याद है
वर्षों पूर्व
दिया था
एक लैम्प का
तुमने मुझे
यह उपहार,
जी जान से
उसे आज तक
सँजो कर रखती
आई हूँ मैं
हर बार !
वक्त की गर्द ने
फीकी कर दी है
उसकी सूरत,
अब वो बन कर
रह गया है
केवल एक
खंडहर सी मूरत !
हर बार छूने से
उसका कोई हिस्सा
टूट कर
गिर जाता है,
और मेरा
आकुल मन
उसे जोड़ने को
फेवीकोल की ट्यूब ले
दौड़ा चला
जाता है !
जगह-जगह से जुड़ा
और समय की मार से
फीका पड़ चुका
यह जीर्ण शीर्ण
खंडित लैम्प
मेरे मन
और आत्मा
पर भी आघात
करता था,
और उसका यह
जर्जर रूप
मेरी आँखों को भी
हर बार
खटकता था !
फिर एक दिन
जी कड़ा कर मैंने
उस लैंप की
जर्जर हो चुकी
रूखी फीकी
साज सज्जा का
बाह्य आवरण
उतार फेंकने के लिए
अपने मन को
मना लिया,
और स्वयं को
उसके भौतिक स्वरूप
के मोह से
मुक्त कर लेने का
दृढ़ संकल्प
अपने मन में
बना लिया !
जैसे-जैसे लैम्प की
ऊपरी परतें
उतरती गयीं
मेरे मन का
अवसाद भी
घटता गया,
और अन्दर से
उसका जो रूप
निकल कर
सामने आया
उसे देख
मेरे मन का
विस्मय भी
हर पल
बढ़ता गया !
कई बार हाथों से
गिर कर
अनेकों बार
टूट कर फिर
जुड़-जुड़ कर
लैंप की ज्योति
जो बिलकुल मद्धम
पड़ गयी थी,
अब ऊपरी
जरा जीर्ण
गंदी परतें
उतरते ही
बिलकुल नयी सी
चमक गयी थी !
सारे मिथ्या
आडम्बरों से
मुक्त हो
वह ज्योति
अन्दर से जैसे
नयी ऊर्जा ले
पुनर्जीवित हो
एक बार फिर से
निकल आयी है,
और ऐसा लगता है
उसकी यह
शांत धवल
उज्जवल रोशनी
मेरे मन के
कोने-कोने को
पावन कर
दिव्य आलोक से
जगमगाने के लिए
एक बार फिर
चली आई है !
साधना वैद
मन की रौशनी में ही सारी रौशनी समाहित हो जाती है ...........
ReplyDeleteकुछ भाषा नहीं है चुप हूँ ,अनुभव कर रहा हूँ
ReplyDeletelatestpost पिंजड़े की पंछी
जगह-जगह से जुड़ा
ReplyDeleteऔर समय की मार से
फीका पड़ चुका
यह जीर्ण शीर्ण
खंडित लैम्प
मन की पावनता से हर कोने को आलोकित कर रहा है और सदैव करता रहेगा ...
परिवर्तन में ही रास्ते की उजास है
ReplyDeleteमिथ्या आवरण ही मन को ज्यादा कष्ट पहुंचाता है ... हमें वस्तु से नहीं उसमें निहित भावनाओं से मन को आलोकित करना चाहिए ...बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी बात कहती रचना
ReplyDeleteसादर
मन की रौशनी से सब कुछ पाया जा सकता है,अतिसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteमन की परतों को बेधने के बाद दिव्य आलोक से प्रकाशित होना लाज़िमी है।
ReplyDeleteमिथ्या आडम्बरों मुक्ति पाकर ही नई ऊर्जा का संचार होता है ,,,,
ReplyDeleteRecent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
अतिसुन्दर भावों से परिपूर्ण अभिव्यक्ति |अपने आप में पूर्ण रचना |बहुत बहुत बधाई उम्दा रचना के लिए |
ReplyDeleteआशा
वाह ... बेहद उम्दा !
ReplyDeleteआज की ब्लॉग बुलेटिन १९ फरवरी, २ महान हस्तियाँ और कुछ ब्लॉग पोस्टें - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मिथ्यावरण दिव्य प्रकाश को हम तक आने नहीं देता लेकिन इसके हटते ही कोना-कोना आलोकित हो जाता है... बहुत सुन्दर भाव.. आभार
ReplyDeleteमन की ज्योति ही सब कुछ है ... पर शरीर का आवरण उतारा नहीं जाता .. उस रौशनी को पहचनाना नहीं जाता ...
ReplyDeleteअर्थपूर्ण रचना है ...
एक सही सन्देश देने का अदभुत उदाहरण है यह कविता.
ReplyDeleteलैम्प के बिम्ब से मिथ्या आडम्बर से ढके मानस को समझाया ...परतों के बीच फंसे मन को एक बार जान लिया तो फिर सब रोशन ही है !
ReplyDeleteपहले तो आप मेरा आभार स्वीकार करे मेरे ब्लॉग पर आने का !
ReplyDeleteरचना के भाव अर्थपूर्ण बहुत सुन्दर लगे ....जो नश्वर है हम उसे कितानाही सहेजनेकी कोशिश करे समय के साथ उसे एक दिन नष्ट होना ही है ...नश्वर में अनश्वर छिपा हुआ है पर हम मोहवश उसे देख नहीं पाते !