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Wednesday, September 12, 2012

कम कूव्वत रिस ज़्यादह



यह है हमारा भारत देश ! यहाँ लोकतंत्र शाही की व्यवस्था है ! वैसे तो कानूनन हम अपने देश में सभी बुनियादी अधिकारों के हकदार हैं लेकिन और किसी अधिकार का उपयोग हम कर पायें या ना कर पायें अपने विचारों अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की जो स्वतन्त्रता हमें उपलब्ध है उस अधिकार का उपयोग हम भरपूर करते हैं ! तभी छोटा सा भी किसी का कोई वक्तव्य हो, कोई आलेख हो, कोई कार्टून हो सारे देश में सुनामी का कहर सा छा जाता है ! अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर चिन्तक, विचारक, लेखक या कार्टूनिस्ट ने जो कुछ भी कहा वह क्यों कहा यह बात तो एक तरफ हो जाती है बवाल इस बात पर अधिक होता है कि जो उसने कहा वह कैसे कहा, उसके कहने का तरीका कितना गलत था, भाषा कितनी अभद्र थी, उसके कथन से किन विशिष्ट व्यक्तियों के चीर हरण की आशंका हो सकती है, किसका अपमान हो गया और उस पर किन-किन धाराओं में मुकदमा चलाया जा सकता है ! इस सारी नाप जोख और बाल की खाल निकालने की कवायद का एकमात्र उद्देश्य उस मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाना होता है जिसका ज़िक्र उस वक्तव्य, आलेख या कार्टून में किया गया होता है ! टी वी के हर चैनल पर धुआँधार डिबेट शुरू हो जाती हैं कि अभिव्यक्ति के अधिकार का दुरुपयोग हो रहा है या उसका हनन किया जा रहा है लेकिन मूल प्रश्न वहीं का वहीं उपेक्षित पड़ा रह जाता है ! यह भी सच है कि गैंडे की खाल ओढ़े रहने वाले हमारे नेताओं पर सीधी सादी भाषा में कही गयी बात का तो कोई असर होता नहीं है लेकिन वही बात ज़रा चुटीले ढंग से कह दी जाती है तो वे लोग तिलमिला जाते हैं ! समस्या का निदान तो उनसे ढूँढा नहीं जाता उलटे व्यक्तिगत अपमान का आरोप लगा हमारे नेता व्यंगकार पर ही चढ़ बैठते हैं और इस तरह अपनी अकर्मण्यता और अनाचार पर पर्दा डालने का प्रयास करने लगते हैं ! एक कहावत है ना ...

‘कम कूवत रिस ज़्यादा !’

हमारे नेताओं पर यह बिलकुल फिट बैठती है ! संसद में बैठ कर हमारे ‘ज़िम्मेदार’ और ‘देशभक्त’ सांसद किस प्रकार क़ानून और नैतिकता की धज्जियां उड़ाते हैं, कितनी तरह के भ्रष्टाचार, घोटालों और बेईमानियों में वे संलग्न रहते हैं यह सब अलग बात है लेकिन एक आम इंसान के मुख से निकला कोई भी सच वे नहीं सह सकते ! हाल ही में चर्चित विवाद ने आजकल माहौल को खूब गरमा दिया है ! कार्टूनिस्ट पर देशद्रोह का आरोप लगा जेल भी भेज दिया गया बाद में कुछ आरोप वापिस लेकर छोड़ने की घोषणा भी कर दी गयी जिसके प्रत्युत्तर में उसने जेल से बाहर आने से इनकार भी कर दिया ! कहने का तात्पर्य यह है कि इन दिनों खूब नौटंकी चल रही है ! सारे बुद्धिजीवी टी वी पर अपनी अपनी फिलॉसफी झाड़ रहे हैं ! मीडिया को अपनी लक्ष्मण रेखा समझने की सलाह दी जा रही है लेकिन इन सारी बहसों और बयानबाजी के बीच वह कार्टूनिस्ट अपने कार्टून के माध्यम से क्या बताना चाह रहा है इस पर किसी भी ज़िम्मेदार नेता ने ध्यान देने की ज़रूरत नहीं समझी ?

देश में अराजकता का हाल है ! सब जैसे दिशाहीन, उद्देश्यहीन, लक्ष्यहीन दिन रात यंत्रवत अनाम शत्रुओं से जूझ रहे हैं ! ना उन्हें अपने रास्ते का पता है ना मंजिल का ! एक आम इंसान के लिये इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है ! उसे इस विकट चक्रव्यूह से बाहर निकलने का मार्ग मिल जाये और हमारे देश के नीति नियंताओं को शीघ्र ही सदबुद्धि मिल जाये यही दुआ है वरना तो सब रामभरोसे चल ही रहा है !

साधना वैद   


13 comments :

  1. सब जैसे दिशाहीन, उद्देश्यहीन, लक्ष्यहीन दिन रात यंत्रवत अनाम शत्रुओं से जूझ रहे हैं ! ना उन्हें अपने रास्ते का पता है ना मंजिल का !

    सहमत हूँ !!

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  2. jab neta apni sadbuddhi ko jaib me liye ghoomte hon aur jaib k vajan ka sadupyog karte rahenge to aise awaz uthane wale unke bojh se dabte hi rahenge. ye hamari badkismati nahi akarmanyta hai jo sab kuchh chup-chap jhelte rahte hain. kabhi kabhi to me ye soch dukhi hoti hun ki hindustaniyon ko hi bhagwan ne itni sehne ki kshamta kyu di hai.

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  3. राष्ट्रीय चिह्नों के प्रति जागरूक हैं पर राष्ट्र के प्रति नहीं .... सटीक लेख

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  4. बहुत ही सार्थक एवं सशक्‍त लिखा है ... आभार इस प्रस्‍तुति के लिए

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  5. अब तो सब बेस्वाद खिचड़ी है...जागरूक लोगों से लोग अनभिज्ञ हैं या मार देते हैं गोली, बाकी सब भ्रष्टाचार में लिप्त भ्रष्टाचार हटाओ के नारे लगा रहा . ईमानदार तो सूली पर है

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  6. टी वी के हर चैनल पर धुआँधार डिबेट शुरू हो जाती हैं कि अभिव्यक्ति के अधिकार का दुरुपयोग हो रहा है या उसका हनन किया जा रहा है लेकिन मूल प्रश्न वहीं का वहीं उपेक्षित पड़ा रह जाता है !

    Agree.

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  7. मुझे तो लगता है आपात काल के दिन फिर से आ रहे हैं।

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  8. बहुत ही सार्थक एवं सशक्‍त लेख..

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  9. सशक्त लेखन ।
    नेताओं की तो खूब कही । नये नये और बडे बडे घोटोले किलगे िससे तो पहला कम था । अब खोलगेट से ध्यान हटाने के लिये डीजल के कीमत में बढोतरी ।

    फिर भी एक बात तो सच है कि किसी चीज की और ध्यान खींचने के लिये किसी और का अपमान तो नही हो रहा ये ध्यान में रखना चाहिये ।

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  10. उन्दा और सटीक लेख है ||
    आशा

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  11. भगवान भरोसे चल रहा है देश

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