग किया गया है।
ReplyDeleteअंतहीन इंतज़ार ख़त्म होने को ही नहीं आता...
ReplyDeleteमन की व्याकुलता व्यक्त करती प्रभाव कविता
ek bund pani se kya meri pyas bhuj payegi....kavita padne ke baad yahi soch raha hun......
ReplyDeleteचिर परिचित आवज़कब ------यह तो कहो|
ReplyDeleteसुन्दर और भावपूर्ण |
आशा
bahut ulkrisht rachana ji badhayiyan
ReplyDeleteमन के भाव शब्दों में ढल गए हैं...आस है, सांस है, यही जीवन है...
ReplyDeleteशुभकामनाएं...
भीषण इंतज़ार का शब्द चित्र हो जैसे !
ReplyDeleteइंतज़ार में व्याकुल मन को शब्दों में ढालती रचना ..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-805:चर्चाकार-दिलबाग विर्क>
kya khoobsurat andaz hai.....man gaye.
ReplyDeletewassup sudhinama.blogspot.com owner discovered your website via Google but it was hard to find and I see you could have more visitors because there are not so many comments yet. I have discovered site which offer to dramatically increase traffic to your blog http://xrumerservice.org they claim they managed to get close to 1000 visitors/day using their services you could also get lot more targeted traffic from search engines as you have now. I used their services and got significantly more visitors to my blog. Hope this helps :) They offer most cost effective backlinks Take care. Jason
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसहज, सरल शब्दों के प्रयोग से सुंदर भावाभिव्यक्ति। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDelete"AAJ KA AGRA BLOG"
आप से निवेदन है कि एक ब्लॉग सबका
ReplyDelete( सामूहिक ब्लॉग) से खुद भी जुड़ें और अपने मित्रों को भी जोड़ें... शुक्रिया
आप से निवेदन है कि एक ब्लॉग सबका
ReplyDelete( सामूहिक ब्लॉग) से खुद भी जुड़ें और अपने मित्रों को भी जोड़ें... शुक्रिया
आज तो आपने न जाने क्या क्या पूछ डाला .... मन के भावों की गहन अभिव्यक्ति ... चीर प्रतीक्षित आवाज़ का इंतज़ार ... बहुत सुंदर प्रस्तुति --
ReplyDeleteतम हो घनेरा
और जाना हो
मंज़िल तक
तो जुगनू का
एक दिया ही
काफी है
मंज़िल पाने को
तपिश हो मन की
और चाहते हो ठंडक
तो अश्क की
एक बूंद ही
काफी है
अदना सा झोंका ही
भर देता है
प्राणवायु
जीवित रहने के लिए
एक सांस ही
काफी है ,
भले ही हो
अस्फुट सा स्वर
पर है वो
प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है ,
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही
काफी है ...
बहुत आश्वस्त सा कर दिया आपकी रचना ने संगीता जी ! आभार आपका इतने सुन्दर, सार्थक और संवेदनशील निराकरण के लिये ! आपका यह प्यार भरा काव्यमय प्रत्युत्तर बहुत अच्छा लगा !
ReplyDeleteaek aas bandhati hui anupam rachanaa bahut badhaai aapko.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (३३) में शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से अवगत करिए /आपका स्नेह और आशीर्वाद इस मंच को हमेशा मिलता रहे यही कामना है /आभार /
इसका लिंक है
http://hbfint.blogspot.in/2012/03/33-happy-holi.html