भारतीय समाज के एक मध्यम
वर्गीय संयुक्त परिवार में ज़रा झाँक कर देखिये ! इस घर में सिर्फ एक व्यक्ति की
कमाई से घर चलता है ! पत्नी शिक्षित तो है लेकिन हाउसवाइफ है ! पति सबका ख्याल
रखना चाहता है लेकिन इस कवायद में उसके मन की सारी कोमलता और मिठास कब कहाँ खो गयी
और कड़वाहट ने अपनी जड़ें जमा लीं उसे भी नहीं पता ! दोष किसका है और ऐसे हालात
क्यों बन जाते हैं यह शायद समाजशास्त्री ही बता सकते हों लेकिन जो है जैसा है वह किसी
भी तरह हितकारी नहीं है इतना निश्चित है ! अब ज़रा नीचे लिखे सम्वादों को पढ़िये और
अनुमान लगाइये कि हर सम्वाद ने एक नारी की आत्मा को छील-छील कर कितना लहूलुहान
किया होगा ! ऐसे ही या इसी आशय के सम्वाद शत प्रतिशत नहीं तो कम से कम मध्यम वर्ग
की उन ८०-९० प्रतिशत महिलाओं को तो शायद सुनने ही पड़ते हैं जो नौकरी नहीं करतीं और
सिर्फ घर सम्हालती हैं ! नौकरी करने वाली महिलाओं को घर में किन तानों उलाहनों को
सुनना पड़ता होगा यह वे ही बता सकती हैं ! आज एक हाउसवाइफ़ के घर का नज़ारा देखिये ! क्या
हम इक्कीसवीं सदी की चौखट पर खड़े होकर गर्व से मस्तक ऊँचा कर यह कह सकते हैं कि
हमें समाज में बराबरी का दर्ज़ा वाकई में मिल गया है !
१—“सुनिये जी, मुझे
बहुत नर्वसनेस हो रही है, आपका इतना बड़ा परिवार है ! मेरे सास ससुर, ननद देवर सब
होंगे वहाँ ! उनसे कैसे पेश आना होगा ! मैं तो कुछ भी नहीं जानती ! ससुराल में
कैसे रहा जाता है, क्या करना होता है, कौन मुझे बतायेगा !”
“इसके लिये तो तुम्हें
ही प्रयत्न करना होगा ! सबका ध्यान रख के, सबकी सेवा करके, सबकी ज़रूरतें पूरी करके,
प्यार से सबका दिल जीतना होगा ! और किसीकी टीका टिप्पणी का बुरा न मान कर धैर्य के
साथ सब कुछ सीखना भी होगा !”
२--“इस महीने में एम. ए. के फॉर्म्स भरने
की आख़िरी डेट है ! मैं अपना फॉर्म भर कर जमा करा दूँ ? इस बार फाइनल का इम्तहान दे दूँगी तो
मेरा भी एम. ए. पूरा हो जायेगा !”
“इस समय तुम्हारा एम. ए. पास करना ज़्यादह
ज़रूरी है या बच्चों की पढ़ाई ? खुद पढ़ने बैठ जाओगी तो बच्चों को कौन
देखेगा ? उनका ग्रेड गिराना है क्या ? और फिर मुझे तुमसे कोई नौकरी थोड़े ही
करानी है ?”
३--“कितनी अच्छी
रिमझिम फुहार हो रही है चलिये ना छत पर चलते हैं ! अपने चेहरे पर बारिश की बूंदों
की थपकियाँ झेलना और आँचल में उन मोतियों को समेटना मुझे बहुत अच्छा लगता है !”
“अरे कहाँ जाना है
छत पर ! सारे पड़ोसी तमाशा देखेंगे ! गरमागरम पकौड़े बनाओ चाय के साथ बारिश का मज़ा आ
जायेगा ! रीता, मीता, गगन, पवन सब आ जाओ तुम्हारी भाभी गरमागरम पकौड़े बना रही हैं
!”
४--“मूवी देखने का
प्लान बनाया है क्या ? चलिये ना “पाकीज़ा” चल रही है पास के ही हॉल में ! मीना
कुमारी की लास्ट फिल्म है ! देखी भी नहीं है ! सुना है इसमें बहुत सुन्दर लगी थी
और फिल्म भी बहुत अच्छी है !“
“रोने धोने की फिल्म
दिखा कर सारी शाम खराब करनी है क्या ! जेम्स बॉण्ड की लेटेस्ट एक्शन फिल्म देखेंगे
! कुछ थ्रिल तो होगा उसमें ! तुम्हारा मन नहीं है तो आज तुम रहने दो मैं अपने दोस्तों
के साथ प्रोग्राम बना लूँगा !”
५--“माँ की तबीयत
ठीक नहीं है ! मैं कुछ दिन के लिए अपने मायके चली जाऊँ उनके पास रहने के लिये ?
उन्हें भी अच्छा लगेगा !”
“और यहाँ घर की
व्यवस्था का क्या होगा ? रीता, मीता, गगन, पवन सब स्कूल कॉलेज जाने वाले हैं !
उनके काम कौन करेगा ? अपनी माँ की इतनी चिंता है और इस घर की सारी ज़िम्मेदारी मेरी
माँ के ऊपर छोड़ जाओगी ? उनकी ज़रा भी फ़िक्र नहीं है तुम्हें ?”
६--“रमा दीदी के
बेटे की शादी है ! बहू के लिए एक गोल्ड का ब्रेसलेट या चेन खरीदना चाहती हूँ !
सबसे बड़ी मामी हूँ आखिर ! दीदी भी खुश हो जायेंगी !”
“मेरे रिश्तेदार हैं
ना ! तुम्हें चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है ! मैं देख लूँगा क्या करना है ! तुम
अपने काम से काम रखो !”
७—इस बार दीवाली पर
ड्रॉइंग रूम के नये परदे बनवाने होंगे ! इनका तो रंग भी धुल-धुल कर उतर गया है और
छेद भी हो गये हैं !”
“क्यों ? पैसे क्या
पेड़ पर लगते हैं ? कोई ज़रुरत नहीं है फिजूलखर्ची की ! अगली दीवाली पर देखेंगे अगर
सुविधा हुई तो ! इस बार इन्हें ही धोकर काम चलाओ !“
८—“कल इस कमरे की
सफाई करनी है मुझे ! ज़रा मेरी हेल्प कर दीजिये सीलिंग फैन और अलमारी की टॉप साफ़
करने में ! यह छोटा कैबीनेट भी दूसरे कमरे में शिफ्ट करना है ! बहुत भारी है !
मुझसे तो अकेले हिलता भी नहीं है ! आप भी हाथ लगा दीजिये ना ज़रा ! पंखा साफ़ करने
में भी अकेले बार-बार चढ़ने उतरने में बहुत दिक्कत होती है !”
“कोई ज़रुरत नहीं है
कैबीनेट हटाने की ! जहाँ रखा है वहीं ठीक है ! घर आने पर भी चैन नहीं मिलेगा क्या
? तुम्हें ऑफिस जाकर इतना काम करना पड़े तो पता चले ! तुम्हारा क्या है ! सारा दिन
टी वी देखने और गप्पे लगाने के सिवा और करती ही क्या हो तुम कि छोटे-छोटे कामों के
लिए भी तुम्हें मदद की ज़रुरत पड़ जाती है !“
९—“कभी तो मुझे भी
अपना काम कर लेने दिया करिये कम्प्यूटर पर ! बस किसी तरह बमुश्किल अपनी पोस्ट ही
डाल पाती हूँ ! और दूसरे ब्लोगर्स की पोस्ट्स पर तो कभी कमेन्ट कर ही नहीं पाती
इसीलिये मेरे ब्लॉग पर कोई नहीं आता !”
“तो कौन सा पहाड़ टूट
पड़ता है तुम पर ! अपना शौक पूरा कर लेती हो ना ! यह काफी नहीं है क्या ? तुम्हारी
तो यह हॉबी है लेकिन मेरे काम के लिए कम्प्युटर मेरी ज़रूरत है ! काम नहीं करूँगा
तो घर कैसे चलेगा !”
१०—“यह बताइये कल तक
तो आपको मेरा सुझाव बिलकुल सही लग रहा था फिर आज क्या मुसीबत आ गयी कि आपने उसे
सिरे से नकार दिया !”
“हो सकता है
तुम्हारी बात भी सही हो लेकिन जो मैंने सोचा है वह ज्यादह सही है और किसी एक ही की
सोच पर चला जा सकता है ! और क्योंकि होने वाले खर्च की व्यवस्था कैसे करनी है यह मैं ही जनता हूँ
इसलिए वही होगा जैसा कि मैं चाहता हूँ !”
११—“यह हर समय आप
काम और कमाई की बातें क्यों करते रहते हैं ! अगर आपने मुझे नौकरी करने दी होती तो आज
मेरी भी कोई हैसियत होती !”
“अच्छा बड़ा गुमान है
अपनी पढ़ाई पर ! कौन सा तीर मार लेतीं ज़रा हम भी तो जानें ! खाली बी. ए. पास को
मुश्किल से तीन चार सौ रुपये की टीचर की नौकरी से बड़ी तो कोई नौकरी मिलती नहीं !
तुम्हारी नौकरी के कारण घर में जो नौकरानी लगानी पड़ती इतनी तनख्वाह तो वो ही ले
जाती ! घर में चोरी चकारी भी करती और घर के लोगों को जो तकलीफ उठानी पड़ती वह अलग
!”
१२—“ओह तो अब समझी !
इतने सालों की मेहनत और समर्पण के बाद कि मेरा दर्ज़ा इस घर में सिर्फ एक नौकरानी
का था !”
“ऐसा तो मैंने नहीं
कहा ! तुम तो ‘घर की रानी’ हो ! मैंने तो सिर्फ एक सच बयान किया है और सच को सुनने
और स्वीकार करने का हौसला भी होना चाहिये हर इंसान में !”
१३—“तो इस ‘घर की
रानी’ के कुछ अधिकार भी होते हैं या सिर्फ कर्तव्य ही कर्तव्य होते हैं ? आइना तो
आपने दिखा ही दिया अब और क्या सुनना बाकी है ?”
“यही कि जितनी जल्दी
तुम यह बात समझ लोगी और मान लोगी कि मुझे किसी भी मुद्दे पर बहस और विरोध नहीं
चाहिये तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा होगा क्योंकि यह घर मेरा है और यहाँ सिर्फ मेरा
हुकुम चलेगा ! फिर तुम खुद को घर की रानी मानो, महारानी मानो या फिर नौकरानी मानो
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता !
यह तुरुप का इक्का
था !
आज मिर्ज़ा ग़ालिब की
यह ग़ज़ल अनायास ही बहुत याद आ रही है !
हर एक बात पे कहते
हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये
अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है !
रगों में दौड़ते
फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख ही से ना
टपका तो फिर लहू क्या है !
जला है जिस्म जहाँ
दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब
राख जुस्तजू क्या है !
रही न ताकत-ए-गुफ्तार
और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पे
कहिये कि आरज़ू क्या है !
( ताकत-ए-गुफ्तार
----- दुआ करने की शक्ति )
साधना वैद
शायद ही कोई समझ पाता है उन्हें जो दिनभर पुरे घर के लोगों के सुख के बारे में ही सोंचती रहती है पर दोष सिर्फ पुरुषों की नहीं है महिलाओं की भी है , जो सास रहती और जो ननद रहती है वो भी कभी बहु होती है पर कटाक्ष उनके द्वारा ही अधिक किया जाता है .................तब औरो से क्या उम्मीद ............
ReplyDeleteसाधनाजी आपने कुछ भी गलत नहीं लिखा . ये आम भाषा है .. मगर एक बात गौर करने की है इसके साथ ही.. ज्यादातर परिवारों में .. स्त्रियों पर छीटाकशी ..या टीका टिप्पणी स्त्रियों की तरफ से ही होती है .. सास की बहू पर , बहू की सास पर, ननद की भाभी पर , भाभी की ननद पर .. जरूरत है सोच बदलने की .. किसी की भी हो ...
ReplyDelete@ आपकी बात से सहमत हूँ कुश्वंश जी ! महिलाओं में तो तकरार और छींटाकशी अक्सर होती ही रहती है ! और उन्हें अपनी सोच और व्यवहार पर चिंतन कर अंकुश लगाना ही चाहिए ! इस आलेख में मेरा फोकस केवल दंपत्ति अर्थात पति पत्नी के परस्पर संबंध, सामंजस्य एवं सद्भावना पर है ! पत्नी को बराबरी का दर्जा देने की बातें कितनी बेमानी और खोखली हैं इस पर ध्यान आकर्षित करना चाहती हूँ ! आभार आपका प्रतिक्रिया के लिए !
ReplyDeleteरही न ताकत-ए-गुफ्तार और अगर हो भी,
ReplyDeleteतो किस उम्मीद पे कहिये कि आरज़ू क्या है !
सार्थकता लिये सटीक बात कही है आपने इस आलेख में
सादर
ना जाने कब सोच पर पडा पाला हटेगा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर,एव सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपने घर घर की कहानी बता दी -
ReplyDeleteसोच को बदलने केलिए पुरुष एवं महिलायों को सामान रूप से ही पहल करना पड़ेगा क्योकि दोनों एक दुसरे का पूरक है
New post बिल पास हो गया
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
बहुत ही सुन्दर,एव सार्थक आलेख..
ReplyDeleteमहिलाएं दूसरे दर्जे की नागरिक होती है |इस बात को नकारा नहीं जा सकता |यदि पति के अनुसार चलो तो सब खुश नहीं तो सारी बुराइयां दीखने लगती हैं |वे नोकरी करें या घर में रहें |डिग्री से क्या होता है योग्यता होनी चाहिए |
ReplyDeleteआशा
प्रभावशाली प्रस्तुती....
ReplyDeletebahut sahi kah rahi hain aap yahi sthiti hai samaj me nari ko jeevan bhar apne man ko markar parivar ke liye hi jeevan gujar dena padta hai aur uske bad bhi uske liye yahi kaha jata hai ki ''apne karm bhugat rahi hai''.।!.सार्थक प्रस्तुति बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया . आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
ReplyDeleteकई घर की यही कहानी है..महिलाएं और पुरुष दोनों को ही अपनी सोच बदलने की जरुरत है..एक दूजे को बराबरी का दर्जा दे..न की मै कमाता हूँ और तुम घर में छोटे मोटे काम करती हो... सशक्त अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteएक दम सटीक लिखा है दी.....
ReplyDeleteलगता है हर पुरुष तकरीबन एक सी सोच रखते हैं...
कोई सीधा कहते हैं...कोई थोडा लाग लपेट कर..
बहुत बढ़िया...
सादर
अनु
इस सोच को बदलना होगा ,हम कितने ही आधुनिक हो जाएँ पर मध्य युगीन मानसिकता तो बदलते बदलते ही बदलेगी -साथक लेखन
ReplyDeleteघर की रानी तानों में महारानी हो जाती है ........ दिल जितने की कवायद में अबोली चुड़ैल हो जाती है . कुछ घरों को छोड़कर हर गृहणी को अपने सपनों से हटना पड़ता है ............
ReplyDeleteबहुत खरी खरी लिख दी है .... सब लेते हैं बारिश के मज़े पकौड़े खा कर और पत्नी अपने अरमान बेसन के घोल में डुबो देती है .... और जो काम पर भी जाती हैं स्त्रियाँ उनको भी सुनने को मिल जाता है कि अपने शौक के लिए कर रही हो .... हम पर क्या एहसान कर रही हो :):)
ReplyDeleteये ताने उलाहने ही सम्बन्धों में अमल का काम करते हैं ... बहुत सार्थक लेख