जीवन की ऊबड़ खाबड़
राहों पर विवाह की गाड़ी को यदि फर्राटे से चलाना चाहते हैं तो गाड़ी का सही हालत
में होना बहुत ज़रूरी है ! चारों पहियों का भी उचित रखरखाव होना चाहिये ! प्यार के
ट्यूब पर विश्वास का, समर्पण के ट्यूब पर परस्पर सम्मान का, समझदारी के ट्यूब पर
परिपक्वता का और त्याग के ट्यूब पर धैर्य का मज़बूत टायर चढ़ा होना चाहिये साथ ही
पीछे डिकी में क्षमा के ट्यूब पर समझौते का टायर चढ़ी स्टेपनी की व्यवस्था करना भी
ना भूलें ! अहम् वादी सोच के एक्सेलरेटर
पर संयम का ब्रेक पूरी तरह से लगता हो और गाड़ी की टंकी हर हाल में निभाने की दृढ़
इच्छाशक्ति के प्रीमियम पेट्रोल से भरी हो ! ड्राइविंग सीट पर बैठ कर स्टीयरिंग
सम्हालने वाला व्यवहार कुशलता के सभी ट्रैफिक नियमों का दक्षता से अनुपालन करता हो
तो फिर शादी चाहे अरेंज्ड हो या प्रेमजनित हो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता !
दरअसल विवाह की सफलता इस पर निर्भर नहीं होती कि शादी माता-पिता की पसंद से हुई है
या युवक युवती की अपनी पसंद से ! जिन व्यक्तियों की सोच में परिपक्वता है वे
विपरीत एवं विषम परिस्थतियों का सामना भी समझदारी से कर ले जाते हैं और अपने
वैवाहिक जीवन पर कोई आँच नहीं आने देते !
मेरे विचार में प्रेम
विवाह आज के समय की अनिवार्यता बन चुका है ! गुज़रे वक्तों में सामाजिक व्यवस्था
कुछ ऐसी थी कि विवाह के पश्चात स्त्री और पुरुष दोनों के कार्य क्षेत्र अलग-अलग बँटे
हुए थे ! पुरुष घर से बाहर जाकर कमा कर लाता था और स्त्री गृह कार्यों का संचालन और
परिवार के सभी छोटे बड़े सदस्यों और बाल बच्चों की देखभाल करती थी ! पुरुष घर में
आकर सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो अपनी थकान उतारता था और स्त्री उसकी हर ज़रुरत
का ख्याल रखने में ही अपने पत्नी धर्म की सफलता को आँकती थी ! लिहाजा कहीं टकराव
का प्रश्न ही नहीं उठता था ! सामाजिक व्यवस्था कुछ ऐसी भी थी कि युवक युवतियाँ एक
दूसरे के संपर्क में कम ही आते थे तो प्रेम विवाह के दृष्टांत भी कम ही दिखाई देते
थे ! अपवाद हर युग में होते हैं ! आज के युग में लड़कियाँ सुशिक्षित और कामकाजी हैं
और अपने कैरियर को गंभीरता से लेती हैं ! ऐसी स्थिति में उन्हें ऐसे जीवनसाथी की
ज़रुरत होती है जो उनकी आवश्यकताओं और बाध्यताओं को समझे और उनका घर के कामों में
हर तरह से सहयोग करे क्योंकि उन्हें भी अपनी नौकरी के लिए घर से बाहर जाना होता है
! ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब दोनों एक दूसरे को भली प्रकार समझते हों और एक
दूसरे की भावनाओँ और परेशानियोँ को हल करने के लिये मानसिक रूप से तत्पर हों !
अरैंज्ड मैरिज में
इस अवस्था तक पहुँचने में समय लग जाता है क्योंकि नवविवाहित जोड़ा एक दूसरे की रुचि
अभिरुचियों तथा प्राथमिकताओं से नितांत अनभिज्ञ होता है ! फिर यह भी एक सत्य है कि
हमारे समाज में लोगों का अधिकाँश प्रतिशत अभी भी पुरुषवादी मानसिकता से ग्रस्त है
! गृहकार्यों में पत्नी का हाथ बँटाना आज भी कई युवकों को नागवार गुज़रता है और समय
की माँग को समझ कर जो लोग पत्नी की सहायता करने की कोशिश करते हैं उनका खूब मज़ाक
भी उड़ाया जाता है ! इन्हीं बातों को लेकर तकरार बढ़ जाती है ! घर परिवार के सदस्य
यदि समझदार नहीं होते हैं तो वे आग में घी डालने का कार्य करते हैं और यहाँ स्त्री
पुरुष दोनों के अहम् टकराने लगते हैं ! अरेंज्ड मैरिज में दोनों ही शादी करवाने के
लिए ज़िम्मेदार माता-पिता को दोष देते हैं और शादी टूटने के कगार पर पहुँच जाती है
!
प्रेम विवाह में अक्सर
तो ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न ही कम होती हैं क्योंकि दोनों ही एक दूसरे को पहले से ही
जानते भी हैं, समझते भी हैं और एक दूसरे को चाहते भी हैं इसलिए वे एक दूसरे की
भावनाओं का सम्मान भी करते हैं और सहयोग भी ! फिर शादी का निर्णय क्योंकि स्वयं उनका
अपना होता है इसलिये अन्य किसीको दोष देने की गुंजाइश ही नहीं बचती इसलिये यदि ऐसी
स्थितियाँ उत्पन्न होती भी हैं तो वे परस्पर सहयोग से उन्हें सम्हालने की कोशिश
में जुट जाते हैं !
पुराने वक्तों में
जब विवाह कम उम्र में कर दिये जाते थे लड़कियों की परवरिश एक तरह से ससुराल में ही
होती थी ! उनके व्यक्तित्व का निर्माण ही ससुराल के वातावरण और प्रथा परम्पराओं के
अनुरूप होता था ! ससुराल के हर सदस्य की आदतों और पसंद नापसंद से वे भली भाँति
परिचित होती थीं और उन्हें तदनुरूप अपने आपको ढालने में कभी कोई परेशानी नहीं होती
थी बल्कि वे उसे ही सबसे सही और आदर्श व्यवस्था मान लेती थीं ! लेकिन आज के युग
में जबकि विवाह की उम्र बढ़ गयी है और शादी के समय तक लड़कियों के व्यक्तित्व का
पूरी तरह से ना केवल विकास हो जाता है बल्कि वे अपने विचारों में एक प्रकार से दृढ़
भी हो जाती हैं ऐसे में उनके स्वभाव का लचीलापन समाप्त हो जाता है और उन्हें
ससुराल के वातावरण के साथ सामंजस्य बैठाने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है
! लेकिन ना तो उनकी आदतें बदल पाती हैं ना ही सोच ! ऐसे में अरेंज्ड मैरिज में अधिक
बाधाएं आती हैं ! क्योंकि ससुराल के तौर तरीकों के अनुसार अपनी जीवनचर्या को बदल
पाना उनके लिए संभव नहीं हो पाता ! इससे अनेक प्रकार की गलतफहमियाँ पैदा हो जाती
हैं और संबंधों में कड़वाहट आ जाती है ! परिणामस्वरुप वैवाहिक सम्बन्ध विघटन के
द्वार पर पहुँच जाता है ! और क्योंकि नव विवाहित जोड़े में परस्पर भी कोई रागात्मक
सम्बन्ध विकसित नहीं हो पाता इसलिये वे एक दूसरे को भावनात्मक संबल देने के बजाय
आपस में लड़ने झगड़ने में, एक दूसरे पर दोषारोपण करने में और माता-पिता को दोष देने में लग जाते हैं !
प्रेम विवाह में
आसानी होती है क्योंकि यहाँ पति पत्नी एक दूसरे की आदतों और चारित्रिक विशेषताओं
से ना केवल परिचित होते हैं वरन कदाचित उनसे प्रभावित भी होते हैं और उन्हें पसंद
भी करते हैं इसलिए यहाँ अहम् के टकराव का कोई प्रश्न नहीं उठता बल्कि घर वालों की
नाराज़गी को दूर करने के लिए भी पति पत्नी एक दूसरे की कमियों को ढँकने की भरपूर
कोशिश करते हैं और एक दूसरे का दृष्टिकोण घर वालों के सामने प्रस्तुत कर सुलह
कराने का प्रयत्न भी करते हैं !
प्रेम विवाह का एक
और सबसे बड़ा फ़ायदा जो मुझे दिखाई देता है वह यह है कि यहाँ दहेज़ लोभियों को अपने
बेटे की बोली लगाने के मौके नहीं मिल पाते ! ना ही बेटी के अभिभावकों को हर समय
जन्मत्रियाँ, बेटी की हर पोज़ में तरह-तरह की
तस्वीरें और शिक्षा दीक्षा तथा खानदान का सारा बायोडाटा लेकर यात्रा के लिए
अपना सूटकेस पैक रखने की ही ज़रुरत होती है ! प्रेम विवाह प्राय: बिना लालच और लोभ
के कम खर्च वाले होते हैं ! और जिन्हें सामाजिक स्वीकृति मिलने का भय होता है ऐसे
जोड़े तो प्राय: चंद दोस्तों की उपस्थिति में बिना किसी विशेष खर्च के मंदिर में ही
विवाह सूत्र में बँध जाते हैं और अपने माता पिता के सर से खर्च का एक बहुत बड़ा बोझ
उतार देते हैं ! इसका महत्त्व माता-पिता उस वक्त समझें या ना समझें लेकिन कालान्तर
में अवश्य समझ जाते हैं और तब मन से बच्चों को आशीर्वाद दे वे उनके विवाह को
मान्यता भी देते हैं और स्वीकृति भी !
प्रेम विवाह में
लड़के लड़कियाँ बेवजह के देखने दिखाने की यंत्रणा से भी बच जाते हैं ! विशेष रूप से
जो लड़कियाँ देखने में कम सुन्दर होती हैं उन्हें बार-बार रिजेक्ट किये जाने का
अपमान सहना पड़ता है जिसकी वजह से उनके मन में हीन भावना गहरी जड़ें जमा लेती है !
अरेंज्ड मैरिज में इस प्रक्रिया से बचने का कोई उपाय नहीं है ! बार-बार अतिथियों
के दल के दल घर में आते हैं ! उनकी आवभगत के लिए कई उपक्रम और खर्च किये जाते हैं
! शादी के खर्च, बारातियों की खातिर और दहेज़ की लम्बी फेहरिस्त पर चर्चाएँ होती
हैं और अंत में लड़की को देख कर वे जब अस्वीकृति ज़ाहिर कर चल देते हैं तो घर के
वातावरण पर बड़ा नकारात्मक असर पड़ता है ! एक और असफलता का मंजर देख माता-पिता निराश
हो जाते हैं और लड़की अपराधबोध से ग्रस्त हो और दुखी हो जाती है ! ऐसी घटनाओं की
पुनरावृत्ति कभी-कभी जानलेवा भी हो जाती है ! प्रेम विवाह में ऐसी भयावह स्थितियाँ
पैदा नहीं होतीं क्योंकि प्रेम करने वाले व्यक्ति सूरत
की सुन्दरता के नहीं सीरत की सुन्दरता के कायल होते हैं ! वो कहते हैं ना ‘द
ब्यूटी लाइज इन बिहोल्डर्स आइज़’, इसलिए अपने प्रेमी या प्रियतमा की सुन्दरता पर
उन्हें किसी और की पसंद और स्वीकृति की मोहर की कोई ज़रुरत नहीं होती !
इसलिए मेरा वोट तो
प्रेम विवाह को ही जाता है ! वर्तमान समय में जबकि दो बालिग परिपक्व सोच वाले,
सुशिक्षित, महत्वाकांक्षी और प्रबुद्ध व्यक्ति विवाह बंधन में बँधने के लिए जा रहे
हों तो अभिभावकों को अपना कर्तव्य उन्हें आशीर्वाद देने तक और सुख दुःख में उन्हें
भरपूर सहयोग और प्यार देने तक ही सीमित कर लेना चाहिये ! समय-समय पर जब उन्हें
आवश्यकता हो तो उनका मार्गदर्शन भी करना चाहिये ! अपनी पसंद का पात्र चुन कर और
जन्मपत्री लेकर पंडितों के यहाँ गृह नक्षत्र और गुण मिलवाने की कवायद अभिभावकों को बिल्कुल छोड़
देनी चाहिये ! कितने भी गुण मिलवा लें यदि लड़के लड़की की अभिरुचियाँ नहीं मिलेंगी,
वे एक दूसरे को सम्मान देने के योग्य नहीं समझेंगे तो वे आपकी पसंद को भी मन से नहीं
अपनी सकेंगे ! ऐसे में उनके विवाहित जीवन की गाड़ी भविष्य की पथरीली राहों पर सरपट दौड़
पायेगी इसकी भी कोई गारंटी नहीं होगी !
साधना वैद
apke lekh ne aadi kaal se kalyug tak ke vivah ke sabhi pahluon par vichar diye hain....aur ant me sab acchha-bura batate hue prabhaavshali dhang se prem vivah ki pairvi karte hue ek sudrad drishti di hai.
ReplyDeleteisi vishay par maine bhi ek lekh taiyar kiya tha...apka lekh padhne k baad apne lekh ko review kiya to apna lekh bahut feeka sa laga...lekin apke lekh ne utsukta jaga di ki kabhi me bhi us lekh ko apne blog par post karu.
filhal to bahut samay se apke raah tak raha hai mera blog.
प्रेम हो या अरेंज्ड ..... आजकल दोनों का टिकना न टिकना संदेहास्पद है . टाइम पास रिलेशंस इतने होने लगे कि सोच ही अजीब हो गई है . हेल्पिंग स्वभाव तो हर ज़रूरी है - पर कारण इतने अविश्वसनीय होते हैं कि न कहते बनता है,न रखते . यदि आप भलेमानस की तरह पेश आये तो आपको तमाशा बनाने की कोशिश होगी ....जिन्हें इज्ज़त प्यारी है वे चुप ही रह जाते हैं
ReplyDeleteविवाह किसी प्रकार से भी किया जाए साथ निभाने की इच्छा शक्ति सबसे आवश्यक है यदि प्रेम विवाह किया भी जाए तो आवश्यकता है आपसी तालमेल की |उसके लिए मानसिक परिपक्वता आवश्यक है |
ReplyDeleteअपरिपक्व उम्र में विवाह टिकेगा या नहीं क्या कहा जा सकता है |मुझे लगता है कि अरेंज्ड मेरेज अधिक सफल इस लिए होती है कि पेरेंट्स अपने बच्चे की आदतों से परिचित होते हैं इस लिए उस के अनुकूल ही वर या वधू तलाशते हैं और यदि कोई बाधा भी आए तो सुलझाने का प्रयत्न करते हैं |
आशा
सटीक तुलनात्मक अध्ययन
ReplyDeleteदोनों विवाह में पहिये का समान होना आवश्यक है
आपसी समझ-बूझ से जिन्दगी में तकरार की सम्भावना खत्म की जा सकती है
सादर
सही है गाड़ी को सही चलाने के लिए दोनों ही पहिए समझदार होने चाहिए..
ReplyDeleteसुन्दर तुलनात्मक वर्णन
ReplyDeleteलव मैरिज कहीं न कही अरेंज्ड मैरिज से अच्छी होती है ऐसा मेरा सोचना है
आपकी बात से सहमत हूँ
सादर !
विवाह किसी प्रकार से भी किया जाए मानसिक परिपक्वता आवश्यक है |
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक पोस्ट समाज इतिहास सन्दर्भों को समेटे हुए .अलावा इसके अनुबंधित विवाह वैभव और एश्वर्या प्रदर्शन के दिखाऊ मंच बन चुके हैं .
ReplyDeleteजिस तरह से गाड़ी चलाने की सीख आपने दी है यदि उस तरह से चलायी जाये तो विवाह अवश्य सफल होगा .... प्रेम विवाह के जहां फायदे हैं वहाँ कुछ नुकसान भी .... माता - पिता उन बच्चों की समस्या से पल्ला झाड लेते हैं जिन्होने प्रेम विवाह किया हो ... सबसे ज़रूरी है मानसिक परिप्क्क्वता .... लेकिन आज कल परिपक्क्वता के साथ ईगो बहुतायत से पाया जाने लगा है ... जिसके चलते सारी समझदारी एक कोने में चली जाती है ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही संतुलित विश्लेषण है. व्यवस्थाएं समय काल के अनुसार बदलती हैं , बदलनी भी चाहिए.पर विवाह आखिरकार आपसी समझ और समझौते पर ही टिका होता है, हुआ किसी भी तरह क्यों न हो.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपका आलेख.
बहुत सही तुलनात्मक विश्लेषण किया है आपने!
ReplyDeleteकिसी भी विवाह में आपसी समझ , प्यार, सम्मान और परिपक्वता होना बहुत ज़रूरी है ....
~सादर!!!
तुलनात्मक विश्लेषण...मगर हर रिश्ते में तालमेल आवश्यक है...और वैवाहिक जीवन में तो सबसे ज्यादा
ReplyDeleteदोनों में ही परिपक्वता और समझदारी बहुत ज़रूरी है .
ReplyDeleteVivah ek yagya hai, jismein di jati hai ahuti apne aham ki, ahankar ki, aur samarpan ki..........
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