वो नादान निगाहों की
बेचैन चहलकदमियाँ ,
वो हिलते होंठों की ढेर
सारी
अनकही अनसुनी बतकहियाँ
,
वो क्लास में गुपचुप
फुसफुसाती खामोश
चुहलबाजियाँ ,
वो कॉपी फाड़ छोटी
छोटी गोलियाँ बना
दोस्तों पर फेंकने
की शरारत भरी गुस्ताखियाँ
अभी तक याद हैं !
वो ना मिलने पर
सुनाई जाने वाली
झूठी सच्ची कहानियाँ
,
वो काग़ज़ के पुर्जों
पर लिखी
आधी अधूरी टूटी फूटी
तुकबन्दियाँ ,
वो किताब के पन्नों
में दबी मिली
मोगरे गुलाब की सूखी
पाँखुरियाँ ,
वो लकड़ी की संदूकची
में बंद
दोस्तों की दी हुई
छोटी-छोटी निशानियाँ
अभी तक याद हैं !
वो फूलों भरी
डालियों सी लचकती महकती
आसमान तक गूँजती मदमाती
किलकारियाँ ,
वो नन्हे-नन्हे
परिंदों को पलक झपकते
तारों के संग बतियाते
देखने की हैरानियाँ ,
वो तूफानी रफ़्तार से
सरपट दौड़तीं
ख़्वाबों ख्यालों की
बेलगाम रवानियाँ ,
वो छोटी-छोटी बातों
पर रूठी सहेलियों को
मनाने की कवायद में दिन भर की गलबहियाँ
अभी तक याद हैं
!
वो चाँद सूरज
सितारों से हर वक्त
होड़ करने को तैयार
अल्हड़ अलमस्त जवानियाँ ,
वो हवाओं को आँचल
में बाँधने की जिद में
ऊँचे दरख्तों की
नाज़ुक शाखों के साथ अठखेलियाँ ,
वो दुनिया जहान को
अपनी मुट्ठी में
बंद कर लेने की जोश
भरी खुशगुमानियाँ ,
वो नदी के किनारे
घण्टों हलके-हलके पत्थरों को
लहरों पर तैराने की जिद
भरी नादानियाँ
अभी तक याद हैं !
वो मन की व्यथा कथा
की अनुत्तरित चिट्ठियों पर
मान भरे क्षुब्ध मन
की पीर भरी सिसकियाँ ,
वो रेशमी रूमाल में
बँधे जान से भी प्यारे चंद खतों की
अपने ही हाथों जलाई
होली से उठती चिनगारियाँ ,
वो आहत हृदय के
अंतस्तल से फूटतीं
कभी ना थमने वाली हाहाकार
भरी हिचकियाँ ,
और वो फिर उसके बाद
जीवन में पसरे दग्ध तपते
मरुथल की अनंत असीम कैक्टसी
वीरानियाँ
अभी तक याद हैं !
साधना वैद !
कॉलेज की यादे याद कराती रचना |सुन्दर शब्द विन्यास और सशक्त अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
भूली-बिसरी यादें
ReplyDeleteवाकई...
मद-मस्त
कर देती है
मन को
आभार
भूली-बिसरी यादें
ReplyDeleteवाकई...
मद-मस्त
कर देती है
मन को
आभार
मन की व्यथा कथा की अनुत्तरित चिट्ठियां ...ख़ुशी और दुःख बराबर चलते हैं साथ , याद क्या रह जाए , पता नहीं !!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !
बहुत बढ़िया आंटी !
ReplyDeleteये यादें बहुत सुनहरी हैं ।
सादर
यादों की धरोहर , आज भी लेती है मन हर ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
याद आते हैं आकाश को छूने की प्रबल चाह
ReplyDeleteयाद आते हैं ख़्वाबों के छोटे छोटे पौधों को सींचना
आँधियों का आना
ओट में दीये को बचा के रखना ...
वो लकड़ी की संदूकची में बंद
ReplyDeleteदोस्तों की दी हुई छोटी-छोटी निशानियाँ
अभी तक याद हैं !
और ताउम्र साथ रहेंगी ... ये यादें
अनुपम भावों का संगम
वो छोटी छोटी बातें ... वो चीजें शरारतें कभी भूलती नहीं हैं ... हमेशा याद रहती हैं ...
ReplyDelete
ReplyDeleteबचपन के मधुस्मृति एकबार फिर ताजा हो गया -बहुत सुन्दर
Latest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
कहाँ भूलती हैं ये सुहानी यादें, बरस बीतते हैं और ये ताज़ा होती जाती हैं ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...शुभकामनायें
ReplyDeletebadi achchi lagi......
ReplyDeleteआपकी पोस्ट 14 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
बहुत खूबसूरत रचना !
ReplyDeleteफूलों की छुअन से लेकर कैक्टस की चुभन तक के सफ़र का बयान कर दिया...
~सादर!!!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 14-02 -2013 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
आज की नयी पुरानी हलचल में ..... मर जाना , पर इश्क़ ज़रूर करना ...
संगीता स्वरूप
.
आपकी रचना पढ़कर आनंद आ गया...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,, बचपन की सारी बाते याद आ गयी...
:-)
सारी स्मृतियाँ सँजोए रहता है मन,पर आगे का रास्ता जिस ओर ले जा रहा है उधर कैक्टसों में फूल भी विकसते हैं.
ReplyDeleteसुन्दर रचना | पुराने दिन ताज़ा हो गए | आभार |
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
यादें चाहे जितने वर्षों बाद दुहराई जाएँ वे बिलकुल कल की सी बात लगती हैं और फिर वापस उसी पड़ाव पर लाकर एक सुखद अनुभूति देती हैं।
ReplyDeleteछोटी-छोटी बातों में छिपी बड़ी ख़ुशी दे जाती है
ReplyDeleteबचपन याद आ गया ....
साभार
गहरी होती है स्मृतियों की छाप , बहुत सुंदर कविता.....
ReplyDeleteव्यतीत के तमाम मासूम कुहांसों को रूपकात्मक अभिव्यक्ति देती बेहतरीन रचना भाषिक लावण्य लिए ,फॉर्म लिए मुख्तलिफ अंदाज़े बयानी .आभार आपकी सद्य टिपण्णी का .डॉ वागीश जो को
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी पढके सुनादी थी दूर ध्वनि पर .