पतझड़ की बेरहम
मार के बाद भी
ना जाने कहाँ से
आशा और अभिलाषा के
दो जिद्दी पीले
पत्ते
सबसे ऊँचे दरख़्त
की
सबसे सूखी शाख पर
पता नहीं क्यों
अटके रह गए हैं !
मैं पेड़ के नीचे
अपना आँचल फैलाये
धूप में सिर्फ
इसीलिये खड़ी हूँ
कि ज़मीन पर गिरने
की बजाय उन्हें
मैं अपने
आँचल में समेट लूँ !
चाहती हूँ कि
उन्हें
मेरे आँचल का
आश्रय मिल जाये
वरना वक्त की
निर्मम धूप में जले
ये सूखे सुकुमार
पत्ते
अगर टूट कर
ज़मीन पर गिर गये
तो पैरों के नीचे
रौंदे जाकर
चूर-चूर हो जायेंगे
और उनका यह हश्र
मैं बर्दाश्त नहीं
कर पाऊँगी
और मैं
जानती हूँ कि
किसी भी पल
उनका टूट कर
झड़ जाना तय है !
साधना वैद
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 02/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर भावाव्यक्ति
ReplyDeleteजो इस दुनिया में आया है एक दिन उसका जाना तय है,,,भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteRECENT POST शहीदों की याद में,
आस कभी न टूटे...अभिलाषाएं पूरी हों....
ReplyDeleteजतन तो करने होंगे...
बहुत सुन्दर भाव...
सादर
अनु
आशा और अभिलाषा के पत्तों को रौंदने से बचाना ही होगा .... आपका अंचल इतना विस्तृत रहे कि ये जिद्दी पत्ते आप महफूज रख सकें ... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशायद कोई आस ..कोई डोर उन्हें अब भी बांधे है ......जैसे आपको ...बहुत सुन्दर ममतामयी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवे पत्ते जिद्दी नहीं बल्कि दृढ़ प्रतिज्ञ हैं...शायद निश्चिंत भी हैं कि झड़ भी गए तो नीचे एक ममतामयी आँचल फैला है उनके लिए !!
ReplyDeleteसुंदर भाव
ReplyDeleteउन पत्तों की जिद जिजीविषा है और आपका आँचल उस जिद की विजिगीषा
ReplyDeleteचाहती हूँ कि उन्हें
ReplyDeleteमेरे आँचल का
आश्रय मिल जाये
... अनुपम भाव
सादर
आशा और अभिलाषा दो जिद्दी पत्ते बहुत उम्दा बिम्ब और सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
मातृत्व के बहुत सुंदर भाव ....
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति ......