डो हाउस कैलीफोर्निया में ब्लेमी का समाधिस्थल
मेरे ब्लॉग पर आप आ ही
गये हैं तो ऐसे ही बिना कुछ पढ़े मत लौट जाइए ! आज मैं आपके लिए एक ख़ास दस्तावेज़
लेकर आई हूँ ! यह एक अनोखी वसीयत है जिसे अमेरिका के नोबेल प्राइज़ विजेता
सुप्रसिद्ध नाटककार यूजीन ओ’ नील ने अपने परम प्रिय पालतू कुत्ते ‘ब्लेमी’ के
बिहाफ पर लिखा है ! मैंने मात्र इसका अनुवाद किया है ! पालक और पालित के बीच कैसा
अनन्य रिश्ता हो सकता है यह वसीयत इसकी मिसाल है साथ ही यह यूजीन ओ’ नील के अति
संवेदनशील ह्रदय से भी हमारा परिचय कराती है ! आपसे विनम्र अनुरोध है इसे एक बार
पढ़ियेगा ज़रूर ! कुछ पाठकों को यह शायद बहुत लंबा लगे उनसे अनुरोध है इसे बुक मार्क
कर लें और फिर अपनी सुविधानुसार पढ़ें, पर पढ़ें ज़रूर ! शायद हमें इससे ही कुछ सीखने
की प्रेरणा मिल जाये !
सिल्वरडीन एम्ब्लेम
ओ’ नील का अंतिम इच्छापत्र और वसीयतनामा
मैं सिल्वरडीन एम्ब्लेम
ओ’ नील ( जिसे परिवार वाले, दोस्त और परिचित प्यार से ‘ब्लेमी’ के नाम से जानते
हैं ); जैसा कि मुझ पर मेरी उम्र और दुर्बलता का बोझ बढ़ता ही जा रहा है मैं यह जान
चुका हूँ कि मेरे जीवन का अंत अब निकट आ चुका है; अपनी अंतिम इच्छा और वसीयत अपने
मालिक के दिमाग में आरोपित कर रहा हूँ ! मेरे मरने तक इसके वहाँ होने का आभास मेरे
मालिक को भी नहीं होगा ! मेरी मृत्यु के बाद अपने एकांत पलों में जब वे मुझे याद
करेंगे तब अचानक उन्हें इस वसीयत के बारे में पता चलेगा और मेरा उनसे अनुरोध है कि
तब वे इसे मेरी खातिर एक स्मृति पत्र के रूप में अंकित कर दें !
भौतिक वस्तुओं के
रूप में मेरे पास पीछे छोड़ने के लिए बहुत कम सामान है ! कुत्ते आदमियों से अधिक
समझदार होते हैं ! वे साजो सामान के अम्बार नहीं लगाते ना ही वे ज़मीन जायदाद बटोरने
में अपना समय व्यर्थ गंवाते हैं ! जो सामान उनके पास है उसे कैसे सहेजा जाये और जो
उनके पास नहीं है उसे कैसे हासिल किया जाये इस दुश्चिंता में वे अपनी नींदें
बर्बाद नहीं करते ! विरासत में छोड़ने के
लिए मेरे पास मेरे प्यार और विश्वास के अलावा अन्य कोई कीमती वस्तु नहीं है और यह
मैं उन सभी को देना चाहता हूँ जिन्होंने मुझसे प्यार किया है ! मेरे मालिक और
मालकिन, जिन्हें मैं जानता हूँ कि मेरी मृत्यु के बाद शोक संतप्त होकर वे मुझे
सबसे अधिक याद करेंगे, फ्रीमैन, जो हमेशा से मेरे लिए सबसे अच्छा रहा है, सिन और
रॉय एवं विली और नाओमी --- लेकिन अगर मैं इसी तरह उन सबके नाम गिनाता जाऊँगा
जो मुझसे प्यार करते थे तो मालिक को पूरी एक किताब लिखनी पड़ जायेगी ! अब जब
मृत्यु, जो राजा हो या रंक सबको एक दिन धूल में मिला देती है, मेरे इतने पास आ गयी है तब
अपने बारे में इस तरह शेखी बघारना शायद मेरे लिये उचित नहीं है लेकिन मैं हमेशा से
ही सबका बहुत अधिक दुलारा रहा हूँ !
अपने मालिक और
मालकिन से मेरा अनुरोध है कि वे हमेशा मुझे याद करें लेकिन मेरे लिए बहुत लम्बे
समय तक दुःख ना मनायें ! अपने जीवन काल में मैं दुःख के पलों में उनके लिये
सांत्वना और सुख के पलों में उनके लिए अतिरिक्त खुशी की वजह बन कर रहा हूँ ! मुझे यह सोच कर
ही बहुत पीड़ा हो रही है कि अपनी मृत्यु के समय मैं उन्हें दुःख पहुँचाने की वजह बन
रहा हूँ ! उन्हें याद रखना चाहिए कि किसी अन्य कुत्ते ने इससे अधिक सुखद जीवन नहीं
जिया होगा जैसा कि मैंने जिया है ( और इसका सारा श्रेय मैं अपने प्रति उनके अगाध प्यार
और हितचिंता को देता हूँ ! ) अब जबकि मैं
अंधा, बहरा और लंगड़ा हो चुका हूँ, यहाँ तक कि मैं अपनी सूँघने की शक्ति भी इस कदर
खो चुका हूँ कि कोई शैतान खरगोश आकर ठीक मेरी नाक के नीचे भी बैठ जाये तो भी मुझे
पता ना चले, मेरा सारा दंभ चूर-चूर होकर पीड़ादायक अपमान में परिवर्तित हो चुका है,
मुझे ऐसा महसूस होने लगा है कि ज़रुरत से ज्यादह जी कर उसके स्वागत की अवमानना करने
के लिये अब ज़िंदगी भी मुझे ताना सा मारने लगी है ! इसलिये इससे पहले कि मैं खुद स्वयं पर और अपने चाहने वालों पर और अधिक दु:सह बोझ बन जाऊँ अब वक्त आ चुका है कि
मैं सबसे अलविदा कह दूँ ! मुझे उन सबको छोड़ कर जाने का दुःख तो ज़रूर है लेकिन अपने
मरने का ज़रा भी दुःख नहीं है ! मृत्यु का भय जिस तरह से आदमियों को होता है वैसा
कुत्तों को नहीं होता ! हम इसे जीवन के एक अभिन्न अंग की तरह स्वीकार करते हैं इसे
रहस्यमय या भयावह नहीं मानते जो जीवन को नष्ट करने के लिए आ धमकती है ! और फिर
मरने के बाद क्या होता है यह कौन जानता है ! इस बारे में मैं अपने उन साथी
डालमेशियन्स के विश्वास पर भरोसा करना चाहता हूँ जो मौहम्मद साहेब के पक्के भक्त हैं
और यह मानते हैं कि एक जन्नत होती है जहाँ आप हमेशा जवान और सुर्खरू रहते हैं;
जहाँ आप सारा दिन खूबसूरत स्पॉट्स वाली ढेर सारी प्रेमासक्त डालमेशियन हूरों के
साथ रोमांस कर सकते हैं; जहाँ तेज़ दौड़ने वाले दुष्ट खरगोश भी बहुत तेज़ नहीं दौड़ते (
बिलकुल हूरों की तरह ), और वैसे ही मिलते हैं जैसे रेगिस्तान में रेत; जहाँ हर परम
सुखदाई घंटा भोजन का समय होता है; जहाँ लम्बी शामों को गरमाने के लिये हज़ारों अलाव हैं
जिनमें हमेशा लकड़ियाँ जलती रहती हैं और जहाँ आप गोलमोल गुड़ी मुड़ी होकर लेटे हुए
अपलक जलती हुई लपटों को देखने का आनंद उठा सकते हैं और धरती पर बिताये अपनी पुरानी
जोशीली जवानी और बहादुरी के दिन और अपने मालिक और मालकिन के प्यार को याद कर सपनों
में खो सकते हैं !
मैं जानता हूँ कि
मुझ जैसे डॉगी के लिए इतने सब की कामना करना बहुत अधिक है लेकिन इतना निश्चित है
कि वहाँ परम शान्ति है, मेरे बूढ़े दिल, दिमाग और शरीर के थके हुए अंगों के लिए एक लंबा
आराम है और धरती पर जो नींद मुझे सबसे प्यारी थी वह चिर निंद्रा वहाँ ज़रूर है !
अंतत: शायद यही सबसे अच्छी बात है !
एक अंतिम विनती मैं
बहुत इमानदारी के साथ करना चाहता हूँ ! मैंने एक दिन मालकिन को यह कहते हुए सुना
था, “ जब ब्लेमी की मृत्यु हो जायेगी हम दूसरा कुत्ता कभी नहीं पालेंगे ! क्योंकि
मैं उसे इतना ज्यादह प्यार करती हूँ कि किसी दूसरे कुत्ते को मैं उतना प्यार कभी
कर ही नहीं पाऊँगी !” मैं अपने प्यार का वास्ता देकर उनसे यह कहना चाहता हूँ कि वे
दूसरा कुत्ता ज़रूर पालें ! दूसरे कुत्ते को कभी ना पालना मेरी यादों और मेरे प्यार
के प्रति बड़ी ही तुच्छ श्रद्धांजलि होगी ! मुझे तो यही बात महसूस कर सबसे अधिक
खुशी होगी कि एक बार मुझ जैसे डॉगी को अपने घर में पालने के बाद अब वे बिना डॉगी
के रह ही नहीं सकतीं ! मैं संकीर्ण विचारों वाला ईर्ष्यालु कुत्ता नहीं हूँ ! मेरा
मानना है कि अधिकतर कुत्ते अच्छे ही होते हैं ( और एक वह काली बिल्ली भी जिसे
मैंने अक्सर शाम के समय लिविंग रूम के कालीन पर अपने साथ बैठने की इजाजत दे दी थी
और दयालु होने की वजह से उसके लड़ियाने को भी झेलने की मैंने आदत डाल ली थी और यदा कदा
भावुक होकर मैं भी उसे कभी-कभी दुलार लिया करता था ! ) इसमें कोई शक नहीं है कि
कुछ कुत्ते दूसरे कुत्तों से बेहतर होते हैं और डालमेशियन्स, जैसा कि सभी जानते
हैं, सबसे बढ़िया होते हैं ! इसलिए अपने उत्तराधिकारी के रूप में मैं एक डालमेशियन
का ही सुझाव दूँगा ! संभव है कि अपनी जवानी के दिनों में मैं जितना तंदरुस्त,
सुसभ्य, शानदार और खूबसूरत हुआ करता था वह वैसा न हो ! मालिक और मालकिन को
नामुमकिन की इच्छा करनी भी नहीं चाहिये लेकिन वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपना
सर्वोत्तम उन्हें देगा इसका मुझे पूरा विश्वास है ! और एक बात और भी है कि उसकी इन अनिवार्य
कमियों के साथ मेरी तुलना सदैव उनके मन में मेरी यादों को हरा रखेगी ! उसे मैं
अपने गले का पट्टा, चेन, ओवरकोट और बरसाती, जो कि १९२२ में पेरिस के हर्मीज़ को
ऑर्डर देकर बनवाये गए थे, उत्तराधिकार में दे रहा हूँ ! मैं जानता हूँ कि वह कभी
भी इन चीज़ों को उतनी शान के साथ नहीं पहन पायेगा जिस तरह से मैं इन्हें शान से पहन कर
प्लेस वेंडम और बाद में पार्क एवेन्यू घूमने के लिए जाया करता था और तब सबकी
प्रशंसा भरी नज़रें भी जैसे मुझ पर ही जमी रहती थीं, लेकिन मुझे विश्वास है कि वह पूरी
कोशिश करेगा कि इन्हें पहन कर वह एक सड़कछाप देसी कुत्ता दिखाई ना दे ! यहाँ रैंच
पर तो कुछ मामलों में उसे मेरे साथ की जाने वाली तुलना के लिए स्वयं को योग्य
सिद्ध करना ही होगा ! मेरा अनुमान है कि शिकार के वक्त वह खुराफाती खरगोशों के पास
मुझसे अधिक अच्छी तरह से पहुँच जाया करेगा जैसा कि मैं पिछले कुछ सालों से नहीं जा
पाता था ! उसकी तमाम कमियों के बावजूद भी मेरी शुभकामना और विश्वास है कि मेरे इस पुराने घर
में उसे हर खुशी मिलेगी !
प्यारे मालिक एवं
मालकिन, विदा के इन पलों में मैं एक अंतिम बात और कहना चाहता हूँ ! आप जब भी मेरी
कब्र पर आयें भरे मन से लेकिन साथ ही खुश होकर मेरे साथ बिताये हुए लम्बे
सुखद जीवन की यादों को मन में धारण कर स्वयं से यह कहें कि, “ यहाँ वह प्राणी दफ़न
है जो हमें बहुत प्यार करता था और जिसे हमने बहुत प्यार किया !” कोई फ़िक्र नहीं चाहे
कितनी भी गहरी मेरी नींद हो मैं आपकी आवाज़ सुन लूँगा और तब मृत्यु चाहे अपनी सारी
शक्ति लगा ले कृतज्ञ भाव से अपनी पूँछ हिलाने की मेरी तीव्र भावना का दमन वह भी नहीं
कर पायेगी !
Tao House,
December 17th, 1940
लेखक ----------- यूजीन ओ’ नील
अनुवाद ---------
साधना वैद
मैंनें इस तरह का वाकया पहली बार पढ़ा
ReplyDeleteअधिकाशं को मैं छोड़ देती थी
कोई अपने पालतू को प्यार तो करता है
पर इतनी हद तक प्यार कर सकता है
इस वसीयत से जाना
शुक्रिया इस पोस्ट को पढ़वाने के लिये
सादर
इस बारे में मैं अपने उन साथी डालमेशियन्स के विश्वास पर भरोसा करना चाहता हूँ जो मौहम्मद साहेब के पक्के भक्त हैं और यह मानते हैं कि एक जन्नत होती है जहाँ आप हमेशा जवान और सुर्खरू रहते हैं; जहाँ आप सारा दिन खूबसूरत स्पॉट्स वाली ढेर सारी प्रेमासक्त डालमेशियन हूरों के साथ रोमांस कर सकते हैं; जहाँ तेज़ दौड़ने वाले दुष्ट खरगोश भी बहुत तेज़ नहीं दौड़ते
ReplyDelete:):) एक पालतू कुत्ते कि भावनाओं को लेखक ने बहुत खूबसूरती से लिखा है ... और उतना ही सुंदर अनुवाद किया है आपने ॥ आभार इस प्रविष्टि के लिए ...
कुत्ते आदमियों से अधिक समझदार होते हैं ! वे साजो सामान के अम्बार नहीं लगाते ना ही वे ज़मीन जायदाद बटोरने में अपना समय व्यर्थ गंवाते हैं ! जो सामान उनके पास है उसे कैसे सहेजा जाये और जो उनके पास नहीं है उसे कैसे हासिल किया जाये इस दुश्चिंता में वे अपनी नींदें बर्बाद नहीं करते ॥
जीवन का सही दर्शन देती पंक्तियाँ
Nice story.
ReplyDeleteआपने कहा है कि
मरने के बाद क्या होता है ?
इस विषय पर विस्तार से यहाँ एक चर्चा देखी जा सकती है -
ब्रह्मांड की विशालता, एक सूत्रता और दिन-रात का प्रत्यावर्तन बता रहा है कि यह सृष्टि किसी तीर-तुक्के की परिणति नहीं है, इसमें स्रष्टा का कोई उच्च प्रयोजन छिपा है। हम इहलोक में देखते हैं कि अक्सर बेइमान, स्वार्थी, धूर्त लोग फल फूल रहे हैं, ईमानदार, गरीब, श्रमजीवी लोग पिस रहे हैं। दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का फूलना-फलना न्याय और नीति की बात नहीं हो सकती। कुकृत्यों की परिणति सुखदायी कभी नहीं हो सकती। अतः स्पष्ट है कि कुकृत्यों के परिणाम यहाँ प्रकट नहीं हो रहे हैं। न्याय और प्रतिहार के लिए यह संसार अपूर्ण है। बुद्धि की मांग है कि कोई ऐसी जगह हो जहाँ दुष्कर्मी और अत्याचारी व्यक्ति के कर्मों का पूर्ण विवरण मय गवाह व सबूतों के प्रस्तुत हो और पीड़ित व्यक्ति अपनी आंखों के सामने उसे दण्ड और सजा भोगते देखें। वर्तमान लोक में ऐसी न्याय व्यवस्था की कतई कोई सम्भावना नहीं है। अतः पूर्ण और निष्पक्ष न्याय के लिए आवश्यक है कि जब सम्पूर्ण मानवता का कृत्य समाप्त हो जाए तो एक नई दुनिया में हमारा पुनर्जन्म हो अथवा हमें पुनर्जीवन प्राप्त हो। हिंदू मनीषियों ने पुनर्जन्म को गलत अर्थों में परिभाषित किया है। पुनर्जन्म शब्द का अर्थ बार-बार जन्म लेने से कदापि नहीं है। पुनर्जन्म शब्द का अर्थ एक बार न्याय के दिन जन्म लेने से है। हिंदू धर्म ग्रंथों में प्रलय, पितर लोक, परलोक, स्वर्ग, नरक आदि शब्दो का बार-बार प्रयोग उक्त तथ्य की पुष्टि करता है।
यह जगत एक क्रियाकलाप है। तैयारी है, एक दिव्य जीवन के लिए, पारलौकिक जीवन के लिए। सांसारिक अभ्युद्य मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है। लक्ष्य है पारलौकिक जीवन की सफलता। भौतिक सुख-सुविधा सामग्री केवल जरूरत मात्र है। यहाँ जब हम वह कुछ हासिल कर लेते हैं जो हम चाहते हैं, तो हमारे मरने का वक्त करीब आ चुका होता है। हम बिना किसी निर्णय, न्याय, परिणाम के यहाँ से विदा हो जाते हैं। धन, दौलत, बच्चें आदि सब यही रह जाता है। अगर हम यह मानते हैं कि जो कर्म हमने यहाँ किए हैं, उनके परिणाम स्वरूप हम जीव-जन्तु, पेड़- पौधा या मनुष्य बनकर पुनः इहलोक में आ जाएंगे तो यह एक आत्मवंचना (Self Deception) है। हमें इस धारणा की युक्ति-युक्तता पर गहन और गम्भीर चिंतन करना चाहिए। पारलौकिक जीवन की सफलता मानव जीवन का अभीष्ट (Desired) है। यही है मूल वैदिक और कुरआनी अवधारणा और साथ-साथ बौद्धिक और वैज्ञानिक भी।
http://www.islamhinduism.com/hinduism/hindi-articles-hinduism/104-2011-05-18-10-38-19
"कुत्ते आदमियों से अधिक समझदार होते हैं ! वे साजो सामान के अम्बार नहीं लगाते ना ही वे ज़मीन जायदाद बटोरने में अपना समय व्यर्थ गंवाते हैं ! जो सामान उनके पास है उसे कैसे सहेजा जाये और जो उनके पास नहीं है उसे कैसे हासिल किया जाये इस दुश्चिंता में वे अपनी नींदें बर्बाद नहीं करते ॥":
ReplyDeleteकुत्ते बफादार तो होते ही हैं ,समझदार भी -अच्छा लेख ,आभार
बहुत बढिया..
ReplyDeleteजब भी किसी पालतू जानवर के बारे में बात करें उसके मालिक के दिल की थाह मिल ही जाती है वह कहता है "यह हमारा घर का सब से प्यारा सदस्य है हम इसके बिना रह ही नहीं सकते "|वह परिवार के एक सदस्य की तरह हो जाता है |कभी रूठता है कभी हसता है और कभी रोता है |तुम्हारी अनुवादित यह बसियत बहुत शानदार और जानदार है |बहुत मजा़ आया इसे पढ़ कर |
ReplyDeleteआशा
अद्भुत पोस्ट है साधना जी !!
ReplyDeleteहमने कभी कोई कुत्ता नहीं पाला. परन्तु इस वसीयत को पढकर पालक की संवेदनशीलता सहज ही उल्लेखित हो जाती है.
कुछ एहसास रक्त की तरह शिराओं में घुल जाते हैं - और एक स्थान बना लेते हैं - यह वसीयत इतनी ही अनोखी है
ReplyDeleteChampak Bhattacharya
ReplyDeleteaapke anuwad se prabhawit hua!keep it up didi!
kitni rochak vasiyat hae.
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